राहुल गांधी ने पीएम नरेन्द्र मोदी पर साधा निशाना

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भोपाल। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से बातचीत के बाद ‘आत्मसमर्पण’ करने का आरोप लगाया। यह बात अमेरिका द्वारा ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच समझौता कराने के दावे के बीच कही गई है। भोपाल में कांग्रेस कार्यकर्ताओं के सम्मेलन को संबोधित करते हुए लोकसभा में विपक्ष के नेता ने कहा, ‘ट्रंप का फोन आया और नरेंद्र मोदी जी ने तुरंत आत्मसमर्पण कर दिया, इतिहास इसका गवाह है। भाजपा-आरएसएस का चरित्र यही है, वे हमेशा झुकते हैं।’ राहुल ने कहा कि भारत ने 1971 में अमेरिका की धमकी के बावजूद पाकिस्तान को तोड़ दिया। पिछले कांग्रेस नेतृत्व के साथ तुलना करते हुए उन्होंने 1971 के बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कार्यों का हवाला देते हुए कहा, ‘1971 में एक समय ऐसा भी था, जब अमेरिका का सातवां बेड़ा आया था, लेकिन इंदिरा गांधी जी ने कहा था, ‘मुझे जो करना है, मैं करूंगी।’ उन्होंने कहा, “कांग्रेस पार्टी आत्मसमर्पण नहीं करती। गांधीजी, नेहरू जी, सरदार पटेल जी – ये आत्मसमर्पण करने वाले लोग नहीं हैं, बल्कि ये महाशक्तियों के खिलाफ लड़ने वाले लोग हैं।” भाजपा पर अपने हमले को दोहराते हुए राहुल ने कहा, “मैं भाजपा-आरएसएस के लोगों को जानता हूं। अगर आप उन पर थोड़ा भी दबाव डालते हैं और उन्हें हल्का धक्का देते हैं, तो वे डर के मारे भाग जाते हैं।” उन्होंने दावा किया, “डोनाल्ड ट्रंप ने वहां से फोन किया और कहा ‘नरेंद्र… आत्मसमर्पण करो’। यहां नरेंद्र मोदी ने ट्रंप के इशारे का अनुसरण करते हुए ‘यस सर’ कहा।” उल्लेखनीय रूप से, ट्रंप लगातार दावा करते रहे हैं कि अमेरिकी हस्तक्षेप ने भारत और पाकिस्तान के बीच संभावित परमाणु संघर्ष को टालने में मदद की। दोनों देश युद्ध विराम पर सहमत हुए। भारत ने लगातार इस दावे को खारिज करते हुए कहा है कि न तो अमेरिका और न ही उसके टैरिफ की धमकी ने पाकिस्तान के साथ युद्ध विराम वार्ता में कोई भूमिका निभाई। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने 29 मई को साप्ताहिक प्रेस वार्ता में कहा, “7 मई को ऑपरेशन सिंदूर शुरू होने से लेकर 10 मई को इसके बंद होने तक भारत और अमेरिका के बीच बातचीत होती रही। लेकिन इन चर्चाओं में टैरिफ का मुद्दा कभी नहीं उठा।” विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी स्पष्ट किया था कि भारत और पाकिस्तान परमाणु संघर्ष से “बहुत, बहुत दूर” हैं। एक जर्मन अखबार को दिए एक साक्षात्कार में जयशंकर ने स्पष्ट रूप से पश्चिम की आलोचना करते हुए कहा कि “दुनिया के हमारे हिस्से” में हर चीज को “परमाणु समस्या” से जोड़ने की प्रवृत्ति रही है।

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