
क़तआत (मुक्तक)
शकूर अनवर
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ऐसे ख़ुश रंग* फ़ज़ाओं के वो मंज़र थे कि बस।
ऐसी तस्वीर भी पहले न कभी देखी है।
देखकर वादी ए कशमीर ये हैरत कैसी।
देखने वालो कहीं ख़ुल्दे बरीं* देखी है।।
2
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वो बरखा की रिमझिम वो सावन का मौसम।
वो नदिया की कल कल वो झरनों की सरगम।
ज़रा दूर देखो वो बर्फ़ीले पर्वत।
वहीं चल के गाड़े मुहब्बत के परचम*।।
3
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अगर हो फूल तो काॅंटे भी साथ ही होंगे।
ग़ुरूरे हुस्न* में कमियों का भी ख़याल करो।
हमेशा रोता है ताऊस* अपने पाॅंवों पर।
तुम अपने ऐब* जो देखो तो कुछ मलाल करो।।
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खुश रंग*आंखों को अच्छे लगने वाले रंग
खुलदे बरीं*आला जन्नत, स्वर्ग
परचम*झंडा, ध्वज
ग़ुरुरे हुस्न*सौंदर्य का घमंड
ताऊस*मयूर मोर
ऐब* कमियाॅं
शकूर अनवर
9460851271