
-विनोद पदरज-

घर के पिछवाड़े बबूल पर
कमेड़ियों का जोड़ा रहता था
शाम होते न होते दोनों लौट आते थे
और सुबह
जब घर के लोग निकलते थे काम काज के लिए
उससे बहुत पहले ही निकल जाते थे
एक रोज़ ऐसा हुआ
कि रात भर
कमेड़ियों के जोड़े के पंखों की फड़फड़ाहट
सुनाई देती रही मां को
केवल उसे पता था कि
कुछ समय पहले ही अंडे दिए थे मादा ने
और शिशुओं ने अपनी चोंच खोली ही थी अभी
क्या हुआ होगा उस रात
बिल्ली डोलती थी आस पास
या भूखे थे सभी
या शिशुओं को तकलीफ़ थी कोई
पता नहीं
बरसों बीत गए
बस इतना याद है
कि उस पूरी रात
मां सो नहीं पाई थी ।
विनोद पदरज
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ग्रामीण जिंदगी में पशु पक्षियों की अहमियत होती थी,इनसे आत्मिक जुड़ाव रहता था और सभी इनके सुख दुख में भागीदार होते थे, कविराज पदरज ने इसी का बारीकी से वर्णन किया है