कला की उपलब्धियों व मौलिक कार्य के लिए वर्कशॉप को याद किया जाएगा

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-स्वरंग चित्रकला वर्कशॉप 

कोटा।  राजकीय कला महाविद्यालय, कोटा में दिनांक 20 दिसंबर से 22 दिसंबर 2024 तक तीन दिवसीय स्वरंग कला कार्यशाला का तीसरा दिन कला की संगत और कलाकारों के आपसी मिलन तथा एक दूसरे के चित्रों से कुछ नया सीखने की कोशिश करते युवा विद्यार्थी कलाकार दिखें। कार्यशाला में देश-विदेश के 200 से अधिक कलाकारों ने जब कैनवास पर कूची फेरी तो एक से बढ़कर एक आकृतियां उभर कर सामने आने लगी । आज भी लगातार कलाकार अपने चित्र में फिनिशिंग देते हुए देखे जा सकते हैं । सबसे बड़ी बात तो यह देखने में मिली की एक ही कैनवास पर दो से तीन तीन कलाकार अपनी कूची से बारीकीसे से रुपाकार गढ़ रहे थे । यहां यह भी देखने में आ रहा है कि जो बड़ा चित्रकार है उससे चित्रकारी की बारीकियां सीखने की होड़ युवा पीढ़ी के विद्यार्थियों में मची हुई थी ।

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मुख्य अतिथि एडीएम सिलिंग कृष्णा शुक्ला ने कहा कि यह वर्कशॉप युवा कलाकारों में चित्रकारी के प्रति एक नया उत्साह पैदा करेगी । यहां से सभी कलाकार बहुत कुछ सीखकर जा रहे हैं और हम सभी को यहां एक नया अनुभव हो रहा है। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्राचार्य प्रोफेसर रोशन भारती ने बताया कि इस तरह के अवसर कला जगत में नये आयाम को खोलने का काम करते हैं । कला कर्म ईश्वर प्रदत्त एक सर्जनात्मक क्षण होता है जब आप अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि को दृष्टि को समाज को दे रहे होते हैं । कोई कलाकार मूर्त रूप में आकृति रचता है तो कोई उसे अमूर्त रूप में रच रहा होता है । यहां मौलिकता को केंद्र में रखा जाता है । एक कैनवास में जो आकृति दिख रही है उसमें पहाड़ है, घर है और पहाड़ों से आसमान को स्पर्श करते पेड़ यानी कलाकार जो दुनिया हमें सौंप रहा है उसमें प्रकृति का विस्तार है यदि हमारे आस-पास प्रकृति न हों तो जीवन का कोई अर्थ ही नहीं बनता । एक और चित्र ध्यान खींचता है जिसमें राजस्थानी ग्रामीण सजी संवरी सुंदरी का चित्र है जो अपने अद्भुत रंग संयोजन से आकर्षित करता है । वहीं तरह तरह से खींची गई अमूर्त आकृतियां अलग से ही अपनी ओर बुलाती सी हैं । एक चित्र भगवान बुद्ध का है जो अपने भीतर शांति का संदेश लिए हुए है। यहीं एक जड़ काष्ठ शिल्प जिसे डॉ रमेश चंद मीणा तथा डॉ बसंत बामनिया ने एक सप्ताह से अधिक समय देकर जड़ के भीतर प्रकृति कैसे सहज रूप धारण करते हुए अलग अलग आकार लेती है इसे यहां श्वेत श्याम और पीत रंग के साथ मिक्सचर में लाल रंग की आभा के साथ देखा जा सकता है। इस तरह कुल मिलाकर यह स्वरंग चित्रकला वर्कशॉप अपने भीतर की भावना को रंगों के साथ खेलते हुए उत्सव रूप में आज दूसरे दिन दिख रही है, वर्कशॉप की संयोजक व चित्रकला विभाग की विभागाध्यक्ष प्रोफेसर शालिनी भारती ने कहा कि यह वर्कशॉप वर्षों तक याद किया जाएगा जिसमें एक साथ देश विदेश के बड़े चित्रकारों ने युवाओं के बीच चित्रकारी करते हुए उन्हें रंग और कूंची की बारीकियां व रंग का कैसे प्रयोग किया जाता है यह भी समझाया और सीखाया । यह वर्कशॉप अपनी उपलब्धियों और उद्देश्य को लेकर सफल रहा है जिसमें संदेश के साथ साथ रंग के नये नये प्रयोग देखते को मिले हैं। इस अवसर पर मैं यह भी कहना चाहुंगी कि कला साधना समय लेती है और फिर फलित होती है, अभी आपको लगेगा कि यहां तो कुछ है ही नहीं और कुछ देर बाद देखेंगे तो बिल्कुल एक नया रूपाकार आंखों के आगे आ जायेगा और आश्चर्य से बस आप देखते रह जाते हैं। आज कलाकारों ने कला के विविध रूपों और माध्यमों में अपने कार्य को जिस तरह प्रस्तुत किया है उससे विद्यार्थियों को बहुत कुछ सीखने को मिलेगा और इस वर्कशॉप को कलाजगत में लम्बे समय तक याद किया जाएगा। इस कला आयोजन से विद्यार्थियों को कला जगत की बारिकियों को सीखने का अवसर मिलेगा । यह आयोजन कला के क्षेत्र में कला की उपलब्धियों के आदान-प्रदान के लिए जाना जायेगा। एक महत्त्वपूर्ण सांस्कृतिक मिलन बन गया है। वर्कशॉप में विशेष रूप से अतुल पनासे (दुबई), प्रवीण करमाकर (रांची), अनिता भट्टराई (नेपाल), संजय देसाई (पुणे) और मोमिता घोष (कोलकाता) जैसे प्रसिद्ध कलाकारों ने भाग लिया। मंच संचालन कुशलता से नीता जी ने किया। कार्यक्रम में चित्रकला विभाग की डॉ. सविता वर्मा, डॉ. मनोज वर्मा, डॉ. रमेश चंद मीणा डा बसंत लाल बामनिया आशीष श्रृंगी जहां कला जगत को संभाल रहे हैं वहीं संकाय सदस्य डॉक्टर प्रमिला श्रीवास्तव, डॉ चंचल गर्ग, डॉ रसिला डॉ. पूनम मैनी, डॉ संध्या गुप्ता, डॉ संजय कुमार लकी डॉ अनिल पारीक , आदि का रचनात्मक व सर्जनात्मक सहयोग मिलता रहा है। तीन दिनों तक चले इस वर्कशॉप में विभिन्न सत्रों के माध्यम से रचनात्मक चर्चाएँ, प्रदर्शनी और लाइव कला प्रदर्शन आयोजित किया गया है ।

कार्यशाला ने कलाकारों को न केवल तकनीकी ज्ञान प्रदान किया, बल्कि उनके बीच सांस्कृतिक एवं कलात्मक संवाद को भी प्रोत्साहित किया। राजकीय कला महाविद्यालय, कोटा का यह आयोजन कला जगत में एक प्रेरणादायक पहल के रूप में याद किया जाएगा ।

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