
Hafeez Kidwai

अब तो उन्हें जवाब मिल जाएगा,जो कहते थे कि शक्ति से शांति आती है । दुनिया में इससे बेहतरीन उदाहरण,अपनी आंखों देखी नही हो सकता,इसलिए नज़र खुली रखिये । हमारा भी पुरखों का दिया नज़रिया है,जो कहता है कि शक्ति के प्रयोग से शांति नही आती । ट्रम्प का कहना है कि शक्ति से शांति ला रहे हैं, इसलिए इनके प्रयोग पर नज़र रखिये,हम भी रखते हैं।
शक्ति से आप ज़बरन किसी को दबा सकते हैं मगर शांत नही कर सकते हैं । उदाहरण भरे पड़े हैं, अपने ही देश में सत्तावन में बिरतान ने ताक़त से दबाकर सोचा था कि हमें शांत कर ले जाएगा। ठीक नब्बे साल में ही इस सारे इलाके से उसके पांव उखड़ गए और इन नब्बे सालों में यह चैन की नींद नही सो सके। आप ताक़त से किसी को दबा लें और उसका नाम पीस रख दें,यह तबतक ही पीस रहेगा,जब तक तुम्हारी ताक़त बनी रहेगी। ताक़त में हल्की सी भी कमी आई कि पांव उखड़ना शुरू।
ट्रम्प अपने अरबी व्यापारियों के साथ मिलकर,केक बांट चुका है। यह सारे इसी ताक में थे कि कद्दू कटेगा,सबमें बटेगा। अब ग़ ज़ा में शांति के बहाने,हर वह काम किया जा रहा है, जो उनके लिए कैसा होगा,पता नही। देर सबेर इज़राइल के बाकी पड़ोसियों को भी इस नासूर को भुगतना ही पड़ेगा और हम लोग ऐसा होते देखेंगे।
हमें बस इतना देखना है कि ताक़त से शांति कैसे आती है। यह खामोशी को शांति समझ बैठे हैं। इन्हें लगता है कि लोग डरकर घर से नही निकले,तो शांति आ गई । ऐसी फ़र्ज़ी शांति,दुनिया ने बहुत देखी है । शांति को तो खैर यह क्या ही समझेंगे, बहुत से लोग नही समझते । उन्हें लगता है कि विरोध आना बंद हो गया,तो शांति आ गई । ऐसे ही बहुत बार अफगान भी शांत हुए हैं मगर क्या वास्तव में हुए हैं?
अरब देशों को लग रहा कि अपने आका ट्रम्प के साथ मिलकर,वह शांति ले जाएंगे। उन्हें नही पता कि यह दबी हुई चिंगारी,उनके अपने आंगन में कब लावा बनकर बहेगी । तब देखना,ऐसा ही कोई ट्रम्प,उनके आंगन में पेट्रोल छिड़क रहा होगा । उनके पड़ोसी कह रहे होंगे, ज़रा सी ज़मीन है, छोड़ दो,शांति आ जाएगी । यह एक ज़ायोनिस्ट सिलसिला है, ख़ैर।
शांति जब आती है, तब इत्मीनान होता है। जब ज़बरन शांति लाई जाती है, तब बेबसी में डूबी आंखे होंठो को खामोश कर देती हैं। यह खामोशी शांति नही है,यह बात बड़े बड़े समझ नही पाते।
मेरी दिली ख़ाहिश है कि फिलिस्तीन में शांति आए । यह मुल्क खड़ा हो । इसके बच्चे दुनिया में कामयाबी के झंडे गाड़े । इनके हाथों में किताबे,इल्म,हुनर हो और आंखों में सपने मगर यह तब आएगा । जब इनका दिल जीता जाए । दिल को हराकर,इन्हें शांत करना, शांति नही है ।
समझौते सम्मान और बराबरी से होते हैं । समझौते तब होते हैं, जब ज़ालिम और मज़लूम एक तख़्त पर बैठकर बात करें । सारे ज़ालिम मिलकर,किसी मज़लूम के लिए सुक़ून के दिन लाने का वादा करे,इससे बड़ा फ़रेब और भला क्या ही होगा ।
हम बस इतना देखना चाहते हैं कि ट्रम्प का कहा कितना सच होता है । शक्ति से शांति आती है । यह देखना है । यह फार्मूला हिट हो जाए,तो किसी को भी मारकर शांत किया जा सकता है ।
एक बात तो बुज़ुर्गों की सही ही साबित हुई,आख़िर में बात ही करनी पड़ेगी । कम से कम सारे ज़ालिम मिलकर बातचीत तो करने ही लगे हैं । इन्हें एहसास है कि वर्षों से जिंदगियां तबाह करके भी वह कब्ज़ा ज़रूर कर पाए हैं मगर जीत नही पाए हैं । बात तो करनी ही पड़ेगी और पड़ रही है ।
देखना यह है कि शांति कैसे आती है । शांति का एक ही विकल्प है, प्रेम और स्नेह,जो इन शांति लाने वालों की आंख में रत्तीभर नही है । मुझे यही देखना है कि बिना प्रेम और स्नेह के केवल शक्ति से शांति कैसे आती है । यह हमारे नज़रिए को पुख्ता करेगा या फिर बदलकर रख देगा,आगे का वक़्त बहुत महत्वपूर्ण है । सबके लिए, सब लोग देखिए और जाँचिए….
(हफीज किदवई की फेसबुक वॉल से साभार)