
ग़ज़ल
-शकूर अनवर-

कैसी माहौल* में गिरानी* है।
कितनी मुश्किल में ज़िंदगानी है।।
*
क़ाफ़िला खो गया सराबों* में।
“हमको धोखा ये था कि पानी है”।।
*
इसमें मिलना था फिर बिछड़ना था।
बस मुहब्बत की ये कहानी है।।
*
हौसला ही नहीं हो जब दिल में।
कैसे कहदें कि ये जवानी है।।
*
क़र्ज़ चुकता नहीं कभी इसमें।
यही खेती यही किसानी है।।
*
बेवफ़ाई शुआर* है उसका।
उसकी आदत वही पुरानी है।।
*
ऑंख रस्ता है शहरे -उल्फ़त* का।
दिल मुहब्बत की राजधानी है।।
*
दश्तो-सहरा* में है क़याम*अब तो।
लामकानी* ही अब मकानी है।।
*
क्यूँ उबलता नहीं है ख़ून “अनवर”।
क्या हमारी नसों में पानी है।।
*
शब्दार्थ:-
माहौल*वातावरण
गिरानी*मॅंहगाई सख़्ती
सराबों में*मरीचिकाओं में
शुआर*तरीका आदत
शहरे-उल्फ़त*प्रेमनगर
दश्तो-सेहरा*जंगल और रेगिस्तान
कयाम*निवास
लामकानी* विश्वव्यापी घर मकान रहित
शकूर अनवर
9460851271