जीवन के भिन्न-भिन्न रंगों की बारिश है: रंग बारिश

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 – डॉ.रामावतार मेघवाल

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डॉ.रामावतार मेघवाल

“रंग बारिश” लिटिल बर्डस प्रकाशन से प्रकाशित विनय मिश्र की सद्य प्रकाशित ग़ज़ल संग्रह है। ग़ज़ल इक्कीसवीं सदी के तीसरे दौर में प्रविष्ट हो चुकी है लगभग आधा दशक पूरा भी होने जा रहा है। ऐसे में विनय मिश्र का पांचवां ग़ज़ल संग्रह आना ग़ज़ल के चाहने वालों के लिए सुखद अहसास है। विनय मिश्र लोकप्रिय और संवेदनशील ग़ज़लकार के रूप में अपनी पहचान रखते हैं और यह संग्रह उनकी इस पहचान को और पुख़्ता करेगा ऐसी उम्मीद है। विनय मिश्र की ग़ज़लों पर विचार करते हैं तो पता चलता है कि यह संग्रह बगीचे के अलग-अलग रंगों के फूल सजा कर बनाया ऐसा गुलदस्ता है जिसमें रंगों के साथ-साथ फूलों की खुशबू भी बरकरार है।हर ग़ज़ल का अपना अलग तेवर है जिसमें आम आदमी की ज़िंदगी से चुराए अहसास है जिनको ग़ज़ल के रंगों से तरबतर कर वे लगातार इस गुलदस्ते में सजा कर सहृदय को सराबोर करते हैं यही है “रंग बारिश”। आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार साधकों के लिए जो हृदय की मुक्तावस्था हैं, पाठकों के लिए वही रस दशा हैं। विनय मिश्र उसी रस दशा के रंगों की बारिश अपनी ग़ज़लों के माध्यम से करते हैं जिनके रंग में सराबोर पाठक आनंद की अवस्था में पहुंचता है। अपनी इस शीर्षक ग़ज़ल में विनय मिश्र लिखते हैं कि-
“आप हज़ारों रंग की है रंग बारिश
तुम्हारी याद-सी है रंग बारिश
हवा पानी परिंदे पेड़ मौसम
मेरे मन की यही है रंग बारिश “
समकालीन हिंदी ग़ज़ल प्रशासनिक विसंगतियों, अव्यवस्थाओं और तथाकथित भ्रष्टाचार को उजागर करती है।विनय मिश्र की ग़ज़लों में हिंदी ग़ज़ल की ये विशेषता बहुतायत से मिलती है।उनकी ग़ज़लें विरोध का हथियार भी है और आवाज़ भी। दुष्यंत कुमार की ग़ज़लों से स्वर मिलाते हुए वे लिखते हैं कि-
“इस मौसम में सच कहने का सबका लहज़ा सरकारी है,
सब झूठ के आगे झुकते हैं, सारा मौसम दरबारी है
इस जंग में हम भी शामिल हैं,इस जंग में तुम भी शामिल हो
ये वक्त बताएगा किसकी लड़ने की क्या तैयारी है”

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हिंदी ग़ज़ल बहुत शोर-शराबे के साथ अपनी बात नहीं करती,वह दमदारी से अपना पक्ष रखती है।अपना पक्ष मतलब आम-आदमी का पक्ष,गरीब, किसान, मजदूर, शोषित और वंचित वर्ग का पक्ष। हिंदी ग़ज़ल इसीलिए हिंदी ग़ज़ल है क्योंकि वह जनपक्षता के समर्थन में खड़ी है और लड़ी भी है। बकौल डॉक्टर अनिरुद्ध सिंन्हा “समकालीन हिंदी ग़ज़लों में असंतोष,मूल्य के निरंतर ह्रास, व्यवस्था की कुटिलता,राजनीतिक छलना यथास्थितिवाद, परंपरा की वर्जना के विरुद्ध आवाज़ साफ-साफ सुनी जा सकती थी। इन ग़ज़लों में प्रगतिवादी धारा का प्रभाव रहने के साथ-साथ मध्यम वर्गीय जीवन की त्रासदी भी दिखाई देती है।” विनय मिश्र की ग़ज़लें भी इसी परंपरा का पालन करती दिखलाई देती है। उनकी जनपक्षधरता ही उनको वर्तमान समय के ग़ज़लकारों में श्रेष्ठ बनाती है।समकालीन हिंदी ग़ज़ल के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. विनय मिश्र के इस ग़ज़ल संग्रह का शानदार कवर पेज ‘संग्रह के नाम के अनुरूप ही’ और बेक कवर पर संग्रह से ही चुनिंदा शे’र। संग्रह के फ्लेप पर कुसुमलता सिंह की लिखी शानदार भूमिका,भीतर के पृष्ठों पर 110 ग़ज़लें। यह विनय मिश्र का पॉंचवॉं ग़ज़ल संग्रह है अपने शीर्षक के अनुरूप ही रंगो की बारिश करता हुआ।रंग माने सृष्टि,रंग माने दृष्टि, रंग माने जीवन, रंग माने तन-मन, रंग माने खुशियॉं,रंग माने परिस्थितियॉं, रंग माने सब कुछ जिससे ये संसार बनता है यानि जीवन का सप्तरंगी इंद्रधनुष और ग़ज़ल क्या है इस इंद्रधनुष का एक रंग। ” रंग बारिश” की एक-एक ग़ज़ल जीवनानुव से निकला एक रंग है जो हमें जीवन व जगत के किसी रंग से परिचित कराता है। संग्रह के फ्लेप पर कुसुमलता सिंह लिखती हैं कि – विनय मिश्र का पॉंचवॉं ग़ज़ल संग्रह ‘रंग बारिश’ इसी काव्य परिदृश्य पर अपनी विशिष्ट छाप लिए आया है जिसकी ग़ज़लें आज के दौर की ऐसी कलात्मक छवियॉं है जो हमारे मन-मस्तिष्क को गहराई तक उद्वेलित करती है। विनय मिश्र अपनी अभिव्यक्ति का उपकरण भी यथार्थ से लेते हैं और अपने समय के जीवन का भाष्य भी उन गहन संवेदनों से करते हैं जो सार्वकालिक,सार्वभौमिक और वैश्विक होती है।”
“यह समय रोबोट का है यह समय एक.आई.का
इस समय को आदमी की अब जरुरत ही नहीं “
विनय मिश्र की ग़ज़लों में समय की आहट को पहचान कर भविष्य की चोखट को खटखटाने की अद्भुत क्षमता है।वे समय की नब्ज़ को भी भली-भांति पहचानते हैं और उसको रेखांकित करना भी जानते हैं, इसलिए वे लिखते हैं-
“बुरा इस वक्त को लिखता हूॅं पर झूठा नहीं लिखता।
मुझे दिखता अगर अच्छा तो क्या अच्छा नहीं लिखता।

विनय मिश्र की ग़ज़लें संवेदनाओं के नये शिखर पर पहुंच कर जन-मानस को आंदोलित करती है।आपसी छल-छद्म और बाजारवादी मानसिकता हमारे व्यक्तिगत जीवन में कितनी हावी हो गई है,इसकी एक बानगी विनय मिश्र की एक ग़ज़ल में देखिए –
“कितने छल अपनी मुस्कान में रखता है
वो जो मुझको हरदम ध्यान में रखता है
एक नफा नुकसान से ज़्यादा क्या
हूँ में
सोच के वो मुझको सामान में रखता है”

ग़ज़ल का मतला और शे’र दोनों ही मौजूं है। व्यक्तिगत प्रतिद्वंदिता और बाजार किस तरह हावी है। दोनों शे’र इतने वास्तविक है बहुत दूर तक अभिव्यंजित होते बाजार और विनय मिश्र का पुराना नाता है। तकरीबन अपने हरेक ग़ज़ल संग्रह में आपने बाजारवादी मानसिकता, इसके छल-छद्म और इसकी संवेदनहीनता को उजागर करते हुए खूबसूरत शेर कहे है जो इस संग्रह में भी मौजूद है –
” जाल फैलाए हुए बाजार है चारों तरफ
लोग राहत चाहते हैं और राहत भी नहीं”
और
” आपका पैकेज है क्या सुन कर मुझे
वो किसी बाजार का हिस्सा लगा”
दुख,दर्द,पीर,उदासी से ऐसे मनोभाव हैं जो किसी भी व्यक्ति की मनोदशा को अभिव्यक्त करते हैं। इस संग्रह में इन मनोभावों का भरपूर प्रयोग दिखलाई देता है। पूरे संग्रह में दुख, और उदासी को बयां करते हुए अनेक शेर कहे गये हैं

“वो जीवन ही क्या खुशियों पर हो एक उदासी का पहरा
मैं भी सोचूं तुम भी सोचो, यह किसकी कारगुजारी है।”

और

” दर्द को अपने गाऊ में कैसे
ये जो सुरताल पर नहीं आता”

और –

दुखो का आना-जाना क्यों न हो जब
उदासी की कोई खिड़की खुली है।”

इन मनोभावो के प्रतीकात्मक प्रयोग को देख‌कर लगता है कि विन्य मिश्र इक्कीसवीं सदी की बेचैनियो को अभिव्यक्त करने की कोशिश कर रहे हो, जैसे आपातकाल के दौरान दुष्यंत कुमार कर रहे थे। जिस तरह आपातकाल में दुष्यंत कुमार असंतोष, विसंगति, अव्यवस्था और अत्याचार के खिलाफ आक्रोश की ग़ज़लें प्रतिरोध का स्वर बनाकर सामने आई थी,उसी तर्ज पर विनय मिश्व की ग़ज़लें भी उसी शैली और तर्ज पर बाजारवादी संस्कृति, बढ़ता हुआ सांस्कृतिक प्रदूषण,वर्तमान की उदासी और विकसित हुए नये मूल्यों से उत्पन्न हुए आक्रोश के प्रति अपना स्वर उत्पन्न करती है। जिस पूंजीवादी व्यवस्था में, अमीर और ज्यादा अमीर, गरीब और ज्यादा गरीब होता जाता है। लेकिन उदासी के इस वातावरण में भी विनय मिक्ष उम्मीदो का दामन नहीं छोड़ते।

दुष्यंत कुमार ने कभी कहा था-
वे मुतमइन है कि पत्थर पिघल नहीं सकता
मैं बेकरार हूं आवाज में असर के लिए”

उसी तरह विनय मिश्र लिखते हैं-
“अंधेरो की कहानी का असर बेरंग करने को उमीदो की सुबह का मेरे दिल में रंग है अनुपम”

और-

इन अंधेरी बस्तियो में रोशनी आई
सबके मन में जब उगा उम्मीद का सूरज ।”

रंग बारिश की ग़जलों की भाषा और कहन पर बात करें तो पूरा संग्रह ही सराहनीय है। विनय मिश्र ने आम बोलचाल की भाषा का सुंदर और सशक्त प्रयोग किया है। हिंदी-अंग्रेजी के शब्दों के साथ ही अरबी-फारसी के शब्दों का अनुपम संयोजन है। विनय मिश्र ने इस संग्रह में ग़ज़ल की बड़ी बहरों की खूब प्रयोग किया है। आधु‌निक कविता की सबसे बड़ी विशेषता प्रतीक एवं बिंबों का यहाँ भरपूर और सार्थक प्रयोग दिखलाई देता है। अनेक दृश्य और भाव बिंब है जो सहजता से मन में उतर जाते हैं। इस संग्रह पर एक पूरा लेख भाषा, प्रतीक और बिंबों पर लिखा जा सकता है।

छंदमुक्त और छंदयुक्तता के इस प्रतिस्पर्धी दौर में विनय मिश्र के इस गज़ल संग्रह का स्वागत है। विनय मिश्र ने इस संग्रह के माध्यम से हिंदी ग़ज़ल के आंदोलन को धार दी है।। हिंदी ग़ज़ल के प्रति आपकी प्रतिबद्धता में यह संग्रह ऊर्जा लेकर आएगा ऐसी उम्मीद है।

डॉ. रामावतार मेघवाल
आचार्य हिंदी
राजकीय कला महाविद्यालय कोटा
ग़ज़लकार – विनय मिश्र
पुस्तक – रंग बारिश
प्रकाशक- लिटिल बर्ड पब्लिकेशन नई दिल्ली

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