जो मिली, जैसी थी, ज़िंदगी जी गये। अब बयाॅं* उसकी मैं दास्ताँ क्या करूँ।।

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फोटो साभार अखिलेश कुमार

ग़ज़ल

-शकूर अनवर-

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शकूर अनवर

फिर वही पाॅंवों में बेड़ियाँ क्या करूँ।
फिर वही गर्दिशे-आसमाॅं* क्या करूँ।।
*
रास आई नहीं ये मुहब्बत मुझे।
अब तुम्हीं कुछ कहो जाने-जाॅं*क्या करूँ।।
*
जो भी थे दिल-नशीं* सब सितमगर* हुए।
कोई भी अब नहीं मेहरबाॅं क्या करूँ।।
*
फूल ख़ुशबू हवा ऐसे बदज़न* न थे।
हो गये सब के सब बदगुमाॅं* क्या करूँ।।
*
कैसी मंज़िल कहाँ का सफ़र कुछ नहीं।
रास्ते, मरहले*, कारवाॅं क्या करूँ।।
*
सर छुपाने को जब कोई छप्पर नहीं।
फिर ये सर पर रखा आसमाॅं क्या करूँ।।
*
ऐसी बिजली गिरी घर का घर जल गया।
रह गया बस धुआँ ही धुआँ क्या करूँ।।
*
जो मिली, जैसी थी, ज़िंदगी जी गये।
अब बयाॅं* उसकी मैं दास्ताँ क्या करूँ।।
*
कोई दर, कोई चौखट मयस्सर नहीं।
कोई मिलता नहीं आस्ताँ* क्या करूँ।।
*
घर के होते हुए जैसे बेघर हूँ मैं।
लामकानी* बता अब मकाॅं क्या करूँ।।
*
खुद ही माॅंगे थे “अनवर” ये दारो-रसन*।
अब अगर खुल गईं रस्सियाँ क्या करूँ।।
*
शब्दार्थ:-
गर्दिशे-आसमाॅं*समय का चक्र
जाने-जाॅं*प्रिय प्रेमिका
दिल-नशीं*दिल में रहने वाले
सितमगर*ज़ालिम
बदज़न*शक़ करने वाला
बदगुमाँ*बुरा खयाल रखने वाला
मरहले*पड़ाव
बयाॅं*वर्णन
ला मकानी* विश्वरूपी घर ईश्वरीय वास
आस्ताँ*चौखट
दारो-रसन*सूली और फाॅंसी का फंदा
*
शकूर अनवर
9460851271

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