कोटा संभाग में बढ़ती सूखे की आशंका

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नहर

-एक समय बीते जुलाई महीने में लगातार कई दिनों तक बरसात का दौर जारी रहने के बाद यह आशंका बनी कि कही अतिवृष्टि की वजह से धान को छोड़कर अन्य फसलों को बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंच सकता है लेकिन जल्दी ही हालात बदल गए और स्थिति अब यह बनी हुई है कि कई दिनों से लगातार बारिश का दौर या तो थम सा गया है या कहीं- कहीं बहुत ही मामूली सी बरसात हो रही है। इसके चलते गैर नहरी क्षेत्रों में सूखे के हालात बनते नजर आ रहे हैं।

-कृष्ण बलदेव हाडा –

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कृष्ण बलदेव हाडा

कोटा। राजस्थान के कोटा संभाग के एक पखवाड़े पहले तक अतिवृष्टि की आशंका से पीड़ित रहे किसान अब खेतों में खड़ी और लगातार मुरझाती हुई फसलों को देखकर बारिश की उम्मीद में बादलों की ओर ताक रहे हैं।
हालांकि कोटा संभाग के नहरी क्षेत्रों में सिंचित क्षैत्र विभाग ने नहरों से पानी छोड़ कर खरीफ की फसल के लिए पानी के प्रबंधक की भरसक कोशिश की है लेकिन गैर नहरी कृषि क्षेत्र में किसान अब मानसूनी बादलों के बरसने की गुहार लगाते हुए नजर आ रहे हैं।
कोटा संभाग में यह स्थिति तब है जब यहां अब तक इस मानसून सत्र में औसत से भी कहीं अधिक बारिश हो चुकी है। कोटा संभाग के सभी चारों जिलों कोटा, बारां, बूंदी और झालावाड़ में इस साल अब तक आधे अगस्त और सितम्बर माह के बाकी रहते औसतन सामान्य से ज्यादा बरसात रिकॉर्ड की गई है। जिलावार आकलन करें तो कोटा में अब तक है 427.7, बारां में 355.6,बूंदी में 377.9 और झालावाड़ में 415.8 मिलीमीटर वर्षा रिकॉर्ड की जा चुकी है लेकिन वर्षा का समय चक्र सही नहीं होने के कारण अब कोटा संभाग के कृषि क्षेत्र में सूखे के हालात बन रहे हैं क्योंकि कई अवसरों पर तो लगातार कुछ दिनों तक भारी बरसात होती रही जिसके कारण फसलों के गलकर खराब होने तक की नौबत आ गई लेकिन बाद में अब ऐसे भी हालात बने हुए हैं जब कई दिन तक बरसात नहीं होने के कारण खेतों में खड़ी फसलों को उनकी आवश्यकता के अनुरूप सिंचाई के लिए पानी नहीं मिल पा रहा है।
इस मामले में सबसे अधिक बुरी स्थिति गैर नहरी कृषि क्षेत्र की है क्योंकि वहां कुओं-ट्यूबवेल जैसे पारम्परिक संसाधनों से सिंचाई के लिए निर्भर रहना पड़ता है लेकिन अभी भी भूमिगत जल स्तर के अपेक्षित उंचाई पर नहीं आ पाने के कारण किसानों को सिंचाई के लिए पानी जुटाने में दिक्कत हो रही है।
चूंकि कोटा बैराज की दोनों मुख्य नहरों से सिंचाई के लिए पानी छोड़ दिया गया है इसलिए नहरों से सिंचित होने वाले बूंदी, कोटा और बारां जिलों के नहरी सिंचित क्षेत्रों में ज्यादा दिक्कत जैसी समस्या नहीं है पर गैर नहरी क्षेत्र के किसानों को मानसून के बादलों के बरसने की जबरदस्त प्रतीक्षा है।
कोटा संभाग में 12 लाख 89 हजार 610 हैक्टेयर बुवाई का लक्ष्य तय था जो लगभग हासिल कर लिया गया था कोटा संभाग में पहली बार ज्वार, बाजरा और मक्का का उत्पादन अधिक होगा। ज्वार 30 प्रतिशत अधिक तो मक्का का रकबा करीब 50 प्रतिशत अधिक होगा। मक्का की बुवाई पिछले साल की अपेक्षा 5 हजार हैक्टेयर में अधिक हुई है।
कोटा संभाग में धान, सोयाबीन और उड़द की फसलों में खरीफ सत्र में बुवाई में कुछ कमी जरूर आई है लेकिन इसके विपरीत मिलेट्स अनाज जैसे मक्का,बाजरा, ज्वार की बुवाई का रकबा बढ़ा है। अगर फसलवार मूल्यांकन किया जाए तो वर्ष 2022-23 में धान का रकबा 136653 हेक्टेयर था जो इस बार घटकर 110957 रह गया है। उड़द का पिछले साल के 138044 हैक्टेयर की तुलना में मामूली गिरावट के साथ 108114 हेक्टेयर रह गया है जबकि मक्का का रकबा जो पिछले साल 104587 था वह वर्ष 2023 में मामूली बढ़ोतरी के साथ एक लाख 84 हजार 11 हैक्टेयर हो गया है। इसी तरह पिछले साल बाजरा का रकबा 2750 था जो अब बढ़कर 4 हजार हेक्टेयर हो गया है जबकि ज्वार का भी 1157 हेक्टेयर के पिछले कृषि क्षेत्र के रखने के मुकाबले इस सत्र में बढ़कर 3100 हेक्टेयर हो गया है। अगर समय रहते आने वाले सप्ताह में ही मानसूनी बादल नहीं बरसे तो गैर नहरी कृषि क्षेत्रों में खरीफ की इन ज्यादातर फसलों को नुकसान पहुंचने की भरपूर आशंका है।

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