
-कृष्ण बलदेव हाडा-

राजस्थान में डिस्कॉम जब भी किसी भी तरीके से अतिरिक्त वित्तीय भार थोप कर आम विद्युत उपभोक्ता के लिए बिजली की दरें बढ़ाता है तो एक सुनियोजित साजिश के तहत लगे हाथों प्रदेश में विद्युत की उपलब्धता में भारी कमी का आसन संकट भी खड़ा कर देता है। इसका मकसद यह होता है कि बढ़ी हुई बिजली दर से पड़ने वाले अतिरिक्त वित्तीय बोझ को भुलाकर आम उपभोक्ता इस जुगत में लगा रहे हैं कि उसे तो जैसे-तैसे जरूरत के मुताबिक बिजली मिलती रहे।
राज्य सरकार मूकदर्शक
विद्युत कंपनियां इस षड्यंत्रकारी तरीके से आम उपभोक्ता का बढ़ी हुई बिजली दर के प्रति ध्यान बंटाने में पूरी तरह कामयाब हो जाती है। इससे भी अधिक शर्मनाक स्थिति यह है कि राज्य सरकार मूकदर्शक की तरह समझते हुए भी बिजली कंपनियों की इस साजिश को अंजाम तक पहुंचने देने तक का खेल देखती रहती है। इसे एक जीवंत उदाहरण के रूप में इस तरह समझा जा सकता है कि पिछले बजट में वित्त मंत्री के रूप में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने घरेलू उपभोक्ताओं को 50 यूनिट तक मुफ्त बिजली देने,150 यूनिट तक तीन रुपए, 150 से 300 यूनिट तक दो रुपये प्रति यूनिट पर बिजली देने और उसके बाद भी उपभोग को खपत होने वाली बिजली पर स्लैब के अनुसार अनुदान देखकर उपभोक्ता को सस्ती दर पर बिजली उपलब्ध करवाई थी। मुख्यमंत्री की इस घोषणा के अमल में आने से पहले ही उपभोक्ताओं का सस्ती दर पर बिजली मिलने का हक मारने के लिए डिस्कॉम सतर्क हो गया। उसने तब लगे हाथों फ्यूल सरचार्ज बढ़ाकर आम उपभोक्ता को सस्ती बिजली से वंचित कर दिया। इसके पहले कि विरोध के स्वर उठते, कोयले की कमी के कारण बिजलीघरों के बंद होने से विद्युत संकट पैदा होने का हौवा खड़ा कर दिया और वह भी तब जब उस समय किसानों को सिंचाई के लिए बिजली की खास आवश्यकता नहीं थी और डिस्कॉम की ओर से कोयले की कमी से बिजलीघरों के बंद होने का दावा किया जा रहा था, लेकिन उन स्थितियों में भी निजी क्षेत्र के बिजलीघर तो धड़ल्ले से चल रही थी। उन्हे तो कोयले का संकट नहीं देखना पड़ा और राज्य का यही डिस्कॉम इन्ही बिजलीघरों से महंगी दर पर बिजली खरीद कर उपभोक्ताओं को देकर उन्ही की जेब काट रहा था।
375 करोड़ रुपए का अतिरिक्त वित्तीय भार
अब करीब सात माह बाद वैसे ही हालात पैदा किए गए हैं। तीनों डिस्कॉम ने गुरुवार को अचानक महंगे होते कोयले, बिजली, माल-भाड़े आदि का हवाला देकर फ्यूल सरचार्ज बढ़ाकर आम उपभोक्ताओं पर 375 करोड़ रुपए का अतिरिक्त वित्तीय भार डाल लिया। अब घरेलू उपभोक्ताओं को प्रति यूनिट 11 पैसे अतिरिक्त चार्ज देना होगा। विधानसभा में विपक्ष के उप नेता राजेंद्र सिंह राठौड़ और प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष सतीश पूनिया ने डिस्कॉम की इस साजिश की कड़ी आलोचना की, लेकिन इसके पहले की आम जनता के बीच विरोध के स्वर तेज होते,दो दिन बाद ही शनिवार को यह खबर सुर्खी बन गई कि राज्य के बिजलीघरों की 10 यूनिटों के बंद हो जाने से और उद्योगों व किसानों को सिंचाई के लिए आवश्यकता पड़ने से शहरी क्षेत्र में विद्युत कटौती करनी पड़ेगी।
एक बार फिर डिस्कॉम की साजिश
इसका सीधा सा असर यह होने वाला है कि आम उपभोक्ता सरचार्ज बढ़ाकर उन पर थोपे गए स्थाई वित्तीय भार के प्रति विरोध जताने के बजाय उसका दिमाग बिजली कटौती की स्थाई समस्या की ओर मुड़ जाएगा और वह यह भूल जाएगा कि फ़्यूल सरचार्ज बढ़ने से बिजली के महंगा होने के कारण उसकी जेब अब हर महीने कटने वाली है और उसका ध्यान इस मुद्दे पर केन्द्रीत हो जाएगा कि कैसे भी हो, कटौती नहीं हो। महंगी सही,उसे तो जैसे-तैसे बिजली मिलती रहे ताकि वह अपनी जरूरत को पूरा कर सके। अब एक बार फिर डिस्कॉम की साजिश पहले जैसी ही है।
ठीकरा दूसरों के माथे फ़ोड़ने का एक ओर षड़यंत्र
अभी जब पूरे राज्य में कोरोना महामारी की वजह से दो साल बाद इस तीसरे साल धूमधाम से पांच दिवसीय दीपोत्सव मनाया गया और भरपूर बिजली की खपत हुई तो प्रदेश में कहीं से भी बिजली की कमी की खबर नहीं आई लेकिन जैसे ही डिस्कॉम ने फ्यूल सरचार्ज बढ़ाकर उपभोक्ता की जेब काटी तो उसके असंतोष जताने से पहले ही अचानक बिजलीघरों की 10 यूनिटें भी बंद हो गई, उद्योगों की बिजली की मांग भी बढ़ गई,किसानों को सिंचाई के लिये बिजली की जरूरत आन पड़ी और इसके साथ ही पूरे प्रदेश में विद्युत संकट भी खड़ा हो गया जिससे कटौती की नौबत भी आ गई। अब रहा सवाल किसानों की सिंचाई के लिए बिजली की जरूरत का तो अभी तो अगले कृषि सत्र रबी के लिए खेत हांक कर तैयार करने व ज्यादा से ज्यादा बीजों की बुवाई का काम ही चल रहा है। पानी की पिलाई का तो सवाल ही नहीं तो ऐसे में किसानों को कहां से सिंचाई के लिए अतिरिक्त बिजली की जरूरत पड़ गई? डिस्कॉम अपने षड़यंत्र का ठीकरा दूसरों के माथे फ़ोड़ने का एक ओर षड़यंत्र क्यों रच रहा है? दुर्भाग्य से डिस्कॉम की यह सारी साजिश जयपुर में ही बैठकर रची जा रही है और इसका मुखिया भी राज्य सरकार के मातहत काम करने वाला भारतीय प्रशासनिक सेवा का अधिकारी है लेकिन इसके बावजूद राज्य सरकार इस षड्यंत्र को अमलीजामा पहनाने तक पहुंचने दे रही है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं)

















