सच में बदलाव चाहिए, तो यह क्रांतिकारी कदम उठाइए!

-Manoj Abhigyan

कांग्रेस अगर मरना चाहती है तो मरने दो! लेकिन अगर इसे जिंदा रहना है, तो अब इसमें क्रांतिकारी बदलाव लाने होंगे। यह कोई समाजसेवा संस्था नहीं है कि सिर्फ बयानबाज़ी और ट्वीट से राजनीति चलती रहेगी। यह कोई जागीर नहीं है कि कुछ गिने-चुने खानदानी लोग इसे अपनी बपौती समझें और जनता की राजनीति को पैरों तले कुचल दें। कांग्रेस अगर दोबारा सत्ता में आना चाहती है, तो इसे जनता से सीधे जुड़ना होगा, अपने संगठन को मजबूत करना होगा, और सबसे बड़ी बात—पूंजीपतियों के दरवाजे पर कटोरा लेकर खड़े रहने की आदत छोड़नी होगी।

अब वक्त है एक बड़े सदस्यता अभियान का, जो कांग्रेस को नया जीवन दे सकता है। राहुल गांधी को कम से कम दो करोड़ नए सदस्य बनाने का लक्ष्य रखना चाहिए और प्रत्येक सदस्यता के लिए 1000 रुपये फीस तय करनी चाहिए। यह न केवल पार्टी को 2000 करोड़ रुपये का मजबूत फंड देगा, बल्कि यह भी तय करेगा कि पार्टी में वही रहेंगे जो इसे मजबूत करना चाहते हैं, न कि वे जो केवल सत्ता के सुख के लिए कांग्रेस में बने हुए हैं।

यह अभियान कांग्रेस के भीतर की सच्चाई का आईना बन जाएगा। यह दिखाएगा कि कौन असली ज़मीनी नेता है और कौन सिर्फ ट्विटर पर क्रांति करता है। जब सदस्यता अभियान शुरू होगा, तब साफ हो जाएगा कि कौन गली-मोहल्लों में लोगों से जुड़कर कांग्रेस को मजबूत कर रहा है और कौन एयर-कंडीशंड दफ्तरों में बैठकर पावर पॉइंट प्रेजेंटेशन बना रहा है। जो नेता अपने क्षेत्र में 10,000 नए सदस्य भी नहीं बना सकते, उन्हें कांग्रेस में रहने का कोई हक नहीं।

अगर यह योजना लागू होती है, तो इसका सबसे बड़ा असर कांग्रेस के भीतर बैठे उन नेताओं पर पड़ेगा जो जनता से कटे हुए हैं, जो सिर्फ सोनिया गांधी या राहुल गांधी के नाम पर राजनीति कर रहे हैं, और जिनका अपना कोई जनाधार नहीं है। जो नेता इस अभियान में सबसे ज्यादा सदस्य बनाएगा, उसे जिला और प्रदेश का नेतृत्व मिलना चाहिए। इससे कांग्रेस में जमीनी कार्यकर्ताओं की ताकत बढ़ेगी और राजनीतिक अवसरवादियों की दुकान बंद होगी।

इतिहास गवाह है कि जो भी पार्टी जनता से फंड लेकर चलती है, वह हमेशा मजबूत होती है। 1930 के दशक में जर्मनी की सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी (SPD) ने मजदूरों के चंदे पर खुद को टिकाए रखा। बर्नी सैंडर्स ने अमेरिका में छोटे डोनेशन से राजनीतिक तूफान खड़ा किया। फ्रांस में जीन-ल्यूक मेलांशों का आंदोलन भी छोटे फंड से चलकर मजबूत बना। कांग्रेस अगर बीजेपी को टक्कर देना चाहती है, तो उसे भी अपने समर्थकों पर निर्भर रहना होगा, न कि पूंजीपतियों की दया पर।

अगर राहुल गांधी यह अभियान नहीं चलाते, तो कांग्रेस का कोई भविष्य नहीं है। आज की कांग्रेस पूंजीपतियों के दलालों और नेताओं के बच्चों की घुड़साल बन गई है। जहां असली कार्यकर्ता सिर्फ झंडे उठाने के लिए रह गए हैं और टिकट हमेशा उन्हीं खानदानी नेताओं को मिलती है जिनका जमीन से कोई लेना-देना नहीं है। अगर कांग्रेस को यह कलंक मिटाना है, तो उसे अब नया रास्ता चुनना होगा—जिसमें जनता से लिए गए पैसों पर पार्टी खड़ी हो, और जनता से जुड़े नेता पार्टी का नेतृत्व करें।

यह कांग्रेस के लिए आखिरी मौका है। अगर अब भी पार्टी नहीं बदली, तो यह सिर्फ इतिहास की किताबों में एक बीते युग की कहानी बनकर रह जाएगी। Rahul Gandhi, अगर आपको सच में बदलाव चाहिए, तो यह क्रांतिकारी कदम उठाइए। वरना कांग्रेस को मृत संगठन मानकर लोग नई राजनीति की ओर बढ़ जाएंगे।

डिस्क्लेमर: मैं कांग्रेस का कोई प्रवक्ता नहीं हूं, न ही इसका झंडा उठाने का शौक है। बस यूं ही मुफ़्त की सलाह दे रहा हूं, जो आजकल हर नुक्कड़, हर चाय की दुकान और हर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर बिना मांगे मिल जाती है। कांग्रेस इसे माने या न माने, लेकिन अगर वह अपनी जड़ें खुद ही काटने पर तुली है, तो कम से कम उसे यह अहसास तो होना चाहिए कि तमाशा देखने वाले अब उसे बचाने नहीं आएंगे।

(देवेन्द्र सुरजन की वॉल से साभार)

 

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