
-देवेंद्र यादव-

देश के राजनीतिक गलियारों में एक बार फिर से इंडिया गठबंधन सुर्खियों में है। इसके साथ सवाल खड़ा हो रहा है कि क्या इंडिया गठबंधन बरकरार रहेगा या टूट जाएगा।
गत दिनों पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बयान दिया था कि वह इंडिया गठबंधन की कमान अपने हाथ में लेने को तैयार हैं। अटकलें लगने लगी कि क्या कांग्रेस और उसके नेता राहुल गांधी के हाथ में इंडिया गठबंधन सुरक्षित नहीं है। इससे इंडिया गठबंधन के घटक दलों को नुकसान हो रहा है। जबकि इंडिया गठबंधन में राहुल गांधी के पास कोई बड़ा पद नहीं है। इसके बावजूद इशारों ही इशारों में आरोप सुनाई देता है कि राहुल गांधी की नीतियों के कारण गठबंधन के घटक दलों को नुकसान हो रहा है। लेकिन यह नहीं बताया जाता है कि राहुल गांधी की वजह से ही 2024 के लोकसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन के घटक दलों को फायदा भी मिला था। यदि लोकसभा चुनाव से पहले राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा नहीं निकालते तो उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी को 37 और पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस को 29 लोकसभा की सीट शायद नहीं मिलती। दो राज्य हरियाणा और महाराष्ट्र में कांग्रेस की हार के बाद इंडिया गठबंधन की क्षमता पर सवाल खड़े हुए लेकिन जहां से सवाल आया उनकी पार्टी का दोनों ही राज्यों में कोई प्रभाव नहीं है। हाल ही की बयान बाजी से लगता है कि क्या तृणमूल कांग्रेस और समाजवादी पार्टी की नजर दिल्ली और बिहार विधानसभा चुनाव पर है। दोनों ही पार्टियां दिल्ली और बिहार में इंडिया गठबंधन के साथ सीट शेयरिंग कर चुनाव लड़ना चाहती हैं। इसीलिए ममता बनर्जी और अखिलेश यादव ने कांग्रेस पर दबाव बनाना शुरू कर दिया है। समाजवादी पार्टी ने हरियाणा विधानसभा चुनाव में कुछ सीटों पर चुनाव लड़ने की इच्छा जाहिर की थी और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में उसने अधिक सीट मांगी थी। कांग्रेस ने हरियाणा में उसे सीट नहीं दी और महाराष्ट्र में समाजवादी पार्टी ने जितनी सीट मांगी थी उतनी उसे नहीं मिली।
जहां तक राहुल गांधी की राजनीतिक ताकत का सवाल है इंडिया गठबंधन के घटक दल शायद यह भूल कर रहे हैं, राहुल गांधी और उनके विचार और नीति देश की जनता के दिलों में बस गए हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा कर अडानी के मुद्दे को घर-घर पहुंचा दिया था और अडानी मोदी भाई भाई का नारा बुलंद किया था। जिसका फायदा इंडिया गठबंधन को 2024 के लोकसभा चुनाव में मिला। अब यदि इंडिया गठबंधन के घटक दल अडानी मुद्दे पर राहुल गांधी का साथ नहीं देकर खिलाफत करेंगे तो राहुल गांधी का नारा अडानी मोदी भाई-भाई और अधिक बड़ा हो जाएगा और इसके लपेटे में इंडिया गठबंधन के वह घटक दल भी शामिल हो जाएंगे जो राहुल गांधी के अडानी मुद्दे पर राहुल गांधी पर सवाल खड़ा कर रहे हैं। जनता के मन में यह बात इसलिए भी बैठ जाएगी क्योंकि इंडिया गठबंधन के ज्यादातर घटक दल पूर्व में भाजपा नीत सरकार मैं शामिल रहे हैं। सवाल यह है कि इंडिया ब्लॉक के घटक दलों को डर राहुल गांधी से है या मोदी से।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं।)