सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने धारा 6ए की संवैधानिकता को बरकरार रखा

पांच न्यायाधीशों की पीठ का 4-1 के बहुमत से फैसला

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने गुरुवार को 4-1 बहुमत के फैसले में नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 6ए की संवैधानिकता को बरकरार रखा है। यह धारा 1 जनवरी, 1966 और 25 मार्च, 1971 के बीच असम में प्रवेश करने वाले अप्रवासियों को नागरिकता प्रदान करती है।

भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने फैसला सुनाया। न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने मुख्य बहुमत की राय लिखी, जबकि मुख्य न्यायाधीश ने सहमति जताते हुए फैसला सुनाया। इसके विपरीत, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला ने अपनी असहमति में विवादास्पद प्रावधान को भावी प्रभाव से असंवैधानिक घोषित कर दिया।
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि किसी राज्य में विविध जातीय समूहों की मौजूदगी ही अपने आप में संविधान के अनुच्छेद 29 (1) (अल्पसंख्यकों के हितों की सुरक्षा) का उल्लंघन नहीं है। सहमति जताते हुए न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि धारा 6ए में “भाईचारे की भावना” समाहित है।

हालांकि, न्यायमूर्ति पारदीवाला ने तर्क दिया कि भले ही यह वैधानिक प्रावधान अपने अधिनियमन के समय संवैधानिक रूप से वैध रहा हो, लेकिन समय बीतने के साथ यह “असंवैधानिक” हो गया है।

धारा 6ए एक विशेष प्रावधान है जिसे 1955 के अधिनियम में “असम समझौते” नामक समझौता ज्ञापन के तहत शामिल किया गया था, जिसे 15 अगस्त, 1985 को तत्कालीन राजीव गांधी सरकार ने 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद असम आंदोलन के प्रतिनिधियों के साथ हस्ताक्षरित किया था।

धारा 6ए के तहत, 1 जनवरी, 1966 से पहले असम में प्रवेश करने वाले और राज्य में “सामान्य रूप से निवासी” रहे विदेशियों को भारतीय नागरिकों के सभी अधिकार और दायित्व प्राप्त होंगे। जो लोग 1 जनवरी, 1966 और 25 मार्च, 1971 के बीच राज्य में आए थे, उनके पास वही अधिकार और दायित्व होंगे, सिवाय इसके कि वे 10 साल तक वोट नहीं दे पाएंगे। इस फैसले का असम की विवादास्पद एनआरसी प्रक्रिया पर महत्वपूर्ण असर पड़ने की संभावना है।

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