मेरे सभी फोटो मुझे दे देना…

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अमृता प्रीतम को उनके जन्मदिन पर याद करते हुए ॥

— राजेश्वर वशिष्ठ-

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राजेश्वर वशिष्ठ

आज अमृता प्रीतम जीवित होतीं तो जीवन का शतक पूरा कर चुकी होतीं।

उनका जन्म 1919 में 31 अगस्त के दिन हुआ था। वे हमारे साथ 31 अक्तूबर, 2005 तक रहीं।

उनकी शताधिक पुस्तकें पाठकों के बीच सदा चर्चित रहीं, वे उनके आगमन की प्रतीक्षा करते रहते थे। अपनी निजी ज़िंदगी में वे एकदम बिंदास थीं, कभी कुछ नहीं छिपाया। खोजी पत्रकारों को ध्वस्त करते हुए वे अपने बारे सब कुछ खुद ही उजागर कर देती थीं, लिख देती थीं। यही कारण था कि उनकी आत्मकथा ‘रसीदी टिकट’ हर पाठक ने पढ़ी। उन्हें अपने कृतित्व के लिए भारत सरकार ने पद्मभूषण से भी सम्मानित किया था।

जब 1982 में उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार दिए जाने की घोषणा हुई, मैं राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर में पढ़ रहा था। थोड़ी बहुत पत्रकारिता भी कर लेता था। यह समाचार सुन कर, मैं अगले दिन राजस्थान के एक प्रसिद्ध समाचार पत्र राजस्थान पत्रिका के लिए उनका साक्षात्कार लेने के लिए, उनसे दिल्ली जाकर मिला।

एक 22-23 साल के लड़के को टेप रेकॉर्डर और कैमरा लिए देख कर उन्होंने स्नेह से मेरे सर पर हाथ रखते हुए पूछा- तुम मुझे समझ पाओगे? अभी तो कोई इश्क का तजुरबा भी नहीं होगा तुम्हारे पास। मैं शरमा कर रह गया। मैंने कहा – मैंने आपकी कई सारी किताबें पढ़ी हैं। कुछ को तो रास्ते में पढ़ता हुआ आया हूँ।

उन्होंने बड़े स्नेह से इंटरव्यू दिया और चलते हुए कहा- मेरे सभी फोटो मुझे दे देना, उनसे इश्क मत कर बैठना वरना इमरोज़ का दिल बैठ जाएगा।
पास के कमरे में बैठे इमरोज़ धीरे-धीरे मुस्कुरा रहे थे।

आज वह पुराना चित्र आपके लिए खोजा है।

— राजेश्वर वशिष्ठ

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