निखरेगा परकोटे के कोटा का ऐतिहासिक स्वरूप

प्राचीन इमारतों को सहेजने की आकांक्षा

-कृष्ण बलदेव हाडा-

राजस्थान के कोटा शहर को आधुनिक शहर के रूप में संवारने के साथ रियासत काल के परकोटा सहित उसके द्वारों और भीतरी शहर के ऐतिहासिक स्वरूप को निखारने का हर संभव प्रयास किया जा रहा है। इन्ही प्रयासों के तहत पुराने कोटा शहर की ऐतिहासिक धरोहर के रूप में मौजूद प्राचीन इमारतों को सहेजने की आकांक्षा के साथ उनका रियासतकालीन स्वरुप बरकरार रखते हुये कायाकल्प किया जाएगा। रियासतकाल के समय से ही कोटा स्टेट के वाणिज्यिक-विपणन गतिविधियों का केंद्र रहे रामपुरा बाजार की समृद्ध एतिहासिक विरासत को अक्षुण बनाए रखते हुए आधुनिक साजसज्जा देने की तैयारी है। भिन्न-भिन्न राजवंशों की रियासतों के साथ बने राजपूताना (अब राजस्थान) में हाडाअों के इकलौते राज्य बूंदी से अलग होकर सन् 1631 में राव माधो सिंह (1681-1705 विक्रम संवत) के शासनकाल से कोटा राज्य की स्थापना के समय से ही परकोटे के भीतर के हिस्से का गौरवशाली-वैभवशाली इतिहास रहा है।

परकोटे के भीतर के शहर का अपना अलग वजूद

यहां तक कि वर्ष 1947 में देश के आजाद होने के बाद बढ़ती आबादी के साथ परकोटे के भीतर का शहर आस-पास के तात्कालीन गांव कोटड़ी, रामचंद्रपुरा, रायपुरा आदि में अपने पांव पसारने लगा, तब नए आधुनिक शहर के रूप में गुमानपुरा, वल्लभनगर, वल्लभ बाड़ी, भीमगंजमंडी सहित सरकारी एजेंसियों की ओर से वितरित की गई साबरमती कॉलोनी, विज्ञान नगर, दादाबाड़ी,शॉपिंग सेन्टर और वृहद उधोग क्षेत्र श्रीराम रेयंस, डीसीएम फर्टिलाइजर्स एंड केमिकल्स, इंस्ट्रूमेंटेशन लिमिटेड,जेके उद्योग समूह, मल्टीमेटल्स जैसे बड़े उद्योगों की स्थापना के साथ उनकी अपनी आवासीय कॉलोनियों और उन्ही के आसपास अतिक्रमण करके बसाई गई श्रमिकों की कई सारी सघन आबादी की बस्तियों के बावजूद परकोटे के भीतर के शहर का अपना अलग वजूद रहा।

वाणिज्य-व्यवसायिक गतिविधियों का सबसे प्रमुख केंद्र

यहां तक कि परकोटे के बाहर सघन आबादी वाले क्षेत्र विकसित हो जाने के बावजूद वर्ष 1947 में देश की आजादी के करीब तीन दशक बाद तक भी परकोटे के भीतर का शहर वाणिज्य-व्यवसायिक गतिविधियों का सबसे प्रमुख केंद्र बना रहा है। इसका अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि परकोटे के बाहर के लोगों को खरीदारी के लिए जब कभी भी रामपुरा,लाड़पुरा, सब्जी मंडी, ठठेरा बाजार, पाटनपेल, घंटाघर या मकबरा आना होता था तो वे पूछे जाने पर-“” कोटा जा रह् यो छू ” कहकर ही घर से निकलते थे। हालांकि अब हालात बदल गए हैं, लेकिन नहीं बदला है तो वह है-परकोटे के भीतर का ऐतिहासिक वैभव जो बाहरी कोटा के सीमेंट-कंक्रीट के जंगल से कहीं अधिक अपनी प्राचीन प्राचीर व उसके भीतर सिमटी वैभवपूर्ण विरासत के लिए आज भी अपनी तरफ़ लोगों को आकर्षित करता रहा है। इस प्राचीन-पारम्परिक थाती को अक्षुण बनाए रखने के लिये मजबूती के साथ नई आकर्षक साज-सज्जा दी जा रही है ताकि उसकी उम्र बढ़ाई जा सके और यह कार्य करने का बीड़ा उठाया है कोटा (उत्तर) के विधायक और राजस्थान के नगरीय विकास मंत्री शांति धारीवाल ने।

ऐतिहासिक स्वरूप बरकरार रखते हुए सौंदर्यकरण

एक दशक पहले के अपने पिछले कार्यकाल में भी शांति धारीवाल ने पुराने कोटा शहर की प्राचीन इमारतों का ऐतिहासिक स्वरूप बरकरार रखते हुए उनका सौंदर्यकरण करके कायाकल्प करने के अलावा सरोवर टॉकीज के पीछे नया-चौड़ा मार्ग बनाकर पुराने कोटा शहर में प्रवेश की सुगम राह खोली थी। घंटाघर, पाटनपोल की उपेक्षित पड़ी पुरानी इमारतों को सहेजा गया था तो अब इस बार हाडोती का हेरिटेज कहलाने वाली सालीम सिंह की हवेली को भव्य व आकर्षक साज-सज्जा प्रदान की जा रही है तो रियासत कालीन प्राचीन परकोटे के सूरजपोल, पाटनपोल,लाड़पुरा के विशाल प्रवेश द्वारों का सौंदर्यकरण करवाकर आकर्षक स्वरूप प्रदान किया जा रहा है। इन दरवाजों का नया-नव्या बनाने के लिए इनके उपर के हिस्सों में प्राचीन शैली की चित्रकारी उकेरी जा रही है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं)

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