
-ए एच जैदी-

(सम्भगीय पर्यटन सलाहकार समिति सदस्य)
कोटा। जल दुर्ग के नाम से विख्यात झालावाड जिले के गागरोन के किले को फिलहाल विकास की दरकार है। हालांकि इस दुर्ग का विकास तो हुआ है लेकिन प्रमुख पर्यटन स्थल और अनोखी विरासत को संजोने के लिए यह विकास पर्याप्त नहीं है। हालांकि आज आप मुख्य दरवाजे से आखिरी भाग राम बुर्ज तक अपने वाहनों से जा सकते हैं। रामबुर्ज से कल-कल बहती काली सिंध दुर्ग की खूब सुरती में चार चांद लगाती है। अंदर के मंदिरों को महलों का जीर्णाेद्वार किया है। लेकिन जोहर कुंड को झाड़ियों ने घेर रखा है। सामने के गांव से दुर्ग के तीनों ओर पानी दिखाई देता है। इस स्थान पर पर्यटकों के लिए व फोटो ग्राफरों के लिये एक पॉइंट बनाया जाना चाहिए।

उल्लेखनीय है कि यह उत्तर भारत का एकमात्र दुर्ग है जो तीन ओर से पानी से घिरा हुआ है और इसीलिए इसे भारत का जलदुर्ग (जल किला) नाम दिया गया है। आश्चर्य की बात यह है कि यह बिना नींव का किला है। इसे वास्तुशिल्प के तौर पर अद्भुत माना जाता है। इतिहासकारों के अनुसार इस किले ने लगभग 14 लड़ाइयां झेली हैं। इसके बावजूद यह जगह शहर के शोरगुल से दूर बहुत ही शांत है। परिवार और मित्रों के साथ कुछ अकेले शांतिपूर्ण समय बिताने के लिए बहुत अच्छी जगह है। किले के एक छोर पर एक गागरोन किला वॉच पॉइंट है जहाँ से लोग दो अलग-अलग नदियों आहू और काली सिंध को एक में निकलते हुए देख सकते हैं। किले के ऊपर से जो दृश्य दिखता है उसे शब्दों में बयां करना बहुत मुश्किल है।

यहां लगे बोर्ड के अनुसार गागरोन दुर्ग का निर्माण आठवीं से 18वीं सदी तक विभिन्न चरणों में हुआ। यहां कई राजाओं का शासन रहा। इनमें अलाउद्दीन खिलजी, शेरशाह सूरी, अकबर, अचल दास खींची और देवन सिंह के नाम प्रमुख हैं। यहां का तलघर, बुर्ज महल और कक्षा रोमांच पैदा करते हैं। यूनेस्को ने 2013 में इसे वर्ल्ड हेरिटेज में शामिल किया था। यहां निवासकरने वाले हीरामन तोते भी अपनी विशेषताओं के लिए जाने जाते हैं। लेकिन अब ये भी लुप्त होते जा रहे हैं।
