इंडिया गठबंधन के भविष्य पर सवाल अनेक लेकिन जवाब के केवल कयास!

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यदि कांग्रेस ने दिल्ली चुनाव में अपनी राजनीतिक जमीन मजबूत कर ली तो कांग्रेस का अगला लक्ष्य उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में अपनी राजनीतिक जमीन को मजबूत करना होगा। शायद यही डर अपने आपको प्रधानमंत्री का प्रमुख दावेदार समझने वाले अखिलेश यादव और ममता बनर्जी को सता रहा है।

-देवेंद्र यादव-

devendra yadav
-देवेंद्र यादव-

राजनीति में रूचि रखने वालों को मकर संक्रांति के बाद देश की राजनीति में आने वाले भूचाल का बेसब्री से इंतजार है। यह इंतजार इस बात का है कि इंडिया गठबंधन पूरी तरह से टूटेगा, या फिर इंडिया गठबंधन के जाल में फंसकर मोदी सरकार, लड़खड़ाएगी। राजनीतिक गलियारों में जैसे-जैसे 15 जनवरी नजदीक आ रही है वैसे-वैसे दबी जुबान ये यह खबरें भी निकल कर आ रही है कि इंडिया गठबंधन मोदी सरकार के खिलाफ किसी बड़ी राजनीतिक रणनीति को अंजाम दे सकता है।
बिहार और महाराष्ट्र में चल रही राजनीतिक उठा पटक और दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के दमदारी से चुनाव लड़ने की खबरों ने देश के राजनीतिक गलयारों को गर्मा रखा है। राजनीतिक पंडित और विश्लेषक अटकले लगा रहे हैं कि 2024 के लोकसभा चुनाव में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी को हराने के लिए जो महागठबंधन बना था, वह इंडिया गठबंधन अब टूट जाएगा। कयास तो यह भी लगाया जा रहा है कि इंडिया गठबंधन मोदी सरकार के खिलाफ कोई बड़ा राजनीतिक खेल कर सकता है।
मगर यह भी तो हो सकता है कि इंडिया गठबंधन के घटक दल कांग्रेस के साथ बड़ा राजनीतिक खेल कर सकते हैं और देश और राजनीतिक पंडितों को एक बड़ा सरप्राइज दे सकते हैं। अटल बिहारी वाजपेयी के दौर का हवाला देकर मोदी सरकार को भी और अधिक मजबूत कर सकते हैं, क्योंकि इंडिया गठबंधन में जो घटक दल मौजूद हैं उनमें से कांग्रेस को छोड़कर अधिकांश दलों ने अटल बिहारी के राजनीतिक दौर में केंद्र में भाजपा को समर्थन देकर अटल बिहारी वाजपेयी को देश का प्रधानमंत्री बनवाया था। क्या उस दौर की आहट भी सुनाई देने लगी है, क्योंकि केंद्र की सत्ता में भारतीय जनता पार्टी के पास पूर्ण बहुमत नहीं है। मोदी सरकार चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार की पार्टी का समर्थन लेकर सत्ता में है। बिहार में चल रही राजनीतिक उठापटक के बाद चर्चा होने लगी की क्या नीतीश कुमार एक बार फिर पलटेंगे। इस खबर के तुरंत बाद राजनीतिक गलियारों में यह अटकलें लगाई जाने लगी कि इंडिया गठबंधन टूट के कगार पर है और इंडिया गठबंधन के घटक दलों के नेता अटल बिहारी वाजपेयी युग को याद करते हुए भी सुनाई दिए। ऐसे में सवाल यह है कि क्या मोदी सरकार अधिक मजबूत होगी। क्या एनडीए गठबंधन के घटक दलों की वापसी होगी। सवाल एक नहीं अनेक है। सवाल यह भी है इंडिया गठबंधन के घटक दल कांग्रेस पर तोहमत लगा कर इंडिया गठबंधन से अलग होकर सारा ठीकरा कांग्रेस पर फोड़कर मोदी सरकार की गोद में बैठने का रास्ता ढूंढ रहे हैं। दिल्ली विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस के दमदारी से चुनाव लड़ने पर उठ रहे इंडिया गठबंधन के घटक दलों के सवाल कुछ इस तरह के इशारे कर रहे हैं। मजेदार बात तो यह है कि दिल्ली विधानसभा चुनाव में घटक दलों के जो तीन नेता एक स्वर में स्वर मिला रहे हैं और कांग्रेस को ज्ञान बांट रहे हैं वह तीनों ही नेता ममता बनर्जी, अखिलेश यादव और अरविंद केजरीवाल अपने आपको देश का भावी प्रधानमंत्री भी मानते हैं। लेकिन तीनों नेताओं की राजनीतिक जमीन अपने-अपने राज्यों में अब अधिक मजबूत नहीं है। ऐसे में यदि कांग्रेस ने दिल्ली चुनाव में अपनी राजनीतिक जमीन मजबूत कर ली तो कांग्रेस का अगला लक्ष्य उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में अपनी राजनीतिक जमीन को मजबूत करना होगा। शायद यही डर अपने आपको प्रधानमंत्री का प्रमुख दावेदार समझने वाले अखिलेश यादव और ममता बनर्जी को सता रहा है। दोनों नेताओं को यह भी एहसास है कि आज लोकसभा में उनके पास जो मजबूती है उसकी वजह कांग्रेस और उसके नेता राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे का भाजपा को घेरने का मजबूत चुनावी अभियान है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)

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