अजब हाल है अब तो अहले-सुख़न* का। जिन्हें ख़ुद समझना था समझा रहे हैं।।

ग़ज़ल

-शकूर अनवर-

सितम ढाने वाले सितम ढा रहे हैं।
हम अहले- तहम्मुल* सहे जा रहे हैं।।
*
किसी को किसी से नहीं कोई मतलब।
यहाँ अपनी अपनी ही सब गा रहे हैं।।
*
हमारी मुहब्बत का आलम तो देखो।
हमें दिन में तारे नज़र आ रहे हैं।।
*
अजब हाल है अब तो अहले-सुख़न* का।
जिन्हें ख़ुद समझना था समझा रहे हैं।।
*
कहाँ है उख़ूवत* कहाँ भाईचारा।
ज़रा सोचिये हम किधर जा रहे हैं।।
*
उधर ज़ुल्फ़ शाने पे उलझी हुई है।
इधर हम भी गुत्थी को सुलझा रहे हैं।।
*
यही इन्क़लाबे चमन* है तो “अनवर”।
बहारों में क्यूँ फूल मुरझा रहे हैं।।
*

अहले तहम्मुल*धैर्यवान
अहले सुख़न*रचनाकार शायर
उखूवत*मेल मिलाप भाई चारा
इन्क़लाबे चमन*उपवन में परिवर्तन

शकूर अनवर
9460851271

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