हम उसे भी गले लगा लेंगे। फूल के साथ कोई कॉंटा हो।।

shakoor anwar
शकूर अनवर

ग़ज़ल

-शकूर अनवर-

दिल जिसे देखकर न धड़का हो।
ऐसा दिन ही नहीं जो गुज़रा हो।।
*
सब यही चाहते हैं अच्छा हो।
किसने चाहा ज़माना ऐसा हो।।
*
डूबना है जिसे वो डूबेगा।
चश्मे मेहबूब’ हो कि दरिया हो।।
*
हम उसे भी गले लगा लेंगे।
फूल के साथ कोई कॉंटा हो।।
*
राज़ दारी का ये तक़ाज़ा है।
राज़ हो और वो भी गहरा हो।।
*
बेवफ़ाई के सब अदब आदाब।
ये भी मुमकिन है वो समझता हो।।
*
अब यहॉं से तो कुछ नहीं खुलता।
शाख़ पर फूल हो परिंदा हो।।
*
इश्क़ की सल्तनत मिले उसको।
उसके सर पर हुमा’ का साया हो।।
*
रात का हिज्र’ जा कहूॅं उससे।
सुबह दम’ सैर को निकलता हो।।
*
कोई समझे तो दिल का हाल उस वक़्त।
ऑंख से जब लहू टपकता हो।।
*
वो ज़माने से क्यूँ डरे ‘अनवर’।
जो सदा अपनी धुन में रहता हो।।
*
चश्मे मेहबूब* प्रेमिका की ऑंख
हुमा* एक काल्पनिक परिंदा जो किसी के सर के ऊपर से गुज़र जाये तो वो बादशाह बन जाता है
हिज्र* जुदाई ,वियोग
सुबह* प्रात: काल

शकूर अनवर
9460851271

नोटः शकूर अनवर साहेब इन दिनों बीमार होने के कारण लगभग एक सप्ताह अपनी रचानाएं पाठकों को उपलब्ध नहीं करा सके। अब फिर से यह क्रम शुरू किया है। हम द ओपिनियन परिवार की ओर से उनके शीघ्र स्वस्थ होने की कामना करते हैं। सं.

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