यों ही नहीं है कोटा के दशहरा मेले का आकर्षण

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कोटा के दशहरा मेला का लोगों को साल भर इंतजार रहता है। वैसे भी इस बार दशहरा मेला दो साल के अंतराल के बाद आयोजित किया गया है। इस मेले को लेकर कितनी ही राजनीति और बदइंतजामी की शिकायतें हों लेकिन कोटा वासियों का इस मेले के प्रति लगाव बना हुआ है। शुक्रवार को तो दशहरा मेला परिसर की हालत यह थी कि पैर रखने की जगह नहीं होने की कहावत चरितार्थ हो रही थी। मेले को जिस तरह से चार दीवारी में जकड दिया गया है उससे भीड का दबाव कुछ ज्यादा महसूस होता है। दुकानों की बनावट इस तरह की है कि भीड होने पर जगह बहुत संकरी नजर आती हैं। कोटा के नामचीन पकौडे, चाट, आइसक्रीम, कुल्फी और ढाबे वालों के क्षेत्र में तो निकलने तक की जगह नहीं थी। झूला बाजार तो वैसे भी मेले का सबसे व्यस्त क्षेत्र है। यहां तो कहा जाए तो तिल रखने की जगह नहीं थी। इसके बावजूद देर रात तक लोगों का आना जाना जारी था। मेले के मध्य में बने आकर्षक ढांचे के बीच से मेले के विहंगम दृश्य के फोटो और वीडियो से इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है।

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