
– बृजेश विजयवर्गीय-
बाघ बहुत जरूरी है परिस्थितिकी विकास के लिए!अंतर्राष्ट्रीय बाघ संरक्षण दिवस हर साल 29 जुलाई को मनाया जाता है जो कि भारतीय संस्कृति के हरियाली अमवस्या के एक दिन बाद आता है। हरियाली और पानी जो कि इन दिनों वर्षा के वरदान के रूप में हमें मिला रहा है, का बहुत गहरा संबंध है जो कि ”अर्थ“ की व्यवस्था से भी समझा जा सकता है। अर्थ के दो अर्थ प्रमुख है एक भूमि और दूसरा धन। पृथ्वी (भूमि) प्रकृति से लदी रहेगी तो धन तो स्वतः ही बरसने लगता है जो कि वर्षा जल के रूप में हम देख ही रहे है। बस अंतर इतना आ गया कि हम पश्चिमी शिक्षा मॉडल की चकाचौंध में पृथ्वी के शोषणकर्त्ता के रूप में सिर्फ पैसे में ही सिमट गए और पृथ्वी को कैसी रखना है भूल गए। वर्तमान हालात में धरती को खोदने की होड़ मची है जससे कि बढ़ता तापमान,गड़बड़ाती खेती,आदमखोर मौसम सामने है।
आज बाघ पर चर्चा हो रही है तो इतना जान लें कि बाघ धरती का खूबसूरत प्राणी है। तभी तो हमारी दुर्गा मां इसी पर सवारी करतीं है। हाड़ौती के मुकुंदरा के जंगल में कभी 1971 तक इतने बाघ होते थे कि दरा की सड़कों पर बाघ आ जाते थे और बस ड्राईवर बसों की खिड़कियां बंद करने की हिदायतें देते थे। अब जब मुकुंदरा टाईगर रिजर्व घोषित हो गया है तो बाघ के दर्शन दुर्लभ हैं । सरकारी बद इंतजामी के कारण मात्र एक बाधिन नाम मात्र उम्मीद बची है जो लम्बे समय से देखी नहीं गई। दो साल पूर्व इन्हीं दिनों चार बाघ बाघिनों और एक शावक की संदिग्घ मौत हो गई जिस पर से आज तक पर्दा नहीं हटा। हम दावे के साथ कह सकते हैं कि तमाम मुश्किलों के साथ आज भी मुकुंदरा का जंगल बाघ के लिए बेहतर है। यहां के चंद गांवों के पुनर्वास की प्रक्रिया काफी धीमी है। जबकि वन विभाग की हजारों हैक्टेयर भूमि अनदेखी के कारण अतिक्रमण की शिकार हो गई। बाघ केवल एक मात्र प्राणि नहीं है,वो गांरटी है कृषि को समृद्ध बनाने की “ अर्थ” व्यवस्था को सुधारने की। गारंटी है पर्यटन विकास की,परिस्थितिकी संरक्षण की। हाड़ौती संभाग में बूंदी के रामगढ विषधारी को बाघ रिजर्व बना कर सरकार ने श्रेष्ट कार्य किया। बारां के शाहबाद का जंगल भी बाघों का बसेरा बन सकता है। झालावाड़ तो मुकुंदरा का प्रवेश द्वार बन सकता है। यहां उल्लेख करना उचित होगा कि मुकुंदरा एवं रामगढ़ में रणथम्भौर के अलावा भी अन्य जंगलों से लाकर बाघों को बसाया जाए अन्यथा इंनब्रीडिंग का खतरा हमेशा बना रहेगा। जैसा कि मुुकुंदरा में बाघों की मौत के समय अधिकृत तौर पर बताया गया था कि वे सभी संक्रमण का शिकार हुए थे। रणथम्भौर के बाघों में एक ही परिवार की संतति फैल रही है। बाघ विशेषज्ञ स्वर्गीय वीके सलवान ,एचवी भाटिया बताते थे कि एक ही संतति परिवार में वंशानुगत बीमारियां फैलने की संभावना ज्यादा होती है। मुझे उम्मीद है बाघो के विशेषज्ञ इस तथ्य पर गौर करेंगे। मुकुंदरा पुनः बाघों की दहाड़ से गूंजे इसी भावना को केंद्र में रख कर बाघ मित्रों का सरकार से अनुरोध है कि यहां पुनःसुरक्षित ढंग से बाघों को बसाया जाए। हाड़ौती के गणमान्य लोगों ने बाघों के लिए लम्बा संघर्ष किया है जो बेकार नहीं जा सकता।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं, यह लेखक के अपने विचार हैं)

















