
-देशबन्धु में संपादकीय
अमेरिका के दूसरी मर्तबा राष्ट्रपति बने डोनाल्ड ट्रम्प ने शपथ लेने के पखवाड़े भर के भीतर अनेक ऐसे कदम उठाये हैं जो उनके ख़तरनाक इरादों का इज़हार करते हैं। उनके इन निर्णयों का असर अमेरिका तक ही सीमित रहता तो कोई बात नहीं थी, लेकिन वे अनेक देशों की व्यवस्थाओं को तहस-नहस करने वाले साबित हो सकते हैं। दक्षिणपंथी व पूंजावादी व्यवस्था में गहरा यकीन रखने वाले राष्ट्रपति ट्रम्प ने जो नयी घोषणाएं की हैं उससे विश्व के कुछ हिस्सों में तनाव, तो कुछ क्षेत्रों में असंतुलन की स्थिति बन सकती है। यह तनाव कोई सामान्य सा न होकर विस्फोटक हो सकता है। अमेरिका में रह रहे एक-एक अवैध प्रवासी को निकाल बाहर करने की प्रक्रिया को तो वे प्रारम्भ कर ही चुके हैं, जिसके अंतर्गत भारत को मिलाकर पांच देशों के प्रवासियों को भेजा जा चुका है, ट्रम्प की उछाल मारती विस्तारवादी मंशाएं कहीं अधिक ख़तरनाक दिखती हैं। वैश्विक स्तर पर इसका विरोध होना चाहिये।
अपने पहले कार्यकाल में, वर्ष 2016 से लेकर 2020 तक ट्रम्प ने इसकी शुरुआत कर दी थी लेकिन कुछ बड़े कदम उठाते, उसके पहले ही उनका कार्यकाल समाप्त हो गया था। फिर भी मैक्सिको के साथ उन्होंने टकराव शुरू कर दिया था। उन्होंने उस देश से होकर आने वाले अवैध प्रवासियों को रोकने के नाम पर अमेरिका-मैक्सिको सीमा पर दीवार खड़ी करने की बात कही थी साथ ही यह भी कहा था कि इस पर खर्च होने वाली राशि वे मैक्सिको से वसूलेंगे। अब वहां टैरिफ़ शुल्क देर से देने का भी ट्रम्प ने ऐलान किया और मैक्सिको ने अपने सुरक्षा गार्ड खड़े कर दिये हैं। इतना ही नहीं, 51वें राज्य के रूप में कनाडा का विलय वे अमेरिका में कराना चाहते हैं। हालांकि ऐसा वे वहां के नागरिकों की इच्छा से करना चाहते हैं। ट्रम्प अटलांटिक व प्रशांत महासागरों को जोड़ने वाली व्यवसायिक महत्व की पनामा नहर को अधिग्रहित करना चाहते हैं। इस नहर के जरिये अमेरिका के पश्चिमी व पूर्वी तटों के बीच व्यापार में तो आसानी होगी ही, उसके एशियाई व यूरोपीय मुल्कों के साथ व्यवसाय भी कम खर्चीला व सुविधाजनक होगा। इसी तरह दुनिया के सबसे बड़े द्वीप ग्रीनलैंड को ट्रम्प खरीदना चाहते हैं जो कि डेनमार्क साम्राज्य का हिस्सा है। वे इसकी इच्छा जतला भी चुके हैं जिसे ग्रीनलैंड सरकार ने यह कहकर इंकार कर दिया कि ‘ग्रीनलैंड बिकाऊ नहीं है।’ केवल 57 हज़ार की आबादी वाले इस द्वीप में कई खनिजों के भंडार हैं। यह अमेरिका का सबसे उत्तरी सैन्य ठिकाना है जहां से रूस व अमेरिका के बीच के जल मार्ग पर नज़र रखी जाती है। यहां अमेरिका का पिटुफिक स्पेस केन्द्र भी स्थापित है।
‘अमेरिका फ़र्स्ट’ की लहर पर सवार होकर दूसरी बार जीते ट्रम्प के उपरोक्त इरादे तो उनके देश के आसपास के क्षेत्र में ही हलचल पैदा करेंगे परन्तु इज़रायल के साथ हुए एक समझौते के अनुसार पश्चिम एशिया के सबसे विवादित व युद्धग्रस्त ग़ज़ा पर अब अमेरिका का कब्जा होने जा रहा है। फिलीस्तीन और इज़रायल के बीच वर्षों से युद्ध का प्रमुख कारण ग़ज़ा फिलीस्तीनी शरणार्थियों की सबसे बड़ी शरणगाह है जिसे इज़रायल 1967 से अपने अधीन मानता है। पहले वह मिस्र का हिस्सा था। करीब एक वर्ष पहले पश्चिमी देशों की सैन्य मदद से इज़रायल ने भीषण हमले कर इसे लगभग खंडहर में बदल दिया है। बमबारी से ग़ज़ा का 90 फीसदी से अधिक हिस्सा बर्बाद हो गया है। यहां फिर भी लगभग 25 लाख लोग बहुत बुरी हालत में जी रहे हैं जिन्हें समझौते के अंतर्गत मिस्र व जोर्डन में बसाये जाने का प्रस्ताव है और ग़ज़ा को रिसॉर्ट सिटी बनाया जायेगा। इस सिटी में पश्चिमी देशों के ही लोगों को बसाया जायेगा।
इसके लिये अमेरिका समतलीकरण कर उसे पर्यटन केन्द्र में बदलेगा। इज़रायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने इस समझौते को यदि ऐतिहासिक बताया है तो उनका स्वार्थ यह है कि इसकी सुरक्षा व विकास का जिम्मा अमेरिका का रहेगा व इज़रायल का कब्जा पक्का हो जायेगा। इज़रायल व्यापक रूप से अमेरिका पर आश्रित है जिसे हर वर्ष 2 लाख करोड़ रुपये की सहायता मिलती है। अरब मुल्कों से घिरे इस देश की सुरक्षा में अमेरिका व उसके कारण पाश्चात्य देश हाथ बंटाते हैं। फिलीस्तीन को हर साल 10 हज़ार करोड़ रुपये की जो मदद अमेरिका देता था, वह भी नये राष्ट्रपति ने बन्द कर दी है। अपनी वैश्विक जिम्मेदारियों से बचने के लिये वैसे भी अमेरिका अंतरराष्ट्रीय संगठनों से बाहर निकलता जा रहा है। वीटो पावर के आकर्षण में वह संयुक्त राष्ट्र संघ (यूएनओ) में बना हुआ है लेकिन ट्रम्प ने संयुक्त राष्ट्र संघ की मानवाधिकार परिषद से देश को बाहर निकालने का आदेश दे दिया है।
1991 में हुआ सोवियत संघ का विखंडन दुनिया को भारी पड़ रहा है क्योंकि अब अमेरिका के इस तरह के कदमों का विरोध करने वाली कोई भी शक्ति नहीं बची है। ट्रम्प की छवि व ख्याति एक जिद्दी व सनकपूर्ण फैसले लेने वाले व्यक्ति के रूप में है। अपने देशवासियों के समक्ष अमेरिका के प्रति पूर्णतः समर्पित नेता की छवि बनाने के लिये वे किसी भी हद तक जा सकते हैं। अपनी ही तरह के दक्षिणपंथी नेताओं तथा पूंजापतियों का अंतरराष्ट्रीय गठजोड़ किस तरह से आकार ले रहा है उसकी बानगी उनके शपथ ग्रहण में दिखी थी। अपने क्षेत्र में टकराव को उद्धत ट्रम्प के वैश्विक कदमों का खामियाजा दुनिया को भुगतना पड़ सकता है जैसा कि पहले भी बड़ी लड़ाइयों के रूप में मानवता देख चुकी है। इसलिये अमेरिका को रोकना ज़रूरी है। यह देखना दिलचस्प होगा कि नयी परिस्थतियों में चीन की क्या भूमिका होगी? भारत यदि गुट निरपेक्षता की राह पर चलता रहता तो उसकी आवाज़ महत्वपूर्ण होती।