हर रंग का क्या महत्व होता है

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-राजेन्द्र गुप्ता-
राजेन्द्र गुप्ता
*होली आई बहार लाई, संग रंगों की बौछार लाई
लाल गुलाबी हरा नीला, और सब है यहां पीला-पीला*
होली को अगर हम अंग्रेजी के सापेक्ष में देखें तो इसका मतलब होता है पवित्रता। यह पवित्रता है इस प्रकृति की, पवित्रता इस धरती की, हमारी पौराणिक संस्कृति की और सबसे खास होली के ढेर सारे रंगों की, जो बसंत के इस अनूठे वातावरण में अपनी छटा से सबको मोह लेते हैं और अपने साथ रंगने पर मजबूर कर देते हैं। रंग रंगीले होते हैं, छबीलें होते हैं, न्यारे होते हैं तो प्यारे भी होते हैं। रंगों में त्याग का भाव होता है। रंग इस प्रकृति के कण-कण में अलग-अलग रूप में बसे हैं। ये रंग होली पर पिचकारियों में नजर आते हैं, घर की रंगोली में नजर आते हैं तो कई बीमारियों के इलाज में भी नजर आते हैं। हर रंग हमसे कुछ कहता है, हर रंग की अपनी एक खासियत है जो हम आपको यहां बता रहे हैं।
लाल रंग-   लाल रंग को सबसे चमकीला रंग माना जाता है। शरीर में रक्त का रंग लाल है, दक्षिण दिशा का रंग लाल है, मंगल ग्रह का रंग लाल है, उगते सूरज का रंग भी लाल है। मानवीय चेतना में अधिकतम कंपन भी लाल रंग ही पैदा करता है। लाल रंग ऊर्जा, उत्साह, साहस, महत्वाकांक्षा, क्रोध, उत्तेजना और पराक्रम, यानि जीत का प्रतीक है। प्रेम का रंग भी लाल है। धार्मिक दृष्टि से भी लाल रंग का बहुत महत्व है। देवी मां की साधना करने के लिए, मंदिर में, रामायण का पाठ करने में लाल रंग की जरूरत पड़ती है। साथ ही हनुमान जी का चोला भी लाल रंग का ही होता है। यह रंग रक्त व हृदय संबंधी समस्याओं, मानसिक क्षीणता को दूर करने में तथा आत्मविश्वास बढ़ाने में सहायता करता है।
गुलाबी रंग-   यह रंग सुंदरता का प्रतीक है। जीवित प्राणियों को प्रभावित करने में गुलाबी रंग का बहुत ही महत्व है, खासकर की यह महिलाओं का पसंदीदा माना जाता है। कई त्याहारों पर पैरों में महावर के रूप में गुलाबी रंग ही लगाया जाता है। सौंदर्य वृद्धि के साथ यह रंग आंतरिक शक्ति और पवित्रता का भी प्रतीक है। गुलाबी रंग को बढ़ोतरी का रंग भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि गुलाबी प्रकाश में पौधे अच्छी तरह उगते हैं व पक्षियों की प्रजनन क्षमता में वृद्धि होती है। ज्वर, छोटी चेचक जैसी बीमारियों में भी गुलाबी रंग के प्रकाश से लाभ होते देखा गया है। प्रसिद्ध जीव शास्त्री विक्टर इन्यूशियन ने मालक्युलर बायोलाजी के नये प्रयोगों के दौरान यह सिद्ध किया है कि गुलाबी रोशनी के जैविक क्रियाकलाप उसकी आत्मिक प्रकृति के साथ संबंध रखते हैं।
हरा रंग-   यह प्रकृति को हर लेने वाला अर्थात् सम्मोहित करने वाला रंग है। पहाड़ों पर वनस्पतियों का रंग हरा है तो जंगलों में पेड़ों का, खेतों में सब्जियों का रंग हरा है तो मैदानों में घास का। सौभाग्य और समृद्धि का यह रंग आत्मविश्वास, प्रसन्नता, ताजगी, हरियाली, सकारात्मकता, गौरव तथा शीतलता का प्रतीक है। यह मोह का रंग है, जब भी कहीं पहाड़ों, खेतों या प्रकृति की हरियाली को देखते हैं तो मन खुश हो जाता है। यह रंग उदास लोगों के चेहरे पर मुस्कान ले आता है। हरा रंग कार्यक्षमता को बढ़ाने में भी मददगार है। ऐसे ही एक बार हवाईजहाज बनाने वाले कारखाने में घास के हरे रंग का प्रयोग किया गया और उस पर कृत्रिम तरीके से सूर्य का प्रकाश डाला गया, जिससे मजदूरों की कार्य क्षमता में व्यापक वृद्धि देखने को मिली। यह रंग तनाव दूर करने में, लिवर, आंत व नाड़ी संबंधी रोगों में तथा रक्त शोधन के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
नीला-   नीला रंग अनंतता का रंग है। इस संसार में जो भी चीज बेहद विशाल और समझ से परे है, उसका रंग आमतौर पर नीला ही है। चाहे फिर वह आकाश हो या गहरा समुद्र। संक्षेप में कहें तो नीला रंग विशालता का प्रतीक है। हमारे शरीर में उपस्थित 90 प्रतिशत जल के रूप में भी नीला रंग है। यहां तक कि श्री कृष्ण के शरीर का रंग भी नीला कहा गया है। धार्मिक और ज्योतिष की दृष्टि से भी इस रंग का काफी महत्व है। नीला रंग प्रेम, कोमलता, विश्वास, स्नेह, वीरता, पौरुषता को दर्शाने वाला रंग है। यह रक्तचाप, सांस संबंधी समस्याओं व आंखों के लिए काफी फायदेमंद होता है।
सफेद-   संस्कृत में सफेद, यानी श्वेत। यह रंग अपने आप में पूर्णता लिये हुए है। इसका कोई अपना रंग नहीं है, लेकिन फिर भी यह दूसरे रंगों को रंग देता है। सफेद रंग अपने अंदर सारे रंगों का समावेश लिये हुए स्वयं में पूर्ण है। यह रंग शांति और शुद्धता का प्रतीक है। यह अशांत को शांत करने का रंग है, विद्या प्राप्ति में सहायक है और जीवन में सकारात्मकता का संचार करने का प्रतीक है। यह हमारे मन और मस्तिष्क को शुद्ध करता है। यह रंग हमें त्याग सीखाता है। इसलिए आध्यात्मिकता का रंग भी सफेद है। यह शांत है, इसलिए सबसे बेहतर है। कहते हैं एक बार यदि आपने सफेद को अपना लिया तो अन्य रंगों से आप स्वतः ही दूर हो जायेंगे। क्योंकि यह अकेला ही आपको रंगों से परिपूर्ण कर देगा।
काला रंग-   जैसे सफेद रंग में त्यागने का भाव है, वैसे ही काले रंग में सबको अपने अंदर समाने का भाव है। सफेद की तरह यह कुछ भी परावर्तित नहीं करता बल्कि सब कुछ सोख लेता है। काले रंग में ग्रहण करने की क्षमता होती है। इसलिए किसी चीज का आत्मसात करने के लिए काला रंग सबसे उपयुक्त है और शिव इसका अच्छा उदाहरण हैं। शिव में खुद को बचाए रखने की भावना नहीं है, वह हर चीज को ग्रहण कर लेते हैं, किसी भी चीज का विरोध नहीं करते। यहां तक कि उन्होंने विष को भी सहजता से पी लिया।
पीला-   यह रंग खुशियों का, प्रेम का, ऊर्जा का और शुभ का सूचक है। भारतीयों ने इस रंग की महत्ता को बहुत पहले ही जान लिया था। इसीलिए हम लंबे समय से शादी-ब्याह तथा अन्य शुभ कामों में पीले रंग का उपयोग होते देख रहे हैं। यह हमारे शरीर की गर्मी का संतुलन बनाए रखने में सहायता करता है। यह रंग आरोग्य, शांति, सुकून, योग्यता, ऐश्वर्य तथा यश को दर्शाता है। यह बौद्धिक विकास को दर्शाता है। मंदबुद्धि बच्चों के अध्ययन कक्ष के लिए पीला रंग बहुत अच्छा होता है, यह डिप्रेशन दूर करने में कारगर है। पेट व आंत के तनाव को दूर करने, पित्त व पाचन संबंधी समस्याओं को ठीक करने, आंख की पुतली के भीतर की झिल्ली को दुरुस्त रखने और विटामिन-बी को बढ़ाने में तथा अत्यधिक मोटे व कफ प्रकृति के व्यक्ति के लिए यह रंग फायदेमंद होता है।
राजेन्द्र गुप्ता,
ज्योतिषी और हस्तरेखाविद
मो. 9611312076
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