जिधर देखो उधर ही आसमाॅं है। उड़ेंगे कब तलक नकली परों से।।

shakoor anwar
शकूर अनवर

ग़ज़ल

शकूर अनवर
मज़ालिम* हो गये ऊॅंचे सरों से।
निकलना ही पड़ेगा अब घरों से।।
*
कहाॅं जाता है पैसा दफ़्तरों से।
ये जनता पूछती है अफ़सरों से।।
*
जिधर देखो उधर ही आसमाॅं है।
उड़ेंगे कब तलक नकली परों से।।
*
हमीं ने इन बुतों को सर चढ़ाया।
हमीं सर फोड़ते हैं पत्थरों से।।
*
कुदूरत* से भरे हैं दिल हमारे।
ज़मीं ख़ाली न थी पैगंबरों* से।।
*
बनेगी फिर कोई ऊॅंची इमारत।
हमें महरूम* करके छप्परों से।।
*
ज़माने में ज़माना घूमता है।
बचा है कौन इसके चक्करों से।।
*
कहाॅं भरता है इनका पेट “अनवर”।
ये लीडर कम नहीं हैं अजगरों से।।

मज़ालिम* ज़ुल्म अन्याय
कुदूरत* घृणा नफ़रत
पैगंबर* ईश्वर के दूत अवतार
महरूम* वंचित

शकूर अनवर
9460851271

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