कवि के यहां

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– विवेक कुमार मिश्र

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डॉ. विवेक कुमार मिश्र

एक कवि कवि से कहीं ज्यादा
आदमी की तरह दिखता है
एक कवि नहीं कहता कि कवि है
कवि होने के लिए कुछ कहने कुछ लिखने
या कुछ घोषित करने की जरूरत कम होती
कवि का कवि होना काफी होता है
कवि को पता होता है कि
कहां चलते चलते रुक जाना है
और कहां से दुनिया को निकाल कर लाना है
कवि की दुनिया में सबके लिए जगह है
वहां चलने के लिए
किसी सहारे की जरूरत नहीं होती
कवि के यहां मानव जाति के संघर्ष दिखते हैं
जीवन पथ की वे सारी कहानियां दिख जाती हैं
जिसमें एक मनुष्य
पूरा मनुष्य की तरह दिखता है
एक कवि कुछ और नहीं
मनुष्य को मनुष्य की तरह पाने के लिए
आंखों में अनंत सपने लेकर चलता है
एक कवि की आंखों में
पृथ्वी की कहानियां
इच्छाओं को लेकर जन्म लेती हैं
और कवि है कि सपनों के पथ पर चला जा रहा है।

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