
-राजऋषि सिंह हाडा-

झालावाड़ महोत्सव के आयोजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले राजऋषि सिंह हाडा किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। हाडोती विशेषकर झालावाड़ क्षेत्र के इतिहास और यहां के ऐतिहासिक स्थलों के बारे में किया गया उनका कार्य एक मिसाल है। उन्हें इन्साइक्लोपेडिआ कहा जाये तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।झालावाड़ इंटेक के 1985 से 2016 तक कन्वीनर रहे हाडा ऐतिहासिक विरासतों की भरमार और समृद्ध इतिहास के बावजूद पर्यटन के क्षेत्र में हाडोती के पिछड़े होने को लेकर बहुत क्षुब्ध नजर आते हैं। उनका कहना है कि देशी विदेशी पर्यटक बूंदी तक आ जाते हैं लेकिन कोटा, झालावाड़ और बारां नहीं आते। उनका मानना है कि हाडोती को कभी पर्यटन के तौर पर देश दुनिया क्या राजस्थान में ही प्रस्तुत नहीं किया गया। देशी विदेशी पर्यटक जयपुर, जोधपुर, उदयपुर, चित्तोड, जैसलमेर और पुष्कर आ सकता है। यहां तक कि सवाई माधोपुर में बाघ देखने आ जाते हैं लेकिन हाडोती का रूख नहीं करते।
पेशे से एडवोकेट हाडा से शुक्रवार 4 जुलाई को मित्र रवि जैन के साथ उनके झालावाड़ स्थित निवास पर मुलाकात हुई। हाड़ोती की विरासतों के बारे में उनका कहना था कि हाडोती का इतिहास सही तरीके से प्रस्तुत नहीं किया गया। इतिहास में यहां की विरासतों को तवज्जो नहीं दी गई। हमारे यहाँ इस इतिहास को बताने के लिए प्रशिक्षित गाइड तक नहीं हैं। जब इन विरासत के बारे में कोई बताने वाला नहीं होगा तो कैसे पर्यटक आएंगे। उन्होंने कहा कि कोटा तो प्रमुख शहर है लेकिन इसे आज तक औद्योगिक और कोचिंग सिटी के तौर पर ही पेश किया जाता रहा। दुनियाभर में उद्योग हैं कोई पर्यटक उद्योग देखने तो आएगा नहीं। आज दुनिया का ट्रेंड देखिए पर्यटक विरासत देखने जाता है। जहां कि जितनी समृद्ध विरासत है वहां उतने ही पर्यटकों की भरमार है। जब हमारे क्षेत्र को पर्यटन के तौर पर पेश ही नहीं किया जाएगा तो कोई क्यों यहां आएगा।

उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि कोचिंग की वजह से कोटा में हजारों अभिभावक प्रतिवर्ष आते हैं लेकिन क्या उन्हें किसी ने यहां की विरासत के बारे में बताने की कोशिश की। वे चम्बल रिवर फ्रंट देखकर चले जाते हैं जबकि यह कोई पर्यटन स्थल नहीं है। केवल मनोरनजन का स्थल है. यहां तक कि कोटा के शहर के लोगों को ही अपनी विरासत के बारे में पता नहीं है। चाहे यह कोटा कॉलेज, महात्मा गांधी स्कूल, महारानी स्कूल रामपुरा की ऐतिहासिक इमारते हों या छोटी और बड़ी समाध। इन विरासतों की किसे जानकारी है. यहां तक कि गढ़ पैलेस के प्राचीन मंदिर, क्षार बाग तक का अपना इतिहास है। मथुराधीश जी भगवान के मंदिर के इतिहास के बारे में भी ज्यादातर लोग नहीं जानते। यहां के गली कूचों की तो बात करना ही बेमानी है। उन्होंने कहा कि शाहबाद से लेकर बूंदी तक हाडोती में एक से एक विरासत हैं। सातवीं सदी तक की विरासत के प्रमाण उपलब्ध है. इन विरासतों के बारे में जानने और इनको देखने के लिए बहुत वक्त चाहिए। इतना समृद्ध इतिहास शायद ही कहीं मिलेगा।

कोटा में स्कूली और कॉलेज शिक्षा ग्रहण करने वाले राजऋषि सिंह हाडा का सुझाव था कि कोचिंग के भरोसे अर्थव्यवस्था नहीं चलेगी। आज पर्यटन दुनियाभर में बहुत बड़ा व्यवसाय है। इसके लिए पर्यटकों को आकर्षित करना होगा। कोटा में प्रेमजी प्रेम और सेठ जम्बू कुमार जैन ने हाडोती उत्सव का शानदार आयोजन किया। झालावाड़ में झालावाड़ महोत्सव हुआ। ऐसे आयोजन निरंतर किए जाएं ताकि संचार माध्यमों में प्रचार हो। केवल एक दो बार ऐसे आयोजन करने से काम नहीं चलेगा। इसके अलावा कोटा के दशहरा मेला और यहां के चंद्रभागा मेला जैसे आयोजनों को भी प्रचारित करें। पर्यटक जब इनमें शिरकत करेगा तो वह यहां के ऐतिहासिक स्थलों पर भी जाएगा। इन ऐतिहासिक स्थलों के बारे में प्रचार प्रसार किया जाए। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि प्रचार प्रसार के अभाव में कोटा आने वाले लोग अभेड़ा ही नहीं जाते। इतनी शानदार जगह होने के बावजूद यह उपेक्षित है। यह उपेक्षा का भाव ही खत्म होना चाहिए। तभी हम अपनी विरासत को देश दुनिया में पहचान दिला पाएंगे।
(राजऋषि सिंह हाडा एडवोकेट और इंटैक झालावाड के संयोजक रहे हैं। यह लेख उनके साक्षात्कार के आधार पर है। यह लेखक के निजी विचार हैं।)