उछल उछल के ये लहरों का चाॅंद को छूना। समझ सको तो समझ लो इशारे दरिया के।।

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ग़ज़ल

-शकूर अनवर-

shakoor anwar
शकूर अनवर

पड़े हुए हैं अकेले सहारे दरिया के।
बनाके रेत का इक घर किनारे दरिया के।।
*
पड़ी जो धूप तो कुछ ऐसे मछलियां चमकीं।
चमक रहे हों ये जैसे सितारे दरिया के।।
*
उछल उछल के ये लहरों का चाॅंद को छूना।
समझ सको तो समझ लो इशारे दरिया के।।
*
हवा से मौज से तूफ़ा से घिर गई कश्ती।
हमारी नाव पे हमले*थे सारे दरिया के।।
*
ये शोख़-शोख़* सी लहरें ये शोर मौजों का।
बहुत हसीन हैं “अनवर”नज़ारे* दरिया के।।
*
शब्दार्थ:-
हमले*आक्रमण
शोख़*चंचल
नज़ारे*दृश्य
शकूर अनवर
9460851271

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