
-ब्रिक्स शिखर बैठक मे भाग लेने जोहान्सबर्ग रवाना हुए पीएम मोदी
-द ओपिनियन-
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए मंगलवार सुबह दक्षिण अफ्रीका रवाना हो गए। वह मंगलवार शाम को दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग पहुंचेंगे। पीएम मोदी की यह यात्रा बहुत ही अहम है क्योंकि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भी शिखर बैठक में भाग लेने वहां आएंगे। हालांकि विदेश मंत्रालय ने शी के साथ पीएम मोदी की मुलाकात की कोई आधिकारिक स्तर पर पुष्टि नहीं की है, लेकिन राजनयिक क्षेत्रों में यह अटकलें है कि दोनों नेताओं की वहां मुलाकात हो सकती है। लद्दाख सीमा पर जारी तनाव व चीन की आक्रामक नीति की वजह से भारत चीन के रिश्तों में काफी तनाव है और रिश्तों में सुधार के लिए भारत का कहना है यह सीमा पर शांति व स्थिरता से जुड़े हैं। अगर पीएम मोदी और शी जिनपिंग की द्विपक्षीय मुलाकात होती है, तो यह मई 2020 में भारत-चीन सीमा गतिरोध शुरू होने के बाद पहली मुलाकात होगी। दोनों नेताओं के बीच पिछले साल नवंबर में इंडोनेशिया में आयोजित जी 20 रात्रिभोज के दौरान संक्षिप्त आमना-सामना हुआ था। लेकिन द्विपक्षीय बैठक नहीं हुई थी। जोहान्सबर्ग में पीएम मोदी की कई अन्य देशों के प्रमुखों से भी द्विपक्षीय बातचीत हो सकती है। ब्रिक्स में भारत के अलावा ब्राजील, चीन, रूस और दक्षिण अफ्रीका शामिल हैं। यह 2019 के बाद ये पहला ब्रिक्स सम्मेलन होगा, जिसमें सदस्य देशों के प्रमुख आमने-सामने की बैठक में हिस्सा ले रहे हैं। पिछले तीन वर्षों में ब्रिक्स की बैठकें वर्चुअली आयोजित की गई थीं।जोहान्सबर्ग रवाना होने से पहले पीएम मोदी ने कहा कि ब्रिक्स विभिन्न क्षेत्रों में एक मजबूत सहयोग एजेंडा अपना रहा है। हम मानते हैं कि ब्रिक्स विकास अनिवार्यताओं और बहुपक्षीय प्रणाली में सुधार सहित पूरे ग्लोबल साउथ के लिए चिंता के मुद्दों पर चर्चा और विचार-विमर्श करने का एक मंच बन गया है।
भारत की चिंता ब्रिक्स का विस्तार
जोहान्सबर्ग में भारत को एक अहम चुनौती का भी सामना करना पड़ सकता है। चीन ब्रिक्स के विस्तार पर जोर दे रहा है। भारत को आशंका है कि चीन अन्य देशों को इसमें शामिल कर इसे पश्चिम विरोधी एक खेमा बना सकता है और भारत के प्रभाव को भी कम कर सकता है। मेजबान देश दक्षिण अफ्रीका भी चीन के इस सुझाव का समर्थन कर रहा है कि ब्रिक्स का विस्तार किया जाना चाहिए। यदि आर्थिक पहलू से देखें तो यह आइडिया बुरा नहीं है, लेकिन भारत की चिंता कुछ और है खासकर चीन का रवैया। चीनी अधिकारियों की टिप्पणियों से इस बात का संकेत मिलता है कि चीन ब्रिक्स का उपयोग एक भू राजनीतिक हथियार के रूप में उपयोग करना चाहता है। चीनी अधिकारी मानते हैं कि ब्रिक्स का विस्तार होता है तो ऐसी स्थिति आ सकती है उसकी जीडीपी जी-7 देशों से अधिक हो जाए। ऐसी स्थिति में यह जी-7 को टक्कर दे सकता है। यानी चीन इसे पश्चिम विरोधी खेमे के रूप में बदलना चाहता है और यही भारत की चिंता है। ब्रिक्स का सदस्य बनने के लिए 23 देशों ने आवेदन किया है। लेकिन भारत की तरफ से संगठन के विस्तार का विरोध किया जा रहा है। हालांकि दक्षिण अफ्रीका का कहना है कि एक विस्तारित ब्रिक्स अलग-अलग राजनीतिक प्रणालियों वाले देशों के एक विविध समूह का प्रतिनिधित्व करेगा, जो अधिक संतुलित वैश्विक व्यवस्था की समान इच्छा साझा करते हैं।