
– विवेक कुमार मिश्र

जब ठंड के मारे मारे हाड़ तक गल रहे हों
जब एक कदम चलने की हिम्मत न हो
तब भी हजारों हजार किलोमीटर उड़ कर
आते हैं परिंदे, हां परिंदे घर के लिए,
प्रेम के लिए
और-और पृथ्वी से
अटूट लगाव लिए
आ ही जाते हैं
परिंदों ने हार नहीं मानी
अपने पंखों में समेट ली धरती की दूरियां
और नाप ली पूरी पृथ्वी
कहते हैं कि जब कोई
परिंदों की तरह चलता है
तो धरती भी छोटी पड़ जाती
आदमी कुछ करें या न करें
पर परिंदों से जीने की
परिभाषा तो सीख ही लें
चल कर आ ही जाते हैं परिंदे
कहते हैं कि कैसी भी विपरीत हवाएं हों
परिंदे आ ही जाते हैं जीवन को लिए-लिए ।
परिंदे अंतरराष्ट्रीय सद्भाव और भाई चारे के दूत हैं, प्रकृति की अनूठी देन परिंदों से जीने की परिभाषा तो सीख लें की पंक्तियों से कवि हृदय डाक्टर विवेक मिश्र मानवता को शांति का संदेश दिया है