‘राजा के जमाने की सिविल लाइन्स को देखा हेरिटेज वाॅक के प्रेक्षकों ने …’

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-धीरेन्द्र राहुल-
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धीरेन्द्र राहुल
कोटा शहर की पुरानी इमारतों को देखना है तो राधाविलास, रेतवाली और मोखापाड़ा चले जाइए!
कोटा के गढ़ को घेर कर बनाई गई इन बस्तियों में ही रजवाड़ी जमाने के तमाम एस्टेब्लिशमेंट थे. तमाम ठिकानेदारों , जमींदारों की हवेलियां भी यही थी. इस इलाके को राजशाही के जमाने की सिविल लाइन्स कहा जाए तो इसकी महत्ता को समझने में आसानी होगी.
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हमारे मित्र सर्वेश सिंह हाडा कोटा के विरासत स्थलों के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिए काफी समय से कोटा हेरिटेज वाॅक का आयोजन कर रहे हैं. यह यात्रा तबेला हाउस से प्रारंभ हुई. जिसका निर्माण महाराव उम्मेदसिंह द्वितीय के समय हुआ था. तबेले का मतलब होता है- घुड़साल या अस्तबल. यहां पर शाही घोड़ों को रखा जाता था. देश आजाद होने के बाद यहां माइनिंग विभाग का दफ्तर चलता था. तबेला हाउस का सबसे बड़ा संकट यह है कि इसके मेन गेट के दोनों ओर अतिक्रमणों की भरमार है.अंदर वाले हिस्से में झाड़ झंखाड़ उगे हैं. तबेला हाउस का वैभव तभी लौट सकता है जब प्रशासन अतिक्रमण हटाए.
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हेरिटेज वाॅक के प्रतिभागी हाल ही में ढहाई गई कोटा राज के पूर्व सेनापति दलेल खां पठान की हवेली को भी देखने गए जो मलबे में तब्दील हो चुकी है. इसके बाद काका भतीजे का मंदिर देखा.
इतिहासविद् फिरोज अहमद ने बताया कि पंडित भागीरथ बोहरा ने दो जुड़वा मंदिरों का निर्माण किया था, जिन्हें काका- भतीजे का मंदिर कहा गया. कालान्तर में इन दोनों मंदिरों के बीच से सड़क निकाल दी गई. इन दोनों से भी अधिक भव्य मंदिर इनके सामने ही स्थित है. फिरोज का कहना था कि सन् 1857 की क्रांति के समय के नक्शे में भी काका- भतीजे के मंदिर को दर्शाया गया है.
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अंत में हेरिटेज वाॅक पालक्या हवेली पहुंची.
इस हवेली का निर्माण देवसिंह राठौड़ ने 125 साल पहले करवाया था. वे महाराव उम्मेदसिंह द्वितीय के साथ मेयो काॅलेज में पढ़े थे. उन्हें खानपुर के पास पालक्या गांव की जागीर सौंपी गई थी. तभी से यह परिवार अपने नाम के आगे राठौड़ के बजाय पालक्या लगाता है. पृथ्वीसिंह पालक्या पूर्व महाराव बृजराज सिंह के सेक्रेट्री रहे, जबकि उनके पुत्र हरिसिंह पालक्या कोटा जिला परिषद के सदस्य रहे. वे जिला परिषद में जनहित के मुद्दे उठाने में अग्रणी रहते थे. उनकी मृत्यु के बाद उनके पुत्र भवतारण सिंह पालक्या हवेली का कामकाज देखते हैं.
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इस भव्य हवेली के दो हिस्से हैं, मर्दाना और जनाना. जनाना वाले हिस्से में पालक्या परिवार रहता है जबकि हवेली के आगे वाले हिस्से के सात कमरों को हेरिटेज होटल का रूप दिया गया है. होटल के मैनेजर का कहना था कि अभी तक तो होटल में विदेशी पर्यटक ही ठहरते रहे हैं लेकिन अब भारतीय पर्यटकों के लिए भी इसे खोल दिया जाएगा.अब स्थानीय पर्यटक भी यहां ठहर सकेंगे. हेरिटेज वाॅक में इंटैक के कोटा चैप्टर के अध्यक्ष निखिलेश सेठी, कोटा व्यापार महासंघ के अशोक माहेश्वरी सहित बड़ी संख्या में लोग मौजूद थे. लालबहादुर शास्त्री शिक्षा संस्थान के स्टूडेंट की मौजूदगी भी उल्लेखनीय रही.
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