
-धीरेन्द्र राहुल-

केशवरायपाटन सहकारी शुगर मिल और भोपाल सागर स्थित मेवाड़ शुगर मिल बन्द पड़ी हैं। जबकि गन्ने से उत्पादित इथेनाॅल आज देश की ग्रीन अर्थ व्यवस्था का प्रमुख आधार बन गया है।
सरकार ने 2030 तक पैट्रोल में बीस फीसद इथेनाॅल मिक्स करने का लक्ष्य तय किया था। जिसे घटाकर अब सन् 2025- 26 कर दिया गया है।
अभी 15 प्रतिशत इथेनाॅल पैट्रोल में मिक्स किया जा रहा है जिससे देश को 185 लाख टन कच्चे तेल की जरूरत कम हुई। इस कार्यक्रम से 1,08,655 करोड़ विदेशी मुद्रा की बचत हुई। इसके साथ ही 557 लाख टन कार्बन उत्सर्जन में कमी आई। इससे किसानों को भी फायदा हुआ। उन्हें 92,409 करोड़ का शीध्र भुगतान प्राप्त हुआ। बीस फीसद इथेनाॅल से किसानों को 35 हजार करोड़ से अधिक के भुगतान होने की संभावना है।
लेकिन इस अर्थ व्यवस्था में राजस्थान कहीं नहीं है। इसमें पहले नंबर पर उत्तरप्रदेश, दूसरे पर महाराष्ट्र, तीसरे पर कर्नाटक और चौथे पर तमिलनाडु है। अब चीनी मिलें चीनी और शराब ही नहीं इथेनाॅल भी बना रही है। जिससे उन्हें बहुत फायदा हो रहा है।
अगर भजनलाल सरकार राजस्थान में नई चीनी मिलें लगाने पर नहीं सोच रही है तो कम से कम बंद पड़ी चीनी मिलों को चलाने पर तो विचार करें।
केशवरायपाटन में सहकारी क्षेत्र में सन् 1965 में चीनी मिल की स्थापना हुई थी जो सन् 2002 में बन्द हो गई। इसकी 170 बीघा जमीन है। बरसों से किसान इसे चलाने का आन्दोलन करते रहे हैं।
20 अक्टूबर 2022 को शुगर मिल फैडरेशन की दो सदस्यीय टोली ने केशवरायपाटन में बन्द पड़े प्लाण्ट का निरीक्षण किया था और यह मत व्यक्त किया था कि नवीनीकरण करके ही प्लाण्ट चलाया जा सकता है। यानी अधिक चीनी बनाने की क्षमता, अल्कोहल और इथेनाॅल बनाने के प्लाण्ट के साथ इसे शुरू किया जा सकता है जिसके लिए करोड़ों रूपए की जरूरत पड़ेगी। अब चीनी मिल लगाना घाटे का सौदा नहीं है। लेकिन किसानों को होने वाला फायदा बहुत बड़ा है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं।)
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