
#सर्वामित्रा_सुरजन
रूस के साथ पिछले तीन साल से जंग कर रहे यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की तथा दुनिया के सबसे शक्तिशाली कहे जाने वाले देश अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के बीच तीखी बहस ने दुनिया को हैरत में डाल दिया है। इसके कारण नये वैश्विक समीकरण बनते दिख रहे हैं। शुक्रवार की शाम को जेलेंस्की की ट्रम्प के साथ उनके ओवल कार्यालय में बैठक हुई थी। अमेरिका के उपराष्ट्रपति जेडी वेंस भी साथ थे। बातचीत ने अप्रत्याशित मोड़ ले लिया जिसके कारण ट्रम्प के भोज को ठुकराकर जेलेंस्की अपने प्रतिनिधिमंडल के साथ वहां से निकल गये। अमेरिका से जेलेंस्की यूनाइटेड किंगडम की राजधानी लंदन पहुंचे जहां उन्हें पूरे यूरोपीय देशों का समर्थन मिल गया। हालांकि उन्होंने बातचीत के लिये ट्रम्प का धन्यवाद किया है तथा ट्रम्प ने भी उनके अमेरिका छोड़ने के पहले ट्वीट किया है कि जब वे शांति की सोचें तो दोबारा आ सकते हैं। यह बहस तथा कौन सही है व कौन गलत, इसका विवाद एक ओर रख दें तो भी सारा विश्व हास्य कलाकार की भूमिका से राजनीति में आकर राष्ट्रपति बने जेलेंस्की की इस बात की प्रशंसा कर रहा है कि उन्होंने बगैर दबे जमकर बहस की तथा देश की सम्प्रभुता की दमदारी से रक्षा की।
दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश रूस के साथ लम्बे समय से युद्धरत छोटे से देश यूक्रेन के संसाधन तेजी से चूक रहे हैं। देश का एक बड़ा हिस्सा रूसी बमबारी से तबाह हो चुका है। दुनिया भी अब शांति विराम चाहती है। वैसे खुद यूक्रेन के लिये स्वतंत्र अस्तित्व बनाये रखने हेतु यह ज़रूरी हो गया है क्योंकि इसे वापस रूस द्वारा अपने में शामिल कराये जाने का खतरा उसके सिर पर मंडरा रहा है। दूसरी बार जीतकर आने के बाद अब ट्रम्प की रुचि अंतरराष्ट्रीय सम्बन्धों में कम और व्यवसाय में ज्यादा है। यूरोप भी चाहता है कि युद्धविराम हो। इस सिलसिले में जेलेंस्की गये तो थे ट्रम्प को मनाने लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति ने उन पर आरोप लगाया कि वे विश्व को तीसरे महायुद्ध की ओर ले जा रहे हैं तथा एक तरह से एहसान जतलाया कि अमेरिका ने उन्हें 350 बिलियन डॉलर दिये हैं। उन्होंने यह भी ध्यान दिलाया कि अमेरिका यदि हथियारों की मदद नहीं करता तो यूक्रेन के लिये लड़ाई में दो हफ्ते भी टिकना मुश्किल था। इसकी ईमानदार स्वीकारोक्ति जेलेंस्की ने की लेकिन वे अपनी शर्तों पर अड़े रहे। जेलेंस्की को इस बात की भनक थी कि ट्रम्प स्थिति का फायदा उठाकर उनके देश के खनिज भंडारों से सम्बन्धित समझौता कराने के लिये दबाव डाल सकते हैं। वैसा हुआ भी। सौहार्द्रपूर्ण वातावरण में प्रारम्भ हुई बातचीत के आखिरी 10 मिनटों में सब कुछ बदल गया जब ट्रम्प ने उनसे कहा कि वे युद्ध रोक दें। पूरी कूटनीतिक सतर्कता बरतते हुए जेलेंस्की ने कहा कि जब तक यूक्रेन की सुरक्षा की जिम्मेदारी अमेरिका नहीं लेता, वे ऐसा नहीं करेंगे।
आगे यूक्रेन-अमेरिका सम्बन्ध क्या मोड़ लेते हैं, यह तो अगले कुछ दिनों में साफ हो पायेगा, परन्तु आम तौर पर अमेरिका के पीछे चलने वाले सभी 27 यूरोपीय देशों ने एकता दिखाते हुए जेलेंस्की को अपना समर्थन दे दिया। इसे लेकर जल्दी ही उनकी एक बैठक होने जा रही है। आस्ट्रेलिया और कनाडा भी यूक्रेन के पक्ष में खड़े हैं। मदद किस स्वरूप में रहेगी, कितने हथियार और धन की सहायता मिलेगी यह कुछ दिनों में सामने आयेगा परन्तु यह यूक्रेन को बड़ा सम्बल प्रदान करेगी। दूसरी ओर इस मामले में रूस की जीत बतलाई जा रही है लेकिन उससे इसलिये बहुत फायदा नहीं होने जा रहा है क्योंकि यूक्रेन तो उससे पहले से ही युद्ध कर रहा है और जितना नुकसान रूस कर सकता था वह कर चुका है। अलबत्ता, यूक्रेन ने यूरोपीय देशों से अमेरिका को अलग करने में सफलता पा ली। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर ने 2.84 अरब डॉलर का ऋ ण रक्षा क्षमताओं को बढ़ाने के लिये दे दिया। जेलेंस्की ने कहा कि इस राशि का उपयोग हथियार बनाने के लिये किया जायेगा।
ट्रम्प द्वारा यूक्रेन पर युद्धविराम के लिये दबाव डालना यूरोपीय देशों के अलावा कनाडा, आस्ट्रेलिया आदि को नागवार तो गुजरा है, अमेरिका द्वारा रूस का एक तरह से अप्रत्यक्ष समर्थन उन्हें बिलकुल ही हजम नहीं हो सकता क्योंकि ज्यादातर देश पूंजीवादी व्यवस्था के समर्थक हैं जबकि रूस अब भी अलग खेमा माना जाता है, बावजूद इसके कि उसके अपने साम्यवादी विचारों में काफी लचीलापन आ चुका है और सोवियत संघ का विघटन हुए तीन दशकों से अधिक का वक्त गुजर चुका है। उसके पास अब केवल कम्युनिस्ट विचारधारा का इतिहास है और शासन प्रणाली। तो भी दुनिया, खासकर यूरोपीय संघ (ईयू), नाटो जैसे संगठन अमेरिका तथा रूस में यह नज़दीकी देखने की आदी नहीं है। न उसे वह रुचिकर लगेगा। सम्भवत: यही कारण है कि जेलेंस्की-ट्रम्प वार्ता के नाकाम होने के कुछ ही घंटों के भीतर यूक्रेन के साथ इतने देश खड़े हो गये। अपने शपथ ग्रहण समारोह में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को आमंत्रित कर ट्रम्प ने पहले ही संकेत दे दिये थे कि वे विचारधारा की बजाये व्यवसाय को तरज़ीह देंगे।
भारत के सन्दर्भ में कहें तो लोग जेलेंस्की की तुलना प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से कर रहे हैं जिन्होंने पिछले दिनों ट्रम्प से मुलाकात की थी और पेश किये गये दस्तावेजों पर हस्ताक्षर कर दिये थे। कई शर्तें भारत के हितों के खिलाफ हैं- खासकर कबाड़ हो चुके एफ-35 लड़ाकू जहाज तथा महंगी दरों पर प्राकृतिक गैस व तेल की अमेरिका से खरीदी। जेलेंस्की को ‘मसखरा’ कहें या ‘कॉमेडियन’ लेकिन उन्होंने महाशक्ति के आगे घुटने न टेककर यूक्रेन के सम्मान की रक्षा की। दूसरी ओर कथित ‘विश्वगुरु’ ने खामोशी से उसकी सारी शर्तें मान लीं।
(देवेन्द्र सुरजन की वॉल से साभार)
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