
ग़ज़ल
-शकूर अनवर-
थपेड़े तेज़ हवाओं के बार बार लगे।
न डूब पाये कभी हम कभी न पार लगे।।
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हम अपने घर की लगी आग ही में ख़ाक हुए।
ज़माने भर को बड़े चुस्त होशियार लगे।।
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किसी नज़र में कभी तो रहें-बसें हम भी।
ख़ुदारा* दिल की ये कश्ती कहीं तो पार लगे।।
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अब उसका बात न करना भी इक अदा समझूँ।
अब उसकी तल्ख़-कलामी* भी खुशगवार* लगे।।
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ग़ज़ल में लाओ कहीं से भी कोई बात नई।
अलग हो अपना तसव्वुर* अलग विचार लगे।।
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कहाँ तलक़ तेरे ज़ुल्मो-सितम* का ज़िक्र करूँ।
सितारे गिनने का “अनवर” कहीं शुमार* लगे।।
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ख़ुदारा*ख़ुदा के वास्ते
तल्ख़-कलामी*कड़वाहट भरी बातचीत
ख़ुशगवार*आनंदित
तसव्वुर*कल्पना
ज़ुल्मो-सितम*अत्याचार
शुमार*गिनती
शकूर अनवर
9460851271