आर्थिक चुनौतियों का होगा नया साल

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-देशबन्धु में संपादकीय 

बुधवार को जिस 2025 का आगाज़ हुआ है उसमें अनेक तरह की आर्थिक चुनौतियां होंगी। जिस तरह से महंगाई बढ़ी है तथा केन्द्र सरकार के पास उसे कम करने व लोगों को रोज़गार देने की कोई ठोस योजना नहीं है, उससे साफ़ है कि आमजन के लिये यह साल पहले से कहीं अधिक कष्टप्रद होगा। वर्ष 2024 के आखिरी दिन कांग्रेस ने रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया के जो आंकड़े उद्धृत किये हैं, वे भारतीय अर्थव्यवस्था की भयावह तस्वीर पेश करने के लिये काफी हैं। कहने को तो ये आंकड़े गोल्ड लोन लेकर अथवा गहने गिरवी रख या बेचकर घर चलाने के सम्बन्ध में हैं, जिसे एक तरह से सीमित विषय पर केन्द्रित कहा जा सकता है, परन्तु देश की जो सामाजिक व्यवस्था है उसमें घर खर्च चलाने के लिये सोना गिरवी रखना अथवा बेचना आम आदमी का अंतिम उपाय माना जाता है। ऐसा करना लोगों की बदहाली व मजबूरी का द्योतक है। असली बात यह है कि ऐसी तमाम परिस्थितियों को सिरे से ख़ारिज करने की आदी भारतीय जनता पार्टी की सरकार यह नहीं बतलाती कि वह जनता को इस हालत से बाहर निकालने के लिये क्या करने जा रही है।

कांग्रेस ने मंगलवार को आरबीआई के आंकड़ों का हवाला देते हुए एक्स पर पोस्ट कर बताया है कि ‘देश की अर्थव्यवस्था डांवाडोल है। लोगों के पास कमाई के साधन नहीं हैं और उन्हें घर चलाने के लिये गहने गिरवी रखकर कर्ज लेना पड़ रहा है। इसके बाद भी स्थिति सुधर नहीं रही। वे कर्ज नहीं चुका पा रहे हैं।’ बकौल कांग्रेस, आरबीआई ने जो तथ्य दिये हैं उनमें प्रमुख हैं-गोल्ड लोन की अदायगी न कर पाने के मामले मार्च 2024 से जून 2024 तक 30 फ़ीसदी बढ़ गये, व्यावसायिक बैंकों में ऐसे मामलों में 62 प्रतिशत का इज़ाफा तथा बीते वर्ष के पहले 7 महीनों में कर्ज लेने के मामलों में 50 प्रश की वृद्धि। कांग्रेस की इस बात में दम है कि, ‘प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को आम जनता की परेशानियों से कोई फ़र्क नहीं पड़ रहा। वे देश की अर्थव्यवस्था को सम्भालने में पूरी तरह से नाकाम हो चुके हैं।’

इसमें कोई शक नहीं कि सोना गिरवी रखना या बेचना माली हालत का सबसे बड़ा सूचकांक माना जाता है- फिर वह चाहे व्यक्ति हो या देश। इस लिहाज से कहा जा सकता है कि देश की हालत बहुत खराब है। मुल्क की जो स्थिति हैं वह साफ़ बतला रही है कि यदि लोगों को सोना बेचना पड़ रहा है या वे उसे गिरवी रखकर घर का ख़र्च चला रहे हैं तो इसका अर्थ है कि उनकी आमदनी काफी घटी है। दूसरे, महंगाई का जो आलम है वह भी सर्वत्र दिख पड़ता है। साग-सब्जियों से लेकर खाने-पीने की वस्तुएं तथा तमाम उपभोक्ता सामग्रियां लगातार महंगी होती जा रही हैं। कोई भी ऐसा महीना नहीं आता जिसमें किसी भी वस्तु के दाम घटने की खबर मिलती हो। ऊपर से, तमाम तरह की सामग्रियां, सेवाएं या उत्पाद जीएसटी के दायरे में लाई जा चुकी हैं; और जो नहीं लाई गयी थीं, वे भी लाई जा रही हैं। यहां तक कि बहुत बुनियादी ज़रूरतों की सामग्रियों या सेवाएं तक लगातार महंगी होती जा रही हैं, जिनमें शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएं, दवाएं, पेट्रोल-डीजल, रसोई गैस आदि शामिल हैं। यहां तक कि किसानों के लिये ज़रूरी कृषि उपयोगी वस्तुएं, उपकरण, खाद आदि सभी कुछ महंगा होता जा रहा है।

वैसे भी मोदी सरकार का सारा ध्यान और अनुराग उच्च वर्गों के लिये हैं। सामान्य दर्जे की ट्रेनों की बजाये उसकी दिलचस्पी महंगी ट्रेनें (वंदे भारत, बुलेट ट्रेन आदि) चलाने में हैं। लोगों की जेब पर जिस तरह से बोझ बढ़ता जा रहा है उनके पास सोना गिरवी रखने या बेचने के अलावा और कोई उपाय नहीं रह जाता। हर किसी के पास इतनी जमा-पूंजी नहीं रहती कि वह वर्षों तक महंगाई को झेल सके। न ही हर किसी के पास जमीनें होती हैं। मकान सभी के लिये ज़रूरी होता है पर पाया गया है कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान जनजीवन जैसा महंगा हुआ है, लोग मकान बेचकर छोटे शहरों या सस्ते आवासों वाली बस्तियों में जा रहे हैं। घरों में थोड़ा-बहुत सोना रखने का रिवाज होता है लेकिन इन दिनों यह कोई मकान बनाने, हारी-बीमारी अथवा शादी-ब्याह के लिये नहीं बेचा या गिरवी रखा जा रहा है बल्कि ऐसा दैनंदिन खर्च चलाने के लिये हो रहा है। ऋण भुगतान की किश्तें भरनी कठिन हो गयी हैं। लोग तेजी से डिफाल्टर होते जा रहे हैं। नवम्बर 2016 में जब मोदी ने एक सनकपूर्ण और गलत निर्णय के अंतर्गत नोटबन्दी कर दी थी, तभी हाल ही में दिवंगत हुए पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने भविष्यवाणी कर दी थी कि इससे भारत की इकानॉमी तबाह हो जायेगी। वैसा ही हुआ। रही-सही कसर कोरोना ने पूरी कर दी जिसमें लोगों की जमा-पूंजी तो स्वाहा हुई ही, बड़ी संख्या में लोग बेरोज़गार हुए।

सामान्य जनता की स्थिति इसलिये भी दयनीय हो गयी है क्योंकि भारत सरकार के पास लोगों के सशक्तिकरण की योजना ही नहीं हैं। हर वर्ष दो करोड़ लोगों को रोजगार देने तथा किसानों की आय दोगुना करने का वादा करने वाली सरकार नयी भर्तियां करना तो दूर रिक्त पद तक नहीं भर पा रही है। मोदी पिछले लोकसभा चुनाव में यह कहकर जनता को डरा रहे थे कि ‘यदि कांग्रेस सत्ता में आयी तो वह लोगों के गहने अल्पसंख्यकों को दे देगी।’ उनका वह कहना तो धुव्रीकरण की चाल थी, लेकिन आज उनकी सरकार ही आम जनता के गहने छीन रही है।

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