कर्नाटक चुनाव समाप्त हो गया। 13 मई को कर्नाटक विधानसभा चुनाव का परिणाम भी आ जाएगा अब हाईकमान को ज्यादा ध्यान राजस्थान पर देना होगा, और कर्नाटक की तरह राजस्थान में भी हाईकमान को गहलोत और पायलट को मनाना होगा। सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार की तरह राजस्थान में भी गहलोत पर पायलट को एकता का परिचय देना होगा।
-देवेंद्र यादव-

“संघर्ष ही जीवन है” कांग्रेस के युवा कद्दावर नेता सचिन पायलट पर यह कहावत सटीक बैठ रही है। पांच साल पहले 2018 में सचिन पायलट राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी को सत्ता से बाहर करने के लिए, हाड़ौती संभाग के बारां से झालावाड़ तक की पदयात्रा पर निकले थे।
तब राज्य में भारतीय जनता पार्टी की सरकार थी और मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे थी। सचिन पायलट ने बारां से झालावाड़ तक की पदयात्रा करना शायद इसलिए चुना था, क्योंकि तत्कालीन मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे झालावाड़ विधानसभा क्षेत्र से विधायक थी और उनके सुपुत्र दुष्यंत सिंह झालावाड़ संसदीय क्षेत्र से लोकसभा सदस्य थे। मां बेटे दोनों आज भी इन्हीं क्षेत्रों से विधायक और सांसद हैं।
2018 में सचिन पायलट के द्वारा बारां से झालावाड़ तक निकाली गई पदयात्रा ऐतिहासिक रही और राज्य मैं 2018 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को हार का सामना करना पड़ा और कांग्रेस ने सत्ता में वापसी की। वह बात अलग है कि सचिन पायलट राज्य के मुख्यमंत्री नहीं बन पाए उनकी जगह मुख्यमंत्री अशोक गहलोत बने। सचिन पायलट मुख्यमंत्री नहीं बने इसका मलाल सचिन पायलट और उनके समर्थकों को आज भी है और उसी का ही परिणाम है कि सचिन पायलट पांच साल बाद फिर एक बार अजमेर से जयपुर तक की पदयात्रा करने का ऐलान कर चुके हैं। 11 मई शुक्रवार को अजमेर से सचिन पायलट की यात्रा शुरू होगी। पायलट की पहली पदयात्रा कांग्रेस को राज्य की सत्ता में वापसी कराने के लिए थी, दूसरी पदयात्रा पायलट को मुख्यमंत्री की कुर्सी दिलाने के लिए होगी क्या। क्योंकि राज्य में इसी बरस विधानसभा के चुनाव होने हैं। अब चुनाव की घोषणा होने में कुछ ही समय का वक्त बाकी है, इस लिहाज से सचिन पायलट की पदयात्रा राजनीतिक गलियारों में कई सवालों को जन्म दे रही है।
11 मई से पायलट की पदयात्रा शुरू होगी, और 13 मई को कर्नाटक विधानसभा के चुनावों का परिणाम आएगा। राजनीतिक विश्लेषकों की नजर सचिन पायलट की पदयात्रा और कर्नाटक के विधानसभा चुनाव के परिणाम पर है।
यदि सचिन पायलट की पदयात्रा 2018 की पदयात्रा की तरह सफल होती है और कर्नाटक विधानसभा चुनाव का रिजल्ट कांग्रेस के पक्ष में आता है तो विधानसभा चुनाव से पहले राजस्थान में कोई बड़ा राजनीतिक उलटफेर हो सकता है, क्योंकि सचिन पायलट पिछले साढे 4 साल से, कांग्रेस हाईकमान को राजस्थान में अपनी राजनीतिक ताकत का एहसास कराते रहे हैं। और हाईकमान के लिए सचिन पायलट की पदयात्रा चुनाव से ऐन वक्त पहले आखिरी दांव होगा, और पायलट का यह दाव कांग्रेस को राजस्थान की सत्ता में बरकरार रखने के लिए महत्वपूर्ण होगा।
कर्नाटक चुनाव समाप्त हो गया 13 मई को कर्नाटक विधानसभा चुनाव का परिणाम भी आ जाएगा अब हाईकमान को ज्यादा ध्यान राजस्थान पर देना होगा, और कर्नाटक की तरह राजस्थान में भी हाईकमान को गहलोत और पायलट को मनाना होगा। सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार की तरह राजस्थान में भी गहलोत पर पायलट को एकता का परिचय देना होगा।
भले ही राजस्थान में अशोक गहलोत सरकार ने जनहित में बड़ी-बड़ी योजनाएं बनाकर लागू की हैं मगर इन योजनाओं का परिणाम तब देखने को मिलेगा जब पायलट की नाराजगी दूर होगी।
पायलट की नाराजगी, ने प्रदेश में कांग्रेस को कमजोर नहीं किया बल्कि पायलट की नाराजगी के कारण प्रदेश में कांग्रेस अधिक मजबूत हुई है, जो जातियां या लोग अशोक गहलोत की नीतियों के कारण कांग्रेस से नाराज थे उन लोगों को सचिन पायलट ने संभाला और कांग्रेस के प्रति आकर्षित किया खासकर जाट, गुर्जर, मीणा और राजपूत इन समाजों के लोग सचिन पायलट के माध्यम से कांग्रेस की तरफ आकर्षित रहे। मगर इसका फायदा कांग्रेस को तब मिलेगा जब कांग्रेस सचिन पायलट को बड़ी जिम्मेदारी देगी, और अशोक गहलोत की योजनाओं का फायदा भी तभी मिलेगा जब हाईकमान पायलट की नाराजगी को दूर करेगा।
देवेंद्र यादव, कोटा राजस्थान
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)