
-देवेंद्र यादव-

गुजरात के अहमदाबाद में कांग्रेस का दो दिवसीय अधिवेशन 9 अप्रैल को विभिन्न प्रस्तावों के पास होने के बाद समाप्त हो गया।
कांग्रेस के थिंक टैंक ने गहन मंथन करके कांग्रेस को मजबूत करने के लिए अनेक प्रस्ताव पारित किए लेकिन सवाल यह है कि क्या कांग्रेस के थिंक टेंक ने जो प्रस्ताव पारित किए उनसे कांग्रेस मजबूत हो जाएगी। देश भर के आम कार्यकर्ताओं के मन में क्या संदेह है और क्या बात है, जब तक उस पर ईमानदारी के साथ कठोर और ठोस निर्णय नहीं होगा तब तक कांग्रेस अधिवेशन में लिए गए प्रस्ताव के पास होने के मायने कुछ नहीं है।
कांग्रेस का आम कार्यकर्ता चाहता है कि वर्षों से पीढ़ी दर पीढ़ी कुंडली मारकर बैठे नेताओं को संगठन के पदों से मुक्त किया जाए और जो नेता कांग्रेस मैं रहकर कांग्रेस के साथ गद्दारी कर रहे है उन्हें कांग्रेस से बाहर नि काला जाए।
गुजरात अधिवेशन में शामिल हुए नेताओं पर नजर डालें तो अधिकांश वह नेता थे जो लंबे समय से सत्ता और संगठन की मलाई खा रहे हैं। इन नेताओं से आम कार्यकर्ता और जनता भी नाराज है। यदि श्रीमती सोनिया गांधी कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी के चेहरे पर नजर डालें तो अधिवेशन में पता चल रहा था कि यह नेता खुश नजर नहीं आ रहे थे क्योंकि जिन नेताओं की खिलाफत है वही नेता कांग्रेस के अधिवेशन में श्रीमती सोनिया गांधी मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी के साथ बैठे हुए थे और ज्ञान बांट रहे थे। ऐसे में आम कार्यकर्ताओं को संदेह है कि क्या अधिवेशन के बाद जो प्रस्ताव आए हैं क्या कांग्रेस में राहुल गांधी बड़ा बदलाव कर सकते हैं। जबकि इसी अधिवेशन में यह भी देखने को मिला जो नेता विपरीत परिस्थितियों में लोकसभा का चुनाव जीते थे उन नेताओं को अधिवेशन में कोई बड़ी तवज्जो ही नहीं दी गई। कांग्रेस के कई सांसद अधिवेशन में भटकते हुए नजर आए। उन्हें पूछने वाला कोई नहीं था। अधिवेशन में पूछ उन नेताओं की अधिक हो रही थी जिनका जमीन पर कोई राजनीतिक आधार और अस्तित्व ही नहीं है। या यूं कहें कांग्रेस का पूरा अधिवेशन चापलूस नेताओं के हाथों में था। यह वह नेता थे जिनको लेकर कांग्रेस का आम कार्यकर्ता नाराज है और शायद कांग्रेस भी इन स्वयंभू नेताओं के कारण कमजोर है। क्या राहुल गांधी इन्हीं नेताओं की उपस्थिति को देखकर खुश नजर नहीं आ रहे थे।
इस अधिवेशन के बाद राहुल गांधी के सामने बड़ी चुनौती है। कांग्रेस के आम कार्यकर्ताओं का राहुल गांधी के प्रति आखरी भरोसा भी होगा। यदि राहुल गांधी ने कठोर निर्णय नहीं लिया तो शायद कांग्रेस के आम कार्यकर्ताओं का राहुल गांधी पर से भी अपना भरोसा उठ जाएगा। क्योंकि राहुल गांधी अक्सर कहते रहे हैं कि कांग्रेस के भीतर भाजपा और आरएसएस की विचारधारा वाले लोग शामिल हो गए हैं इसलिए कांग्रेस कमजोर है। उन्हें कांग्रेस से बाहर निकालना होगा। अब तो राहुल गांधी को कांग्रेस के अधिवेशन में खुले मंच से कांग्रेस के वफादार कार्यकर्ताओं का समर्थन भी मिल गया है। ऐसे में यदि राहुल गांधी ने कठोर फैसला नहीं लिया तो, इस बार कांग्रेस का कार्यकर्ता निराश नहीं होगा बल्कि उसका राहुल गांधी पर से भी भरोसा उठ जाएगा। यह राहुल गांधी के लिए बहुत बड़ी चुनौती है क्योंकि कांग्रेस के आम कार्यकर्ता का सब्र का बांध टूटने लगा है। राहुल गांधी चाहें तो कार्यकर्ताओं को टूटने से बचा सकते हैं। मगर शर्त यह है कि राहुल गांधी कठोर फैसला लेकर कांग्रेस संगठन में बड़े पैमाने पर बदलाव करें।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)