
– विवेक कुमार मिश्र-

इन दिनों बारिश चुपके से
तो शोर मचाते हुए आ ही जाती
अरे ! बारिश हो रही है
अभी तो मौसम खुला था,
आकाश धुला धुला चमक रहा था
और फिर घेर लिया, घुप्प अंधेरा छा गया
अब बारिश होगी तो होगी पर अपना क्या
अपने को तो सारे काम करने ही होंगे
बारिश बहाना भर तो नहीं हो सकती
बारिश के साथ ही
नये सिरे से काम धाम के लिए
चाय पी लेते हैं इस तरह से बारिश
एक और मौका दे देती है चाय पीने का
और चाय के साथ दुनिया को देखने का
बारिश हो रही है और बारिश में ही चलना है
बारिश में चलने का अलग ही आनंद है
कदम भीगते भीगते बढ़ते हैं
और बढ़ते बढ़ते रुक भी जाते हैं
बारिश है तो फिर कहां जा रहे हैं
यहीं रुक जाते हैं और चाय पीते हैं
हो सकता है चाय पीते पीते
बारिश रुक जाएं
और चाय के बहाने से
कुछ बारिश पर तो कुछ
देश दुनिया पर बात हो जाएं
इस मौसम में भीगते भीगते
चाय पीने का आनंद ही कुछ और है
बारिश नहीं रुकेगी
तो क्या चाय पीना छोड़ दें
ऐसे कैसे काम चलेगा
हर समय चाय का अपना ही जादू होता है ,
चाय एक तरह से जादू ही है कि
कुछ भी न हो तो भी चाय के साथ
समय चल पड़ता है
आदमी जाग जाता है
और इस तरह से चेतना दौड़ने लगती है कि
चाय पर ही आदमी जाग जाता है
भीगते भीगते चाय पीते हुए
संसार अपने पूरे अर्थ संदर्भ के साथ खुल जाता है ।
– विवेक कुमार मिश्र