मुझसे बेहतर कहने वाले, तुमसे बेहतर सुनने वाले…

whatsapp image 2025 09 24 at 12.40.29
photo courtesy Amazon.in

-Hafeez Kidwai

whatsapp image 2025 09 10 at 21.25.33
हफीज किदवई

कल और आएंगे नग़मों की खिलती कलियाँ चुनने वाले,

मुझसे बेहतर कहने वाले, तुमसे बेहतर सुनने वाले….

मैं अक्सर सोचता हूँ कि अगर हम ही नही याद करेंगे,तो भला कौन करेगा उन्हें याद। जब हम अपनी तारीख़, अपना अदब,अपनी तहज़ीब को ही नही बताएंगे,तो कौन बताएगा। कोई भी ऐरा गैरा खड़ा होकर कहेगा कि हम में जिहालत भरी पड़ी है,तब यार हमें ही खड़े होकर कहना होगा कि न कभी हमारी तारीख़ सियाह थी,न हमारा आज बद्तर हुआ है और न ही आने वाला कल धुंधला है। एक ज़माने में घर घर “मसरूर जहाँ”  को पढ़ा जाता था। हमारी चौखट की यह बुज़ुर्ग 22 सितम्बर 2019 को हमें छोड़ गई थीं।

उनके जाने के बाद उर्दू अदब में इतनी बड़ी जगह खाली हुई, जिसकी भरपाई हो ही नही सकती । ताज्जुब तो यह है लखनऊ में डूबे उर्दू के इस सूरज से कहीं भी मायूसी का अंधेरा नही छाया । बदनसीबी लोग उनको ज़िन्दगी में जान ही नही पाए । साल के साल गुज़रे,उनपर बात ही नही सुनी,न कोई याद करता मिला । मगर इस बात पर यक़ीन तो है कि पहाड़ कोई देखे या न देखे,पहाड़ ही रहते हैं ।

whatsapp image 2025 09 24 at 12.40.42
मसरूर जहाँ

जब लोग एक दो नावेल लिखकर इतराते नही फिरते तब 65 नावेल और 500 के ऊपर शार्ट स्टोरीज़ लिखकर यह शख्सियत दुनिया ए फ़ानी से कूच कर गई। उनके इंतेक़ाल से पहले लखनऊ में उनकी शार्ट स्टोरीज़ का एक कलेक्शन सन 2018 में “नक़्ल मक़ानी” मंज़रे आम पर आया था । किसे पता था यह आख़री ही है । अब उनकी कहानियां उनकी ख़ुद की कहानी में जा मिलेंगी । हम जैसे तो किस्मत वाली वह आख़री पीढ़ी थे,जिन्होंने उनके साय में ज़िन्दगी की शुरआत की थी । दुनियाभर में बहुतों ने इनपर पीएचडी की,यही नही जावीद खोलोव,
तजाकिस्तान यूनिवर्सिटी के जो लंबे वक़्त तक वाइस चांसलर रहे, उन्होंने भी इनपर ही पीएचडी की थी । आपको हैरत होगी कि अदब की यह शख्सियत जिसपर लोग पीएचडी कर रहे थे,वह खुद हाईस्कूल के आगे का मुँह नही देख सकी थीं,मगर तालीम के जज़्बे ने उनके दिल में ही यूनिवर्सिटी खड़ी कर दी । घर आंगन के तमाम फ़र्ज़ों के बीच उन्होंने अदब की जड़ मे खूब खाद पानी डाला ।

लखनऊ के पास फतेहपुर में पैदा हुई और लखनऊ में ही शुरुआती तालीम हासिल करने वाली शख्सियत लखनऊ में तालकटोरा के कब्रिस्तान में सो रहीं। जिस रोज़ उनको माटी के सुपर्द किया जा रहा था,लखनऊ बारिश में भीग रहा था,ऐसे की आंसू आंसू न जान पड़े । जब शहर नही रोया,तो बादलों ने सारी ज़मीन ही नम करदी । उनके वालिद नसीर हुसैन “ख्याल” भी आला दर्जे के शायर थे। उनकी परवरिश ने ही अपनी बच्ची में वह बीज बोए जो अदब का भरा पूरा बाग़ हुईं ।

उनकी पहली नावेल रूमा 1965 में पब्लिश हुई । भारत पाकिस्तान और कनाडा में बराबर से उनकी कहानियाँ छपती रहीं हैं । दुनिया के हर कोने में जहाँ उर्दू पहुँची वहाँ लखनऊ के आंगन की ज़ीनत वह मशहूर कलम “मसरूर जहाँ” भी पहुँची । लोगों ने उनकी कलम को पलकों पर बैठाया ।

किताबों की एक लंबी फेहरिस्त और ज़िन्दगी के हर तजुर्बे को हमारे लिए छोड़कर मसरूर जहाँ साहिबा सुक़ून की तरफ लौट गईं । उनका जाना और जाने पर यूँ बिखरी खामोशी और ऐसी खामोशी की साल दर साल गुज़रते गए,मगर उनका ज़िक्र भी नही सुना । इसने हमे उलझन में तो डाला,मगर जल्द ही हमने भी मान लिया,की दुनिया किसको किसको याद करे,कब कब याद करे । यह तो उनका फ़र्ज़ है, जो उन्हें जानते थे,मानते थे,समझते थे,वह तो ज़िक्र करें।

मसरूर आपा,हाँ आपा क्योंकि वह किसी की आंटी थी, तो किसी की आपा, किसी की दादी, तो किसी की नानी,वह इन्ही रिश्तों के बीच चोटी की राइटर थीं । मसरूर आपा के बारे में मुझे सबसे पहले मेरे नाना ने बताया,दादीअम्मी तो आख़री तक उन्हें पढ़ती ही थीं। इसलिए,वह घर की कलम रहीं । उनका न होना अफ़सोसनाक तो है मगर वह अपनी ज़िन्दगी से बहुत ज़्यादा काम कर गई । आज नही तो कल उनको ढूंढा जाएगा,जब उनकी कलम तो मिलेगी मगर वह नही,कभी नही …ख़ुशी भरी उम्मीद यह है कि उनकी नवासी ने हमसे कहा था कि उनके पूरे काम को उर्दू से अंग्रेज़ी में अनुवाद करके लाएंगे। जब यह दरवाज़ा अंग्रेज़ी और हिंदी की गलियों में खुलेगा,तब मसरूर जहाँ की आंधी आएगी,मेरी बात याद रखियेगा।

चोटी की अफसानानिगार नॉवेलिस्ट मसरूर जहाँ को उनकी यौम ए वफ़ात( 22 सितम्बर,2019) पर खिराज ए अक़ीदत । हम सब एक रोज़ ऐसे ही कब्रिस्तान में सो रहेंगे,नीम ख़ामोशी के साथ….ज़िन्दगी का कुल जमा हासिल यह है कि मसरूर जहाँ को देखा है, उनकी छांव में रहे हैं,जिसका असर रहेगा ताज़िन्दगी….
(मसरूर जहाँ का फोटो एवं आलेख हफीज किदवई की फेसबुक वॉल से साभार)

Advertisement
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments