अमित पारीक
कोटा। कोचिंग सिटी कोटा के नयापुरा स्थित गांवडी क्षेत्र से दो बच्चों के अपहरण का मामला अभिभावकों के साथ समाज के लिए भी चिंता बढाने वाला है। हालांकि इस मामले में पुलिस की सक्रियता से बच्चों को समय रहते तलाश कर आरोपी को गिरफ्तार कर लिया लेकिन पुलिस की जांच में जो तथ्य सामने आए हैं उसके अनुसार अपहर्ता इन दोनों बच्चों को टॉफी दिलाने के बहाने ले गया और फिर उसका इरादा इन बच्चों को दिल्ली ले जाने का था। आरोपी परिवार का परिचित था और परिजनों को बताकर ही बच्चों को ले गया था। लेकिन जब कई घंटे तक बच्चों को लेकर नहीं लौटा तो परिजन चिंतित हुए और पुलिस ने सीसीटीवी की जांच कर आरोपी को धर दबोचा। हाल ही में राजस्थान में अध्यापक की पिटाई से एक छात्र की मौत के मामले ने प्रदेश की राष्टीय स्तर पर बहुत बदनामी कराई है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल बच्चों की सुरक्षा का है। बच्चे अपराधियों के सबसे आसान शिकार होते हैं क्योंकि न तो उनमें खतरे को भांपने की उतनी समझ होती है और न विरोध करने की शारीरिक शक्ति। भारत में बच्चों के अपराधियों के आसान शिकार होने का अंदाजा इन आंकडो से ही लगाया जा सकता है। आंकडो के अनुसार 2020 में प्रतिदिन साढे तीन सौ से अधिक बच्चों के खिलाफ अपराध हुए जबकि 2119 में यह आंकडा 400 था। कोविड-19 के दौर में बच्चे ऑनलाइन पढाई को विवश हुए लेकिन उनके खिलाफ अपराध का यह एक और जरिया बन गया। देश भर में ऑनलाइन पबजी और अन्य ऐसे ही कंप्यूटर गेम की वजह से कई बच्चों के आत्महत्या तक के मामले सामने आए। क्योंकि बच्चा अपराधी के भय और अभिभावकों के सजा देने के डर से अपनी समस्या बता नहीं पाता इसलिए उनके खिलाफ अपराधियों के हौसले और बढ जाते हैं। वास्तव में बच्चों के खिलाफ अपराध के मामलों में तभी कमी लाई जा सकती है जब न केवल अभिभावक सचेत हों बल्कि समाज भी ऐसे मामलों में संज्ञान ले। इसमें सबसे बडी भूमिका अभिभावकों की है जो बच्चों में यह विश्वास पैदा करें कि कुछ भी गलत होने पर उन्हें तुरंत जानकारी दें। साथ ही बच्चों को यौन दुर्व्यवहार से बचाने के लिए गुड टच बेड टच तथा ऑनलाइन अपराधों के बारे में शिक्षित करें। ज्यादातर मामलों में अपराधी परिचित ही होते हैं इसलिए किसी पर भी आँख बंद कर भरोसा नहीं करें। नयापुरा पुलिस ने तो त्वरित कार्रवाई करते हुए दोनों बच्चों को अपहर्ता के चंगुल से छुडा लिया लेकिन क्या पुलिस हमेशा इतनी ही सजगता बरतती है। यदि कोटा जिले के ही गुम हुए बच्चों के आंकडे देखा जाए तो यह संख्या बहुत अधिक होगी। वर्षों से अभिभावक अपने गुम हुए बच्चों के घर लौटने की आस लगाए हें। उन्हें यह तक पता नहीं कि उनका गुम या अपहत हुआ बच्चा किस हाल में है।

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