यूपी में कांग्रेस का दलित कार्ड ! सफलता के लिए करने होंगे जमीनी स्तर पर काम

उत्तर प्रदेश कभी कांग्रेस का गढ़ हुआ करता था और यहां के बूते पार्टी ने केंद्र में सुदीर्घ शासकीय पारी खेली। उत्तर प्रदेश में ज्यों-ज्यों पार्टी कमजोर पड़ती गई उसका केंद्र की सत्ता पर भी प्रभाव कम होता गया। पिछले विधानसभा चुनाव पार्टी को करारी हार का सामना करना पडा। 403 सदस्यीय विधानसभा में उसके मात्र दो सदस्य पहुंच सके।

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-द ओपिनियन डेस्क-

कंग्रेस अध्यक्ष के चुनावों के बीच पार्टी ने एक अहम कदम उठाया है। उसने उत्तर प्रदेश के लिए नए प्रदेशाध्यक्ष और छह प्रांतीय यानी क्षेत्रीय अध्यक्ष्यों की घोषणा की है। उत्तर प्रदेश कभी कांग्रेस का गढ़ हुआ करता था और यहां के बूते पार्टी ने केंद्र में सुदीर्घ शासकीय पारी खेली। उत्तर प्रदेश में ज्यों-ज्यों पार्टी कमजोर पड़ती गई उसका केंद्र की सत्ता पर भी प्रभाव कम होता गया। पिछले विधानसभा चुनाव पार्टी को करारी हार का सामना करना पडा। 403 सदस्यीय विधानसभा में उसके मात्र दो सदस्य पहुंच सके। ऐसे में पार्टी का राज्य में पुननिर्माण एक अहम चुनौती है। इसीलिए नए प्रदेश अध्यक्ष की घोषणा बहुत ही अहम है। पार्टी ने इस बार कमान बृजलाल खाबरी को सौंपी है।

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बृजलाल खाबरी

बुंदेलखंड अंचल के बड़े दलित नेता

खाबरी बुंदेलखंड अंचल के बड़े दलित नेता माने जाते हैं। खाबरी की नियुक्ति मात्र संयोग है या कांग्रेस की सुविचारित रणनीति का हिस्सा। पार्टी के राष्टीय अध्यक्ष पद के लिए एक उम्मीदवार मल्लिकार्जुन खडगे भी दलित समुदाय से हैं और उनके अध्यक्ष पद पर निर्वाचित होने की प्रबल संभावना है। नामांकन के समय पार्टी के अधिकतर दिग्गज खडगे के साथ खडे थे इससे साफ है कि वे अप्रत्यक्ष रूप गांधी परिवार समर्थित उम्मीदवार हैं। इसलिए राष्ट्रीय अध्यक्ष और देश के सबसे बड़े राज्य में एक दलित नेता को पार्टी के प्रमुख पद पर बैठाना उसकी रणनीति का ही हिस्सा माना जा रहा है। दलित समुदाय उत्तर प्रदेश में पार्टी का सबसे बड़ा वोट बैंक रहा था लेकिन मायावती के उदय के बाद यह धीरे धीरे पार्टी से दूर खिसकने लगा। अब पार्टी उसकी ओर देख रही है तो यह स्वाभाविक है परन्तु उत्तर प्रदेश में उसका यह कदम कई सवाल भी खड़े करता है। खाबरी 2016 में बसपा से कांग्रेस में आए। इसलिए लोग अब सवाल करने लगे हैं कि क्या कांग्रेस के पास नेताओं का भी अकाल हो गया है।

उत्तर प्रदेश में करीब 21 फीसदी दलित मतदाता

उत्तर प्रदेश में दलित मतदाता करीब 21 फीसदी होने का अनुमान है। इसमें से बड़ा हिस्सा बसपा के पाले में जाता था। लेकिन अब यह मायावती से भी छिटकने लगा है और पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा ने भी उसमें सेंध लगाई है। हालांकि दलित वोटर भी कई जातियों व उपजातियों में बंटे हैं लेकिन मायावती के दौरे में यह एकजुट हो गए थे। जाटव वोटर को मायावती या बसपा का कोर वोटर माना जाता रहा है। लेकिन पिछले चुनावों में भाजपा ने सामाजिक समीकरण ऐसे बनाए कि जाटव वोटर उसकी ओर भी मुडने लगे हैं। ऐसे में लगता है कि कांग्रेस अपना खोया हुआ जनाधार फिर से हासिल करने के लिए यह दांव खेला है। यदि राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर खडगे निर्वाचित होते हैं और यूपी में खाबरी रहते हैं तो देशभर में कांग्रेस का एक संदेश जाएगा कि वह दलितों की परवाह करती है। पार्टी के राजनीतिक भविष्य के लिए उसका उत्तर प्रदेश में फिर से मजबूत होना बहुत जरूरी है।

पंजाब में नहीं चला दलित कार्ड

खाबरी कांग्रेस से अब तक दो बार चुनाव लड़ चुके हैं, लेकिन 2017 और 2022 के दोनों ही विधानसभा चुनावों में उन्हें हार का सामना करना पड़ा।कांग्रेस ने इसी साल हुए पंजाब विधानसभा चुनाव में दलित कार्ड खेला था लेकिन आपसी कलह के चलते पार्टी को इसका लाभ नहीं मिल पाया था। पार्टी को वहां सत्ता गंवानी पड़ी थी। पंजाब में दलित मतदता तकरीबन 31 फीसदी हैं लेकिन वहां पर यह कार्ड नहीं चल पाया। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव तो अभी बहुत दूर हैं लेकिन लोकसभा ज्यादा दूर नहीं है इसलिए पार्टी का जमीनी स्तर पर भी इस वर्ग को पुनः जोड़ने के लिए बहुत कुछ करना शेष है।

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