“मौन का मुखर सौंदर्य: चुप्पियों के पथ पर”

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पुस्तक शीर्षक- ‘चुप्पियों के पथ पर’
लेखक: विवेक कुमार मिश्र
प्रकाशक: वेरा प्रकाशन, जयपुर
पृष्ठ संख्या: 118

‘चुप्पियों के पथ पर’ विवेक कुमार मिश्र का एक गहन और विचारोत्तेजक कविता-संग्रह है, जिसमें 60 कविताओं के माध्यम से कवि ने जीवन-जगत के कई आयामों को आत्मविश्लेषण की दृष्टि से प्रस्तुत किया है। यह संग्रह न केवल काव्यात्मक संवेदनाओं को अभिव्यक्त करता है, बल्कि मौन के गहरे अर्थ और उसके भीतर की आंतरिक गूँज को भी उभारता है। कवि के लेखन में गहन विचारशीलता, संवेदनात्मक गहराई और जीवन के सूक्ष्म पर्यवेक्षण का अनूठा संतुलन है।

‘चुप्पियों के पथ पर’ शीर्षक अपने आप में मौन और उसकी संभावनाओं को इंगित करता है।कवि ने इन चुप्पियों के माध्यम से मनुष्य के अंतर्मन की यात्रा को चित्रित किया है। ये कविताएँ उस मौन की अभिव्यक्ति हैं, जो अक्सर शोर-शराबे की दुनिया में दब जाता है। कवि का यह मौन निष्क्रिय नहीं, बल्कि सक्रिय चिंतन और आंतरिक संवाद का प्रतीक है। संग्रह की कविताओं में मौन के माध्यम से एक अनकहा संसार रचा गया है, जहां शब्द कम और अर्थ व्यापक हैं। ये कविताएँ मौन में निहित संवेदनाओं की भाषा बोलती हैं। जैसे कि ‘चुप्पियों के पथ पर’ कविता में कवि कहता है – “आदमी कुछ नहीं कहता, सब कुछ एक समय के बाद समय कहता है।”

इस संग्रह की कविताएँ एक मौन यात्रा की भांति हैं, जहाँ पाठक को अपने भीतर झाँकने का अवसर मिलता है। कवि के मौन में पीड़ा, संघर्ष, विचार और आत्मान्वेषण का संगीत है। यह मौन केवल अभिव्यक्ति की अनुपस्थिति नहीं है, बल्कि जीवन के गहरे अर्थों की खोज है।

इस काव्य संग्रह की विशेषता यह है कि इसकी कविताएँ एक व्यष्टि (व्यक्तिगत) से समष्टि (सामूहिक) की ओर यात्रा करती हैं। ‘पृथ्वी का विस्तार’ कविता में कवि व्यक्ति और धरती के सह-अस्तित्व की बात करता है, जहाँ पृथ्वी का विस्तार मनुष्य के साथ जुड़ा हुआ है। वहीं, ‘संदर्भ में होना’ कविता में संदर्भ को जीने की बात होती है, जो मनुष्य होने की प्रमुख शर्त बन जाती है।

कवि जीवन की छोटी-छोटी घटनाओं और स्थितियों के माध्यम से व्यापक जीवन-दर्शन को व्यक्त करता है। ‘इच्छाओं का साम्राज्य’ में इच्छाओं की असीमितता और ‘उम्र का क्या रोना’ में जीवन के स्वाभाविक प्रवाह की बात की गई है। कविताओं में निहित यह यात्रा व्यक्तिगत अनुभवों से निकलकर एक सामाजिक और सार्वभौमिक चेतना की ओर अग्रसर होती है।

कवि की भाषा में गहराई और सादगी का अनोखा संतुलन है। विवेक कुमार मिश्र की कविताएँ बिंब और प्रतीकों से सजी हुई हैं। उनकी कविताओं में ‘पेड़’, ‘चिड़िया’, ‘छिपकलियाँ’, ‘सन्नाटे’, ‘बारिश की बूंदें’ जैसे प्रतीकों का प्रयोग उनकी प्रकृति के प्रति गहरी संवेदना को प्रकट करता है। ये प्रतीक मात्र बाह्य प्रकृति के नहीं हैं, बल्कि मनुष्य के भीतर चल रहे आंतरिक संघर्षों और अनुभूतियों को भी प्रतिबिंबित करते हैं।
संग्रह में कविताएँ जैसे ‘सत्य मुक्त कर देता है’, ‘दो कदम चलते हुए’, ‘अंततः माँ के पास’, ‘खिली हँसी’ आदि भावनात्मक और दार्शनिक स्तर पर गहरी छाप छोड़ती हैं। इन कविताओं में कवि का मानवीय दृष्टिकोण और करुणा स्पष्ट झलकती है। ‘सांस-सांस पर देश लिखा होता है’ जैसी कविताएँ देशप्रेम और सामाजिक चेतना को जागृत करती हैं। कवि ने समाज की विडंबनाओं और विसंगतियों को बड़ी संवेदनशीलता के साथ प्रस्तुत किया है।
वियोग की पृष्ठभूमि में करुणा की गूंज और गहन हो जाती है। ‘अंततः माँ के पास’ कविता में कवि का यह भाव स्पष्ट रूप से झलकता है – “अंततः आदमी कहीं भी पहुँच जाए, एक दिन लौटना होता है माँ के पास।” इस करुणा में जीवन के सत्य को सहजता से स्वीकार करने की भावना है।कवि की अभिव्यक्ति में वैचारिक गहराई और भावनात्मक तरलता है, जो पाठक के हृदय को छू जाती है।

‘एक चिड़िया’ कविता में जीवन की सरलता और सौंदर्य का गीत गाया गया है। चिड़िया का गीत- जीवन की जीवंतता का प्रतीक है, जो दुख और विषाद के क्षणों में भी अपनी लय को बनाए रखता है। इसी तरह ‘खिली हँसी’ कविता में प्रकृति की निर्मलता और सहज सौंदर्य का बखान है।

विवेक कुमार मिश्र की भाषा सरल, सुबोध और प्रभावशाली है। उनके शब्द जीवन के अनुभवों को सहजता से बयाँ करते हैं। प्रतीकों और बिंबों का प्रयोग अत्यंत सटीक है। ‘पेड़ की अर्थ-छाया’ और ‘दीवार पर टंगी रहती’ जैसी कविताओं में प्रतीकों के माध्यम से गहरी बातें कही गई हैं।

संग्रह में प्रयोग किए गए बिंब और रूपक पाठक को सोचने पर विवश करते हैं। ‘चाय पक रही है’ कविता में चाय के माध्यम से जीवन की छोटी-छोटी बातों को रचा गया है। कविताओं में लयात्मकता और संगीतात्मक प्रवाह है, जो उन्हें पठनीय और स्मरणीय बनाता है।

यह संग्रह केवल व्यक्तिगत भावनाओं का दस्तावेज नहीं है, बल्कि इसमें समाज और समय की चिंताओं को भी स्थान मिला है। ‘युद्ध चल रहा है’ और ‘अघोषित युद्ध चलता ही रहा’ जैसी कविताएँ समकालीन समाज की विडंबनाओं और संघर्षों को उजागर करती हैं। इन कविताओं में कवि का दार्शनिक दृष्टिकोण स्पष्ट दिखाई देता है।

‘सांस-सांस पर देश लिखा होता है’ कविता में देशप्रेम और कर्तव्यबोध की भावना व्यक्त होती है। कवि का मानना है कि हर व्यक्ति अपने ढंग से देश को जीता और अभिव्यक्त करता है।

निष्कर्षत: ‘चुप्पियों के पथ पर’ एक ऐसा कविता-संग्रह है, जो पाठक को आत्ममंथन की प्रक्रिया से गुजरने के लिए प्रेरित करता है। विवेक कुमार मिश्र की कविताएँ जीवन के जटिल प्रश्नों का उत्तर मौन के भीतर खोजती हैं। यह संग्रह मौन की मुखर अभिव्यक्ति के माध्यम से जीवन-दर्शन, करुणा, और सामाजिक चेतना का एक सुंदर और संवेदनशील चित्र प्रस्तुत करता है।

कुल मिलाकर, ‘चुप्पियों के पथ पर’ संवेदनाओं का ऐसा दस्तावेज है, जिसमें मौन के भीतर एक पूरी दुनिया बोलती है। कवि ने अपनी कविताओं में व्यष्टिगत पीड़ा, समष्टिगत संघर्ष और जीवन के गहरे सत्य को कलात्मक ढंग से प्रस्तुत किया है। यह पुस्तक न केवल काव्य प्रेमियों के लिए बल्कि उन सभी पाठकों के लिए महत्त्वपूर्ण है, जो जीवन की गहराइयों में जाकर सत्य की खोज करना चाहते हैं।विवेक कुमार मिश्र की यह रचना काव्य जगत में एक सार्थक योगदान है, जो लंबे समय तक पाठकों के मन में अपनी गूँज छोड़ती रहेगी।

( समीक्षक व सौन्दर्यविद)

डॉ. रमेश चंद मीणा
सहायक आचार्य – चित्रकला
राजकीय कला महाविद्यालय, कोटा(राजस्थान)
rmesh8672@gmail.com
9816083135

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