
ग़ज़ल
-शकूर अनवर-

फिर कामयाब देखिये शैतान हो गया।
फिर अपना देश हिन्दू-मुसलमान हो गया।।
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ये वो ज़मीन है जहाँ “मोहन” के इश्क़ में।
“मीरा” बनी कोई, कोई “रसख़ान” हो गया।।
चलिये किसी के ख़ूॅं से बुझी तो किसी की प्यास।
चलिये किसी की मौत का सामान हो गया।।
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अब तो घरों में भूख ग़रीबी मुक़ीम* है।
इफ़लास* मुस्तक़िल* यहाँ मेहमान हो गया।।
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सौ फ़ायदे हुए हों मेरे क़त्ल से तुम्हें।
लेकिन यहाँ तो जान का नुक़सान हो गया।।
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अब तो हुकूमतों की सियासत अजीब है।
कल तक जो राहज़न* था वो सुल्तान हो गया।।
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जीने का इक हुनर भी मयस्सर* नहीं हुआ।
अलबत्ता मरना अब हमें आसान हो गया।।
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रंगों में जानवर में भी अब धर्म बॅंट गये।
“अनवर” ये कैसा लोगों का ईमान हो गया।।
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शब्दार्थ:-
मुक़ीम होना*रहना बसना
इफ़लास* दरिद्रता ग़रीबी
मुस्तकि़ल*स्थाई
राहज़न*लुटेरा डाकू
मयस्सर होना*प्राप्त होना
शकूर अनवर
9460851271