
#सर्वमित्रा_सुरजन
अपने देश की रक्षा करना एक बात है। लेकिन इसके लिए 60 हज़ार नागरिकों को मारना, अस्पताल पर बम गिराना और भूखे बच्चों को मौत के मुंह में झोंकना जायज नहीं है। हम अपनी आंखों के सामने 21वीं सदी के काले स्याह अध्याय को देख रहे हैं। ये अल्फाज़ स्पेन के प्रधानमंत्री पेड्रो सांचेज़ के हैं, जो अमेरिका में एक कार्यक्रम में उन्होंने कहे। सांचेज़ ने कहा कि जब रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण किया था तो हमने उसकी निंदा की थी और पीड़ित की मदद के लिए हाथ बढ़ाया था। हमने 7 अक्टूबर 2023 को इज़रायल पर हमास के हमले की भी कड़ी निंदा की थी। लेकिन अब जो इज़रायल कर रहा है, क्या वह सही है, यह सवाल सांचेज़ ने अमेरिकी मंच से उठाए और उसके दोहरे रवैये पर आश्चर्य जताया।
पेड्रो सांचेज का बयान दुनिया में फिलीस्तीन के पक्ष में बनते माहौल की गवाही दे रहा है। सोमवार को न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने फिलीस्तीन को औपचारिक तौर पर मान्यता दे दी है। मैक्रों ने कहा, ‘शांति का समय आ गया है’ और ‘ग़ज़ा में जारी युद्ध का कोई औचित्य नहीं है।’ बता दें कि संयुक्त राष्ट्र महासभा में इज़रायल-फ़िलीस्तीन के संघर्ष के समाधान के तौर पर दो-राष्ट्र के सिद्धांत पर केंद्रित एक दिवसीय शिखर सम्मेलन की मेज़बानी फ्रांस और सऊदी अरब ने की, जिसमें मैक्रों ने ये बातें कहीं। इस बैठक में जी7 के सदस्य जर्मनी, इटली और अमेरिका शामिल नहीं हुए, लेकिन बेल्जियम, लक्ज़मबर्ग, माल्टा, अंडोरा और सैन मरीनो जैसे यूरोपीय देशों ने भी फ़िलीस्तीन को मान्यता देने की बात कही है।
बेल्जियम ने कहा है कि यह कानूनी रूप से तभी प्रभावी होगा, जब हमास को हटा दिया जाएगा और बंधकों को वापस कर दिया जाएगा। वहीं पेड्रो सांचेज ने फिलीस्तीन राज्य को संयुक्त राष्ट्र का पूर्ण सदस्य बनाने का आह्वान करते हुए कहा कि ‘यह सम्मेलन मील का पत्थर है, लेकिन यह इस यात्रा का अंत नहीं है। यह तो बस शुरुआत है।’ जबकि इमैनुएल मैक्रों ने संरा महासभा को बताया कि ‘फिलिस्तीनी देश को मान्यता देना एकमात्र साधन है, जो इजरायल को शांति से रहने देगा।’ मैक्रों ने कहा, हमें द्वि-राष्ट्र समाधान की संभावना को बनाए रखने के लिए अपनी पूरी शक्ति से प्रयास करना चाहिए, ताकि इजरायल और फिलिस्तीन शांति और सुरक्षा के साथ-साथ रह सकें। मैक्रों ने स्पष्ट किया कि फिलिस्तीनी लोगों के अधिकारों को मान्यता देने से इजरायल के लोगों के अधिकारों में कोई कमी नहीं आएगी, जिनका फ्रांस ने पहले दिन से समर्थन किया है।
ध्यान रहे कि इससे पहले रविवार को ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और पुर्तगाल भी फ़िलीस्तीन को एक देश के तौर पर मान्यता दे चुके हैं। भारत तो फिलीस्तीन को मान्यता देने वाले पहले राष्ट्रों में से एक है। संयुक्त राष्ट्र के 193 सदस्य देशों में से तीन चौथाई से अधिक पहले ही फिलीस्तीन को मान्यता दे चुके हैं। लेकिन अमेरिका, इज़रायल, इटली और जर्मनी अब भी फिलीस्तीन को मान्यता देने राजी नहीं हैं। हालांकि फ्रांस जैसे देशों के फ़िलीस्तीन को मान्यता देने से द्विराष्ट्र समाधान जैसी पहल को अब और मजबूती मिलेगी, ऐसा माना जा रहा है। लेकिन इस का कोई असर तभी दिखाई देगा, जब इज़रायल का, खासकर बेंजामिन नेतन्याहू का अड़ियल रवैया टूटेगा। अभी तो नेतन्याहू फिलीस्तीन को मान्यता देने को सीधे आतंकवाद का ईनाम ही बता रहे हैं। फ्रांस व अन्य देशों की पहल पर नेतन्याहू ने साफ कहा कि, ‘कोई फ़िलस्तीनी देश नहीं होगा. हमारी ज़मीन के बीच, एक आतंकवादी देश को थोपने के हालिया प्रयास का जवाब मेरे अमेरिका से लौटने के बाद दिया जाएगा।’ नेतन्याहू ने फिलीस्तीन को मान्यता देने वाले देशों के लिए संदेश दिया है कि यह संभव नहीं होगा। जॉर्डन नदी के पश्चिम में कोई भी फ़िलीस्तीनी देश नहीं होगा। वहीं इजरायल के दक्षिणपंथी नेता ये भी चाहते हैं कि फ़िलीस्तीनियों को कब्ज़े वाले इलाकों से पूरी तरह हटाया जाए और उस पूरे क्षेत्र को यहूदियों के लिए इज़रायली संप्रभुता के अंतर्गत लाया जाए।
हालांकि नेतन्याहू सरकार का यह रूख खुद इजरायल के लोगों को नागवार गुजर रहा है। इजरायल में लगातार नेतन्याहू के लड़ाकू रवैये पर जनता नाराजगी दिखा रही है, वहीं अब दो पूर्व प्रधानमंत्री एहुद बराक और एहुद ओल्मर्ट ये आरोप लगा चुके हैं कि नेतन्याहू इज़रायल को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अछूत बनाने की ओर ले जा रहे हैं। इस आऱोप में दम दिख रहा है, क्योंकि नेतन्याहू पहले जिसे आतंकवाद का जवाब और इंसाफ की लड़ाई बता रहे थे, वह अब युद्धोन्माद दिख रहा है, जिसमें लाखों मासूम जिंदगियां तबाह हो चुकी हैं। हमास का बदला मासूम बच्चों, मरीजों, महिलाओं, पत्रकारों, स्वयंसेवी कार्यकर्ताओं से निकाला जा रहा है। लगातार 2 साल से नरसंहार देखकर अब दुनिया भी इस पागलपन को रोकने के लिए आवाज उठा रही है।
10 सितंबर को अपने ‘स्टेट ऑफ द यूनियन’ भाषण में यूरोपियन यूनियन की प्रमुख उर्सुला वॉन डेर लेयेन ने कहा था कि ग़ज़ा की घटनाओं ने ‘दुनिया के ज़मीर को झकझोर दिया है’। इसके अगले ही दिन 314 पूर्व यूरोपीय राजनयिकों और अधिकारियों ने वॉन डेर लेयेन और यूरोपियन यूनियन की विदेश नीति प्रमुख काया कलास को चिट्ठी लिखकर कड़े क़दम उठाने की अपील की। कई यूरोपीय देश अब इजरायल पर अलग-अलग तरह के प्रतिबंध लगाने पर विचार कर रहे हैं। हालांकि अमेरिका अब भी इज़रायल के साथ ही खड़ा है। अमेरिका के विदेश मंत्री मार्को रूबियो ने कहा कि अमेरिका के ‘इजरायल के साथ संबंध मज़बूत बने रहेंगे।’ लेकिन अमेरिका कब तक वैश्विक रुख को नजरंदाज करेगा, ये देखना होगा।
(देवेन्द्र सुरजन की वॉल से साभार)