
-प्रतिभा नैथानी-

चारों तरफ़ कांटों से घिरे गुलाब को नहीं पता कि वह कितना सुंदर है। उसे सिर्फ़ खिलना है। अपने हिस्से की ख़ुशबू बिखेर कर मिट्टी में मिल जाना है।
मगर किस्सा बस इतना भर नहीं है। लाल, गुलाबी, नारंगी, सफेद और काला रंग ओढ़े इस नाजुक- पंखुड़ियों वाले फूल में इतने गुण भरे हैं कि यह न सिर्फ़ देखने में सुंदर लगता है बल्कि इसका पानी भी दुखती आंखों के लिए बहुत फायदेमंद होता है। पेट के लिए लाभदायक होने के कारण शरबत में इसका प्रयोग प्राचीन काल से होता आ रहा है। इसकी पंखुड़ियों को ग्लिसरीन में मिलाकर होठों पर लगाने से यह नरम-मुलायम हो जाते हैं । नियमित उपयोग करने पर तो यहां तक भी देखा गया है कि लिपस्टिक से काले पड़े होठों का रंग वापस गुलाबी होने लगता है।
एक और बात कि विटामिन सी प्रचुर मात्रा में होने के कारण इसकी चाय बनाकर भी पी जा सकती है। बढ़ती उम्र में झुर्रियां और दाग धब्बों को दूर करने के लिए यह एक कारगर उपाय है।
इत्र में इसके प्रयोग से तो सभी भलीभांति परिचित हैं। गुलाब का इत्र बनाने का प्रयोग शायद सबसे पहले मलिका-ए- हिंदुस्तान नूरजहां ने किया था। जिन्हें किसी अन्य तरह की ख़ुशबू से एलर्जी हो, उनके लिए गुलाब जल को पानी में मिलाकर नहा लेना बेहतर विकल्प है। तन के साथ-साथ मन भी दिनभर खिला-खिला सा रहता है।
मशहूर फिल्म अभिनेत्री मीना कुमारी को भी गुलाबों से इश्क़ था। अच्छी नींद के लिए तकिए पर गुलाब की पंखुड़ियां बिछाकर सोना उनकी आदत थी।
गुलाब की ख़ुशबू उन्हें इस क़दर पसंद थी कि डायरेक्टर कमाल अमरोही ने पाक़ीज़ा फिल्म में उनके मुजरे के समय पार्श्व में चल रहे फव्वारों में भी पानी की जगह गुलाब जल ही इस्तेमाल किया था। उनकी तरह ही और भी कई हस्तियां अपनी गुलाब पसंदगी के कारण कुछ और ज्यादा मशहूर हुईं। सुभाष चंद्र बोस अपनी प्रेमिका एमिली शेंकल को काला गुलाब दिया करते थे। जहां नेहरू जी का जैकेट की जेब का गुलाब उनकी खासियत बन गया तो वहीं दूरदर्शन पर समाचार वाचिका सलमा सुल्तान के बालों का गुलाब लोगों को आज़ भी याद है।
यह तो सच है कि अच्छा होना जब बहुत अच्छा हो जाए तो वह जलन की वजह भी बन जाता है।
जैसे किसी ने कहा कि ‘नाजुकी उनके लबों की क्या कहिए पंखुड़ी गुलाब सी है’ तो वहीं कोई और कहता है कि ‘सुना है उसके लबों से गुलाब जलते हैं/ सो हम बहार पर इल्जाम धर के देखते हैं’
‘लब हिले तो मोगरे के फूल खिलते हैं कहीं’ समान इक्का-दुक्का बातें चमेली, गुलमोहर, अमलतास, रजनीगंधा , चंपा , रात की रानी, पलाश जैसे अन्य फूलों पर भी लिखी गईं हैं लेकिन प्यार और वफ़ा का अशारह होना तो सिर्फ़ गुलाब को ही हासिल हुआ।
‘मैंने भेजी थी गुलाबों की बशारत उसको/तोहफ़तन उसने भी ख़ुशबू-ए-वफ़ा भेजी है’ पढ़कर झांकने लगते हैं ना आंखों से गुलाब ?
गुलाब की कई किस्में होती हैं और अलग-अलग जगहों पर नाम भी बेशक अलग-अलग होगा, मगर हिंदुस्तान में ज़्यादातर इसे गुलाब के नाम से ही प्रसिद्धि है, जबकि गुलाब एक फारसी शब्द है। इसे इस नाम से प्रचलित करने का कुछ श्रेय औरंगजेब की शहजादी जेबुन्निसा को भी दिया जाना चाहिए। जेबुन्निसा अपनी शेरो-शायरी, ग़ज़ल, नज़्म और कविताओं के लिए आज़ भी याद की जाती हैं। वैसे मुगलों का इतिहास अब हाशिए पर है मगर जब-जब गुलाब दिखेंगे जेबुन्निसा की यह बात भी याद आया करेगी कि ‘मैं इतनी सुंदर हूं कि मुझे देख कर गुलाब के रंग फीके पड़ जाते हैं’।

















