
ग़ज़ल
-शकूर अनवर

*
सिर्फ़ हिम्मत से सफ़ीने* को बचाया हमने।
कब किसी को यहाँ साहिल* से पुकारा हमने।।
*
क्या मुहब्बत का ये शेवा* नहीं तुम याद करो।
क्या किसी रोज़ तुम्हें दिल से भुलाया हमने।।
*
क़स्द* मंज़िल का किया फिर कभी पीछे न हटे।
छान मारे कई जंगल कई सहरा हमने।।
*
दिल के जज़्बात* को चेहरे पे उभरने न दिया।
लब पे रक्खा ही नहीं हर्फ़े-तमन्ना* हमने।।
*
दीन* था, दुनिया थी, अपने थे, पराये थे मगर।
ज़ीस्त* का बोझ अकेले ही उठाया हमने।।
*
हम मुहब्बत में फ़क़त* जान से गुज़रे “अनवर”।
मुतमइन* हैं कि ये सौदा किया सस्ता हमने।।
*
शब्दार्थ:-
सफ़ीना*नावों का बेड़ा
साहिल*किनारा
शेवा*तरीका हर्फ़े-स्द*इरादा
जज़्बात*भाव जोश
हर्फ़े-तमन्ना*इच्छा रूपी शब्द
दीन*धर्म मजहब
जीस्त*ज़िंदगी
फ़क़त*केवल
मुतमइन*संतुष्ट
शकूर अनवर
9460851271