
-प्रो अनिता वर्मा

चलना मनुष्य की क्रियाशीलता की निशानी है । चलते रहना मनुष्य को गति के साथ ऊर्जा प्रदान करता है आलस्य थकान दूर कर काम के प्रति रुचि पैदा करता है। किसी ने कहा भी है- ‘जो बैठ गए है राहों में ,…वे बैठे ही रह जाते हैं चलने वाले अक्सर अपनी मंजिल पाते है.. जीवन चलने का ही नाम है। चलने से ही सब कुछ संचालित होता है जो अन्ततः गंतव्य तक पहुँचाता है। कभी कभी ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ जाता है मन किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाता है समझ नहीं आता क्या करें …क्या न करें ..किससे सलाह लें बात करें। उस क्षण लगता है सोचने विचारने की शक्ति चुक सी गई है, कुछ भी सूझता नहीं है ऐसी परिस्थिति में स्वयं को संभालना बड़ी चुनौती का कार्य होता है।उस क्षण आप जब स्वयं को नियंत्रित करके लक्ष्य की और चल पड़ते हो यकीन मानिये जिस तनावपूर्ण स्थिति से हम अब तक जूझ रहे होते हैं वो एक पल में ग़ायब हो जाती है। तनाव रहित होकर हम उन स्थितियों से लड़ने के लिए तैयार हो जाते है जिन से हम भाग रहे होते है, यही चलना है। चलना केवल पैर से नहीं होता। चलने का अर्थ है मन का चलना, गतिमान होना जो हमें उत्साह उमंग से पूरित करता है। अभी इन दिनों मुझे यह विचार रह रह कर आ रहा है। इसके पीछे वह सब स्थितियाँ है जिनका उल्लेख ऊपर किया गया है। हम सब इन से दो चार अवश्य होते हैं। एक निर्माणाधीन रोड पर मुझे कार लेकर जाना पड़ा। एक तरफ की सड़क खुदी पड़ी थी। जिस सड़क से आवागमन चालू था वहाँ दो वाहन मुश्किल से आ जा सकते थे। सड़क के दूसरे किनारे पर गहरा नाला था;जरा भी इधर उधर हुए दुर्घटना होने का भय। अन्य कोई जाने का मार्ग भी नहीं था। आते समय रास्ता साफ था पर लौटते समय सामने एक ट्रॉली और दो बड़ी बस फंस गए थे। कार के आसपास बाइक सवार आगे जाने को बेताब थे। कार बीच में फंस गई अब क्या करें ? ऐसी स्थिति पहली बार बनी। थोड़ी देर मन विचलित हुआ धीरे धीरे रास्ता खुला हिम्मत करके धीरे धीरे कार आगे बढाई। रास्ता मिलता गया। हम आगे अपनी राह बढ़ चले थे। चिन्ता के बादल छँट गए थे। मन में अब सुकून था। रुकी कार चल पड़ी थी। बस मन के इस विचलन को पुश करने या कहें हिम्मत रूपी धक्का लगाने की जरुरत होती है।
यही हिम्मत आपको गति प्रदान करती है। चाहे कैसी भी परिस्थिति हो निरंतर गतिमान रहना जरुरी होता है। जीवन यात्रा विविधताओं से भरी है। इस यात्रा में विविध परिस्थितियों का सामना हमको करना पड़ता है। जो इन परिस्थितियों का सामना करते हुए अपने निर्धारित पथ पर चलता रहता है वही अपने लक्ष्य को प्राप्त करता है । मन का विचलन ही आपकी ऊर्जा, कार्यक्षमता , गति, उत्साह, प्रसन्नता सबको प्रभावित करता हैं। घर, परिवार, समाज और सम्पूर्ण परिवेश में जहाँ जहाँ हमारा जुड़ाव होता है। वहाँ हमारे मन का सक्रियता के साथ संपृक्त होना जरुरी होता है। समस्त संसार के खेल मन की गति के ही तो है। यही हमें निरंतर संचालित करता है, चलायमान बनाता है। कई बार हमारे मन मस्तिष्क पर अवचेतन में समाया चिन्ता का भाव प्रभावी हो जाता है। समझ नहीं आता क्या करें। कहीं मन नहीं लगता मानों कुछ समय के लिए सब कुछ रुक सा जाता है। संसार निस्सार प्रतीत होता है। ऐसे में आवश्यक है कि मन को नियंत्रित कर परिस्थितियों को समझे। दृढ निश्चय के साथ हिम्मत जुटाते हुए अपने लक्ष्य की और आगे बढ़ें। सब कुछ एक क्षण में चल पड़ता है, निराशा के बादल छँट जाते है,मन प्रसन्नता से भर जाता है । परिस्थितियां मनुष्य को संघर्ष से जूझना सिखाती हैं बशर्ते मनुष्य में नैराश्य का भाव प्रबल नहीं होना चाहिए। विपरीत परिस्थितियों में निरंतर चलने का भाव ही ताकत बनता है। चलने के साथ ही लक्ष्य प्राप्ति का मार्ग भी अग्रसर होता रहता है। जब मन चलायमान रहता है तो तन स्वतः ही संचालित होता है। साथ में उत्साह उमंग भी भरपूर होता है। सफलता की समस्त सीढ़िया निरंतर चलने या कहें सक्रिय होने से ही अपने सर्वोच्च शिखर तक पहुंचती है। हमने कई बार घर, परिवार, मित्रों को कहते सुना है कि ..मन नहीं लग रहा ..पूछने पर जवाब मिलता है पता नहीं ? ये पता नहीं का भाव ही मनुष्य की सक्रियता को रोककर उसे निष्क्रिय बनाता है। इससे निकलना जरुरी है। अन्यथा चिंता, निराशा, अवसाद, विचलन, उदासी मानव मन को घेरने को तैयार रहते है। कभी किसी परिस्थिति में किसी कारण मन की गति अवरुद्ध होने लगे या यूँ कहे ठहराव सा आने लगे तो तुरंत लंबी श्वास लेते हुए मजबूती के साथ आत्मबल जुटाते हुए चल पड़े । फिर देखिये जादू एक क्षण में सब कुछ सामान्य हो जाता है। कोई भी स्थिति, परिस्थिति या ,समस्याएं स्थायी नहीं होती समय के साथ उसका समाधान भी हो जाता है । जीवन संभावनाओं से भरा हुआ है । अमूल्य है अतः सकारात्मकता और प्रसन्नता के साथ सदैव चलते रहें यही चलने का भाव सामर्थ्य ही ज़िन्दगी है ।
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प्रो अनिता वर्मा
संस्कृति विकास कॉलोनी- 3
भीमगंजमंडी
कोटा राजस्थान