हिमाचल प्रदेशः पीएम मोदी के दौरे पर टिकी भाजपा की नजर

प्रियंका गांधी संभाल रहीं हैं कांग्रेस की कमान

narendra modi
भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी को जन्म दिन की बधाई देते पीएम नरेन्द्र मोदी। फोटो साभार सोशल मीडिया

-द ओपिनियन-

शिमला। हिमाचल प्रदेश में चुनावी प्रचार चरम पर पहुंच गया है। राज्य में 12 नवम्बर को मतदान है, इसलिए रैलियों व जनसभाओं का दौर 10 नवंबर को शाम को थम जाएगा। भाजपा ने हर पांच साल बाद सरकार बदलने की राज्य में 1985 से चली आ रही परम्परा को तोड़ कर वापस सत्ता में आने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है। पार्टी के दिग्गज नेता चुनाव प्रचार में जुटे हैं। खुद पार्टी अध्यक्ष जे पी नड्डा चुनाव प्रचार की कमान संभाल रहे हैं। यही हाल कांग्रेस का है। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने पार्टी के चुनाव प्रचार की कमान संभाल रखी है। पार्टी ने सत्ता में लौटने के लिए पूरी ताकत लगा रखी है। इस बीच, दोनों पार्टियों ने अपने वादों का पिटारा खोल दिया है। समान नागरिक संहिता व पुरानी पेंशन स्कीम इनमें मुख्य है। भाजपा ने समान नागरिक संहिता को चुनावी मुद्दा बनाया है। लेकिन उसके सामने अहम चुनौती सत्ता विरोधी रूझान की है। भाजपा को उम्मीद है कि पीएम नरेंद्र मोदी का चुनावी दौरा उसकी चुनावी नैया पार लगा देगा। पीएम मोदी 9 नवम्बर को राज्य के दौरे पर आने वाले हैं और पार्टी की नजरें उनके दौरे पर टिकी हैं।

हिमाचल प्रदेश के उना में एक जनसभा को संबोधित करतीं प्रियंका। फोटो साभार एआईसीसी

इस साल के शुरू में हुए पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव के दौरान उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की कमान प्रियंका गांधी के हाथ में थी। उन्होंने कई नए नारे गढ़े और चुनावी लहर लाने की कोशिश की लेकिन पार्टी वहां बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाई। वह अपना पिछला प्रदर्शन भी नहीं दोहरा पाई थी। अब प्रियंका हिमाचल में पार्टी की चुनावी कमान संभाल रही हैं। लेकिन उत्तर प्रदेश व हिमाचल में पार्टी की जमीनी स्तर पर हालत में बहुत अंतर है। उत्तर प्रदेश में पार्टी कई सालों से सत्ता से दूर है और संगठन के स्तर पर पार्टी काफी कमजोर हो चुकी है। पार्टी के दिग्गज नेताओं का दौर चला गया है। जबकि हिमाचल में ऐसा नहीं है। 2012 से 2017 तक राज्य में पार्टी की सरकार थी और वीरभद्र सिंह मुख्यमंत्री थे। अब उनके निधन के बाद उनकी पत्नी पार्टी की कमान संभाल रही हैं और उनके बेटे भी चुनाव मैदान में है। पार्टी का संगठनात्मक ढांचा भी उतना कमजोर नहीं है। सामाजिक समीकरण भी पूर्ववत बरकरार हैं, ऐसे में कांग्रेस को यहां कोई भी पार्टी हल्के में नहीं ले सकती। पुरानी पेंशन स्कीम की बहाली का वादा कर उसने बड़ा चुनावी दांव चला है। वह राजस्थान में गहलोत सरकार द्वारा पूरी पेंशन स्कीम लागू किए जाने का वादा पूरा करने को बार बार दोहरा रही है। राजस्थान के पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट भी यहां युवा चेहरे के रूप में पार्टी के चुनाव अभियान में जुटे हैं।

इधर, भाजपा को कांग्रेस की हर रणनीति की काट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे के रूप में नजर आती है। इसके साथ ही भाजपा की सबसे बड़ी ताकत उसका चुनाव प्रबंधन है। बूथ स्तर पर उसके कार्यकर्ता सक्रिय रहते हैं। मतदाता से सीधा संपर्क उसके लिए हर चुनाव में ताकत बनकर उभरता है। इसके साथ ही उसके दिग्गज नेता राज्य के हर इलाके में पहुंच रहे हैं।

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