
ग़ज़ल
-शकूर अनवर-
चमन में बिजलियों का अब कहीं भी डर नहीं होगा।
मगर ये शर्त रख दी है हमारा घर नहीं होगा।।
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मिलेगा क्या तुम्हें जो अक़्लो-दानिश* आज़माते हो।
जुनूॅं* का मार्काअहले-ख़िरदसे सर* नहीं होगा।।
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वो दिन भी आयेगा किश्ते-मुहब्बत* जब हरी होगी।
ज़मीने-दिल* का ख़ित्ता* फिर कोई बंजर नहीं होगा।।
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तुझे ही दूर करने हैं तेरी दुनिया के सब झगड़े।
तेरा ही हुक्म है अब कोई पैग़ंबर*नहीं होगा।।
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वफ़ादारी अगर होगी वतन के वास्ते दिल में।
यहाॅं फिर कोई भी जयचंद या जाफ़र नहीं होगा।।
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चलो छोड़ो उस आवारा सिफ़त*”अनवर”को क्या ढूॅंढें।
अभी रहने दो उसको वो अभी घर पर नहीं होगा।।
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अक़्लो दानिश*बुद्धिमत्ता, सूझ बूझ
जुनू*दीवानगी
मार्का*लड़ाई युद्ध
अहले ख़िरद*अक्लमंद बुद्धिजीवी
सर होना*जीतना
किश्ते मुहब्बत*प्रेम रूपी खेती
ज़मीने दिल*दिल की जमीन प्यार की धरती
ख़ित्ता*ज़मीन का टुकड़ा
पैग़बर*अवतार ईश्वर के दूत
आवारा सिफ़त*आवारगी के गुण वाला
शकूर अनवर
9460851271