
-राजेन्द्र सिंह जादौन-
हरियाणा में विधानसभा चुनाव करीब है तो राजनीतिक दल चेहरे बदल रहे है। कभी पुरानी पेंशन योजना बंद करने वाले कह रहे है कि सरकार बनते ही पहली कैबिनेट बैठक में पुरानी पेंशन बहाल की जाएगी। तो बुढ़ापा पेंशन छह हजार की जाएगी। तो दूसरे दल ओबीसी के लिए आरक्षण की क्रीमी सीमा छह लाख से बढ़ाकर आठ लाख करने और ओबीसी आरक्षण 27 फीसदी करने का ऐलान कर रहे है। कभी इसी दल ने ओबीसी आरक्षण के लिए क्रीमी लेयर आठ लाख रुपए से घटाकर छह लाख रुपए सालाना की थी। अब वे खुद ही पलटी खा रहे हैं। लोकतंत्र में चुनाव एक ऐसा खेल बन गया है कि इसकी चालों से मतदाता का जुड़ा रहना जरुरी है।
इसी बीच में सरकारी नौकरियों में भर्ती में सामाजिक और आर्थिक आधार पर पांच अंक देने का फॉर्मूला हाईकोर्ट के बाद सुप्रीम कोर्ट में भी नामंजूर कर दिया गया तो सरकार इस फार्मूले को विधानसभा में विधेयक पारित करवाकर या सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल करके बहाल करने का दम भर रही है। सामाजिक आर्थिक अंको का फार्मूला न्यायालय में नामंजूर हो जाना सरकार के लिए बड़ा झटका है और आंखे खोल देने वाला है। संविधान की पालना करने की शपथ लेने वाली सरकार आखिर संविधान के धरातल पर जांच परख करने के बाद कोई फॉर्मूला या योजना क्यों लेकर नही आती। सत्ता में रहने के जुगाड़ लाने से पहले उनकी व्यवहारिक मजबूती जरूर देखी जाए। पांच अंक का फॉर्मूला नामंजूर होने से हरियाणा में की गई ग्यारह हजार भर्ती को रद्द ना होने देने का संकल्प भी मुख्यमंत्री ने व्यक्त किया है। मुख्यमंत्री इस सारी समस्या की जड़ में भर्ती रोको गैंग का हाथ बता रहे है। जब भर्ती रोको गैंग चिन्हित हो चुका है तो उस गैंग के रास्ते क्यों बंद नही किए जा रहे। मजबूत कानूनी और संवैधानिक प्रावधान भर्ती गैंग को रोक देंगे। यही एकमात्र चारा है अन्यथा न्यायालय के द्वार तो सभी के लिए खुले है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)