कला की उपलब्धियों के नाम समर्पित रहा दिन

कोई कलाकार मूर्त रूप में आकृति रचता है तो कोई उसे अमूर्त रूप में रच रहा होता है। यहां मौलिकता को केंद्र में रखा जाता है। एक कैनवास में जो आकृति दिख रही है उसमें पहाड़ है, घर है और पहाड़ों से आसमान को स्पर्श करते पेड़ यानी कलाकार जो दुनिया हमें सौंप रहा है उसमें प्रकृति का विस्तार है यदि हमारे आस-पास प्रकृति न हों तो जीवन का कोई अर्थ ही नहीं बनता।

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कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य विभिन्न कला शैलियों और तकनीकों का आदान-प्रदान करना तथा कलाकारों को एक साझा मंच प्रदान करना है, जहां वे अपनी कला प्रतिभा का प्रदर्शन कर सकें । तीन दिनों तक चल रहे इस कार्यक्रम में विभिन्न सत्रों के माध्यम से रचनात्मक चर्चाएँ, प्रदर्शनी और लाइव कला प्रदर्शन आयोजित किया गया है।

-स्वरंग चित्रकला वर्कशॉप 

कोटा। राजकीय कला महाविद्यालय, कोटा में तीन दिवसीय स्वरंग कला कार्यशाला का दूसरा दिन कला की उपलब्धियों के नाम समर्पित रहा। कार्यशाला में देश-विदेश के 200 से अधिक चर्चित कलाकारों ने जब कैनवास पर कूची फेरी तो एक से बढ़कर एक आकृतियां उभर कर सामने आने लगी। कला कर्म ईश्वर प्रदत्त एक सर्जनात्मक क्षण होता है जब आप अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि को दृष्टि को समाज को दे रहे होते हैं। कोई कलाकार मूर्त रूप में आकृति रचता है तो कोई उसे अमूर्त रूप में रच रहा होता है। यहां मौलिकता को केंद्र में रखा जाता है। एक कैनवास में जो आकृति दिख रही है उसमें पहाड़ है, घर है और पहाड़ों से आसमान को स्पर्श करते पेड़ यानी कलाकार जो दुनिया हमें सौंप रहा है उसमें प्रकृति का विस्तार है यदि हमारे आस-पास प्रकृति न हों तो जीवन का कोई अर्थ ही नहीं बनता। एक और चित्र ध्यान खींचता है जिसमें राजस्थानी ग्रामीण सजी संवरी सुंदरी का चित्र है जो अपने अद्भुत रंग संयोजन से आकर्षित करता है। वहीं तरह तरह से खींची गई अमूर्त आकृतियां अलग से ही अपनी ओर बुलाती सी हैं। एक चित्र भगवान बुद्ध का है जो अपने भीतर शांति का संदेश लिए हुए है। यहीं एक जड़ काष्ठ शिल्प जिसे डॉ रमेश चंद मीणा तथा डॉ बसंत बामनिया ने एक सप्ताह से अधिक समय देकर जड़ के भीतर प्रकृति कैसे सहज रूप धारण करते हुए अलग अलग आकार लेती है इसे यहां श्वेत श्याम और पीत रंग के साथ मिक्सचर में लाल रंग की आभा के साथ देखा जा सकता है।

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इस तरह कुल मिलाकर यह स्वरंग चित्रकला वर्कशॉप अपने भीतर की भावना को रंगों के साथ खेलते हुए उत्सव रूप में आज दूसरे दिन दिख रही है, इस वर्कशॉप की संयोजक प्रोफेसर शालिनी भारती ने कहा कि कलाकार की साधना समय लेती है और फिर फलित होती है, अभी आपको लगेगा कि यहां तो कुछ है ही नहीं और कुछ देर बाद देखेंगे तो बिल्कुल एक नया रूपाकार आंखों के आगे आ जायेगा और आश्चर्य से बस आप देखते रह जाते हैं। आज कलाकारों ने कला के विविध रूपों और माध्यमों में अपने कार्य को जिस तरह प्रस्तुत किया है उससे विद्यार्थियों को बहुत कुछ सीखने को मिलेगा और इस वर्कशॉप को कलाजगत में लम्बे समय तक याद किया जाएगा। इस कला आयोजन से विद्यार्थियों को कला जगत की बारिकियों को सीखने का अवसर मिलेगा । यह आयोजन कला के क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण सांस्कृतिक मिलन बन गया है।

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कार्यशाला की समन्वयक प्रोफेसर (डॉ.) शालिनी भारती ने सभी अतिथियों , कलाकारों का धन्यवाद ज्ञापित करते हुए सभी प्रतिभागियों और अतिथियों का आभार व्यक्त किया । इस आयोजन में विशेष रूप से अतुल पनासे (दुबई), प्रवीण करमाकर (रांची), अनिता भट्टराई (नेपाल), संजय देसाई (पुणे) और मोमिता घोष (कोलकाता) जैसे प्रसिद्ध कलाकारों ने भाग लिया। मंच संचालन कुशलता से नीता जी ने किया। कार्यक्रम में चित्रकला विभाग के डॉ. सविता वर्मा, डॉ. मनोज वर्मा, डॉ. रमेश चंद मीणा और अन्य संकाय सदस्यों ने अतिथियों का स्वागत एवं सम्मान किया।

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इस कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य विभिन्न कला शैलियों और तकनीकों का आदान-प्रदान करना तथा कलाकारों को एक साझा मंच प्रदान करना है, जहां वे अपनी कला प्रतिभा का प्रदर्शन कर सकें । तीन दिनों तक चल रहे इस कार्यक्रम में विभिन्न सत्रों के माध्यम से रचनात्मक चर्चाएँ, प्रदर्शनी और लाइव कला प्रदर्शन आयोजित किया गया है।
कार्यशाला ने कलाकारों को न केवल तकनीकी ज्ञान प्रदान किया, बल्कि उनके बीच सांस्कृतिक एवं कलात्मक संवाद को भी प्रोत्साहित किया। राजकीय कला महाविद्यालय, कोटा का यह आयोजन कला जगत में एक प्रेरणादायक पहल के रूप में याद किया जाएगा ।

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